।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ तृतीया, वि.सं.-२०७५, शुक्रवार
 अनन्तकी ओर     



जैसे बच्‍चा माँके पीछे पड़ जाता है कि मेरेको लड्‌डू दे दे, ऐसे ही आप भगवान्‌के पीछे पड़ जाओ कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं । रात और दिन पीछे ही पड़ जाओ, छोड़ो ही नहीं ! एक ही बात कि भगवान्‌को भूलूँ नहीं सबु करि मागहिं एक फलु राम चरन रति होउ (मानस, अयोध्या १२९) । सब तीर्थ, व्रत आदिका एक ही फल माँगे कि भगवान्‌को भूलें नहीं । हरदम लगन लग जाय कि हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं; हे मेरे स्वामी ! मैं आपको भूलूँ नहीं तो आपकी स्थिति बदल जायगी । काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, पाखण्ड, दिखावटीपना आदि सब नष्ट हो जायँगे । राम, कृष्ण, शिव, शक्ति, गणेश सूर्य आदि जो आपका इष्‍ट हो, उसमें सच्‍चे हृदयसे लग जाओ कि हे नाथ ! हे मेरे स्वामी ! मैं आपको भूलूँ नहीं । मेरेको और कुछ नहीं चाहिये । इसको छोड़ो मत । फिर देखो, पन्द्रह-बीस दिनोंमें, महीनेभरमें आपमें विलक्षणता आ जायगी । भगवान्‌को याद करनेसे आपका अन्तःकरण शुद्ध, निर्मल हो जायगा, एकदम ठीक हो जायगा ।

शुद्ध-अशुद्ध, पवित्र-अपवित्र सब अवस्थाओंमें हरदम भगवान्‌से कहते रहो कि हे प्रभो ! ऐसी कृपा करो कि आपको भूलूँ नहींयह वहम नहीं रखना कि अशुद्ध अवस्थामें भगवान्‌को याद नहीं करना है । भगवान्‌के पीछे ही पड़ जाओ ! न खुद चैनसे रहो, न भगवान्‌को चैन लेने दो ! भगवान् खुश हो जायँगे !

जबतक भोग और संग्रहमें मनुष्यकी वृत्ति लगी हुई है, तबतक वह परमात्माकी प्राप्ति नहीं कर सकता । उसके अन्तःकरणमें मुझे परमात्माको प्राप्त करना हैयह वृत्ति ठहर नहीं सकती । गीतामें साफ लिखा है

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां         तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥
                                                   (गीता २ । ४४)

भोग भोगनेका खराब स्वभाव पड़ जायगा तो वह जन्म-जन्मान्तरतक आपको आफत-ही-आफत, दुःख-ही-दुःख देगा, और रुपयोंका कितना ही संग्रह कर लो, एक कौड़ी भी आपके साथ चलेगी नहीं । अगर आपको भोग और संग्रह बढ़िया दीखता हो तो मुझे समझा दो । अगर मेरी समझमें आ जायगा तो फिर मैं वैसा ही कहने लग जाऊँगा ! परन्तु मेरी समझसे यह महान् नरकोंमें जानेका रास्ता है ! मैं रुपयोंकी निन्दा नहीं करता हूँ । रुपयोंमें जो लोभ है, भोगोंमें जो आसक्ति है, यह महान् अनर्थ करनेवाली है । इसमें मुझे सन्देह नहीं है । जड़ पदार्थोंमें जो खिंचाव है, यही जन्म-मरण देनेवाला है ।

मनुष्यके लिये रुपये बहुत जरूरी हैंऐसी बात बहुत सुननेमें आती है । अगर आपके लिये रुपये जरूरी हैं तो आपके पास रुपये अपने-आप आयेंगे, यह पक्‍की बात है ! जो आदमी भगवान्‌के भजनमें लगा है, उसके लिये भोगोंमें आसक्त होनेकी और रुपयोंका लोभ करनेकी बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है । आवश्यक वस्तु उसके पास अपने-आप आयेगी । हाँ, यह हो सकता है कि पहले ज्यादा आसक्ति करनेके कारण कुछ दिनोंके लिये आपको ज्यादा तंगी भोगनी पड़े, पर पीछे आपको इतनी वस्तुएँ मिलेंगी, जो कामना करनेवालोंको भी नहीं मिलतीं ! रुपया चाहनेवालोंको जो रुपया नहीं मिलता, ऐसा रुपया मिलेगा ! उल्टे आपको यह विचार होगा कि इन रुपयोंका करेंगे क्या !


त्याग करोगे तो कुछ दिन दुःख पाना पड़ेगा, थोड़ा प्रायश्‍चित्त करना पड़ेगा, पर बादमें कोई कमी नहीं रहेगी । परन्तु लोभके रहते हुए त्याग समझमें आता नहीं !