।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ द्वितीया, 
                 वि.सं.-२०७५, शुक्रवार
 अनन्तकी ओर     


तीन इच्छाएँ होती हैं‒सांसारिक सुखकी इच्छा, परमात्माके ज्ञानकी इच्छा और परमात्माके प्रेमकी इच्छा । संसारका सुख नाश करनेवाला, पतन करनेवाला, जन्म-मरण देनेवाला है । ज्ञान और प्रेम‒इन दोनोंमें बहुत आदमी ज्ञानको ऊँचा मानते हैं, पर मैं प्रेमको ऊँचा मानता हूँ । गीता प्रेमको ऊँचा मानती है । प्रेम प्राप्त होनेपर फिर कुछ पाना बाकी नहीं रहता । एक बारीक बात है कि तत्त्वज्ञान होनेपर भी उसमें सूक्ष्म अहंकार रहता है । परन्तु यह अहंकार मुक्तिमें बाधक नहीं होता, प्रत्युत मतभेद करनेवाला होता है । प्रेम प्राप्त होनेपर मतभेद नहीं रहता ।

एक प्रेम होता है, एक आसक्ति होती है । प्रेम उद्धार करनेवाला है, आसक्ति पतन करनेवाली है । परन्तु प्रेम जल्दी समझमें नहीं आता । लोग स्‍त्री-पुरुषमें प्रेम मानते हैं, पर वह महान् आसक्ति है, प्रेम नहीं है । उसमें प्रेमका नामोनिशान ही नहीं है ! प्रेममें देना-ही-देना होता है और आसक्तिमें लेना-ही-लेना होता है । आसक्ति अपने सुखके लिये होती है ।

श्रोता‒प्रेममें रसास्वादन कैसे होता है ?

स्वामीजी‒प्रेममें जब जीव अपनी तरफ देखता है, तब भेद दीखता है और जब भगवान्‌की तरफ देखता है, तब अभेद दीखता है । ये दो चीज होनेपर भी अद्वैत मिटता नहीं, ज्यों-का-त्यों रहता है । वह अपनी तरफ देखता है तो अपनेमें कमी मानता है, और भगवान्‌की तरफ देखता है तो चुप हो जाता है । ये दो होनेसे प्रेम प्रतिक्षण वर्धमान होता है ।

द्वैतं मोहाय बोधात्प्राग्जाते बोधे मनीषया ।
भक्त्यर्थं कल्पितं  द्वैतमद्वैतादपि  सुन्दरम् ॥
                                           (बोधसार भक्ति ४२)

बोधसे पहलेका द्वैत मोहमें डाल सकता है; परन्तु बोध हो जानेपर भक्तिके लिये कल्पित (स्वीकृत) द्वैत अद्वैतसे भी अधिक सुन्दर (सरस) होता है ।’

इस श्‍लोकमें आये कल्पित’ शब्दकी जगह मैं स्वीकृत’ शब्दको ठीक मानता हूँ ।

श्रोता‒भगवान् सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार हैं, यह तो हमारी समझमें आता नहीं । भगवान् जैसे भी हों, हमें तो यही बात अच्छी लगती है कि भगवान् हैं और वे मेरे हैं । अब यह बात हमारे मनमें दृढ़तासे बैठ जाय, ऐसा कोई उपाय बतायें ।


स्वामीजी‒भगवान्‌की कृपासे होगा । आपके बिना पूछे सत्संगमें जो बातें आपने सुनी हैं, यह भगवान्‌की आपपर विशेष कृपा है । जिसकी कृपासे ये बातें मिली हैं, उसीकी कृपासे दृढ़ता होगी, उसीकी कृपासे विश्‍वास होगा ।