।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ अष्टमी, 
                 वि.सं.-२०७५, गुरुवार
 अनन्तकी ओर     


सृष्टि-रचनाके समय जब ब्रह्माजीने मनुष्य और गायकी रचना की, तब भगवान् बहुत प्रसन्न हुए । तात्पर्य है कि मनुष्य और गाय‒ये दोनों सबका हित करनेके लिये हैं । मनुष्य, देवता, पितर, पशु पक्षी, भूत-प्रेत आदि सबकी रक्षा और पालन करनेके लिये मनुष्य बनाया गया है । मनुष्य दूसरोंका जितना हित कर सकता है, उतना दूसरे नहीं कर सकते । भगवान्‌को याद रखना और सबका हित करना‒ये दो बातें होनेसे ही मनुष्यकी मनुष्यता है, नहीं तो वह मनुष्यरूपसे पशु है । इसलिये आप सबसे प्रार्थना है कि सबका हित करो । व्यवहारमें बालकों आदिपर शासन भी करना पड़ता है, पर हृदयमें हितका भाव रहना चाहिये । जिसके भीतर स्वार्थका भाव है, वह दूसरेका हित, सेवा नहीं कर सकता‒यह अकाट्य सिद्धान्त है । वह हितका स्वाँग (नाटक) कर सकता है, हितकी बातें कह सकता है, पर हित नहीं कर सकता । जिसे भेंट-पूजा लेनी है, अपना मकान (आश्रम) बनाना है, पैसा इकट्ठा करना है, अपनी प्रसिद्धि करनी है, वह हित नहीं कर सकता । हित वही कर सकता है, जिसके भीतर किसी तरहका स्वार्थ नहीं है । सबके हितका भाव रखनेवाले परमात्माको प्राप्त होते हैं‒‘ते प्राप्‍नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः’ (गीता १२ । ४) ।

परहित बस जिन्ह के मन माहीं ।
 तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥
                                         (मानस, अरण्य ३१ । ५)

जिनके मनमें दूसरेका हित बसता है, उनके लिये जगत्‌में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।’

आप सब सेवक हो । इसलिये आप संसारमें जो भी काम करो, वह सब सेवा-भावसे करो । यह कर्मयोगकी नयी बात है, जो बहुत वर्षोके बाद मिली है ! पुस्तकोंमें हरेक जगह इतना खुलासा आता नहीं । सब-का-सब जड़-विभाग केवल सेवाके लिये है, अपने सुखभोगके लिये है ही नहीं‒‘एहि तन कर फल बिषय न भाई’ (मानस, उत्तर ४४ । १) ।

संसारमें जितने भी जीव हैं, उन सबमें एक मनुष्य ही सेवा करनेवाला है । वृक्ष आदिसे आप सेवा ले सकते हो, पर वे सेवा कर नहीं सकते ।

मेरी आपसे हाथ जोड़कर एक प्रार्थना है कि आप दूसरे धर्मके चेले मत बनो, हिन्दू बने रहो । कृपा करो कृपानाथ ! अपने धर्मका नाश मत करो । हम आपलोगोंसे रुपया माँगते नहीं, कपड़ा माँगते नहीं, रोटी भी कोई अपने-आप दे दे तो ले लेते हैं, पर हम माँगते नहीं ! आपसे कुछ माँगते नहीं, पर एक चीज माँगते हैं कि चोटी रखो । आप इतने लोग बैठे हो, कोई बताओ कि स्वामीजीने मेरेसे यह चीज माँगी ! साठ-सत्तर वर्षोंमें कोई चीज कभी भी माँगी हो तो कोई भाई-बहन बताओ ! सभामें खुला कहता हूँ ! वस्तुके बिना मैंने दुःख पाया है, कष्ट पाया है, पर माँगा नहीं ! अब एक बात माँगता हूँ कि चोटी रखो । जो चोटी (शिखा) नहीं रखते, वे हिन्दू नहीं हैं । हिन्दू वे हैं, जो चोटी रखते हैं । हिन्दूधर्ममें कल्याणकी जो बात है, ऐसी बात किसी देशमें, किसी वेशमें, किसी भाषामें मैंने नहीं सुनी है । चोटी रखनेसे कोई विपत्ति आयी हो तो बताओ ! किसी आचार्यने, सन्त-महात्माने चोटी रखनेसे मना किया हो तो बताओ ! चोटी रखनेसे आपको क्या नुकसान है ? चोटी रखनेसे आपका कोई नुकसान हुआ हो तो बताओ ! चोटी न रखनेसे आपके पितरोंको पिण्ड-पानी नहीं मिलेगा ।