।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल द्वितीया, वि.सं.–२०७५, सोमवार
नाम-महिमा



मेरेको एक सज्जन मिले थे । वे कहते थे कि मैं राम-राम करता हूँ तो राम-नामका चारों तरफ चक्कर दीखता है । ऊपर आकाशमें और सब जगह ही राम-राम दीखता है । पासमें, चारों तरफ, दसों दिशाओंमें नाम दीखता है । पृथ्वी देखता हूँ तो कण-कणमें नाम दीखता है, राम-राम लिखा हुआ दीखता है । कोई जमीन खोदता है तो उसके कण-कणमें नाम लिखा हुआ दीखता है । ऐसी मेरी वृत्ति हो रही है कि सब समय, सब जगह, सब देश, सब काल, सब वस्तु और सम्पूर्ण व्यक्तियोंमें राम-नाम परिपूर्ण हो रहा है । यह कितनी विलक्षण बात है ! कितनी अलौकिक बात है !

भगवान् रामजीने लंकापर विजय कर ली । अयोध्यामें आ करके गद्दीपर विराजमान हुए तो उस समय राजाओंने रामजीको कई तरहकी भेंट दी । विभीषणने रावणके इकट्ठे किये हुए बहुत कीमती-कीमती रत्नोंकी माला बनायी थी । माला बनानेमें यही उद्देश्य था कि जब महाराजका राज्यतिलक होगा, तब मैं भेंट करूँगा । इस तरहसे विभीषण वह माला लाया और समय पाकर उसने महाराजके गलेमें माला पहना दी । महाराजने देखा कि भाई, गहनोंकी शौक स्त्रियोंके ज्यादा होती है, ऐसे विचारसे रामजीने वह माला सीताजीको दे दी । सीताजीको जब माला मिली तो उनके मनमें विचार आया कि मैं यह माला किसको दूँ ! महाराजने तो मेरेको दे दी । अब मेरा प्यारा कौन है ? हनुमान्‌जी पासमें बैठे हुए थे । हनुमान्‌जी महाराजपर सीतामाताका बहुत सेह था, बड़ा वात्सल्य था और हनुमान्‌जी महाराज भी माँके चरणोंमें बड़ी भारी भक्ति रखते थे । माँने हनुमान्‌जीको इशारा किया तो चट पासमें चले गये । माँने हनुमान्‌जीको माला पहना दी । हनुमान्‌जी बड़े खुश हुए प्रसन्न हुए । वे रत्नोंकी ओर देखने लगे । जब माँने चीज दी है तो इसमें कोई विशेष बात है‒ऐसा विचार करके एक मणिको दाँतोंसे तोड़ दिया, पर उसमें भगवान्‌का नाम नहीं था तो उसे फेंक दिया । फिर दूसरी मणि तोड़ने लगे तो वहाँपर बड़े-बड़े जौहरी बैठे थे । उन्होंने कहा‒‘बन्दरको तो अमरूद देना चाहिये ! यह इन रत्नोंका क्या करेगा ? रत्नोंको तो यह दाँतोंसे फोड़कर फेंक रहा है ।’ किसीने उनसे पूछा‒‘क्यों फोड़ते हो ? क्या बात है ? क्या देखते हो ? हनुमान्‌जीने कहा‒‘मैं तो यह देखता हूँ कि इनमें भगवान्‌का नाम है कि नहीं । इनमें नाम नहीं है तो ये मेरे क्या कामके ? इस वास्ते इनको फोड़कर देख लेता हूँ और नाम नहीं निकलता तो फेंक देता हूँ ।’


उनसे फिर पूछा गया‒‘बिना नामके क्या तुम कुछ रखते ही नहीं ? हनुमान्‌जीने कहा‒‘ना, बिना नामके कैसे रखूँगा ? फिर पूछा गया‒‘तो तुम शरीरको कैसे रखते हो ? तब हनुमान्‌जीने नखोंसे शरीरकी त्वचाको चीर करके दिखाया । सम्पूर्ण त्वचामें जगह-जगह, रोम-रोममें राम, राम, राम, राम लिखा हुआ था‒‘चीरके दिखाई त्वचा अंकित तमाम, देखी चाम राम नामकी ।’ तो जो नाम जपनेवाले सज्जन हैं, वे नाममय बन जाते हैं ।