।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आश्विन शुक्ल पंचमी, वि.सं.–२०७५, रविवार
        करणसापेक्ष-करणनिरपेक्ष साधन
और करणरहित साध्य



जैसे, सत्य बोलना विधि है और झूठ न बोलना निषेध है । सत्य बोलनेवाला कभी झूठ भी बोल सकता है पर झूठ न बोलनेवाला या तो सत्य बोलेगा अथवा चुप रहेगा । सत्य बोलनेका तो महत्त्व दीखता है, पर झूठ न बोलनेका उतना महत्त्व नहीं दीखता । इसलिये सत्य बोलनेसे ‘मैं सत्यवादी हूँ’ ऐसा अहंकार आ सकता है, पर झूठ न बोलनेसे अहंकार आ ही नहीं सकता । इतना ही नहीं, मौनकी अपेक्षा भी झूठ न बोलना श्रेष्ठ है; क्योंकि मौन रहनेवाला जब कभी बोलेगा, तब झूठ भी बोल सकता है, पर झूठ न बोलनेवाला जब कभी बोलेगा, सत्य ही बोलेगा । तात्पर्य है कि विधिमें अर्थात् अपने उद्योगसे किये गये साधनमें अहंकार ज्यों-का-त्यों बना रहता है; क्योंकि उद्योग अहंकारपूर्वक ही होता है । कर्ता (करनेवाला) रहेगा, तभी तो उद्योग होगा ! यद्यपि निषेधमें भी अहंकार (निषेध करनेवाला) रहता है, तथापि साधकमें अहंकारके त्यागका ही उद्देश्य रहनेसे वह बाँधनेवाला नहीं होता । जिसका साधन विवेकप्रधान होता है, उसमें निषेधका अहंकार टिक ही नहीं सकता ।

भलाई करना विध्यात्मक साधन है और बुराईका त्याग करना निषेधात्मक साधन है । भलाई करनेसे कहीं-न-कहीं बुराई रह सकती है, पर बुराई न करनेसे भलाई सर्वथा आ जाती है । कारण कि भलाई असीम है । कितनी ही भलाई करें, पर वह बाकी रहेगी ही । भलाई करनेसे भलाईका अन्त नहीं आता, पर बुराई न करनेसे बुराईका अन्त आ जाता है । तात्पर्य है कि भलाई करनेसे भलाई बाकी रहती है, पर बुराई न करनेसे भलाई बाकी नहीं रहती ।

‘करना’ सीमित और ‘न करना’ असीम होता है । अतः भलाई करनेसे सीमित भलाई होती है और बुराई न करनेसे असीम भलाई होती है । तात्पर्य है कि भलाई स्वतःसिद्ध है और बुराई आगन्तुक है । परन्तु जब हम बुराईको स्वीकार करके भलाई करते हैं अर्थात् भलाईको कृतिसाध्य मानते हैं, तब हमारे द्वारा पूरी भलाई नहीं होती । बुराईको स्वीकार न करनेसे भलाई अपने-आप होती है करनी नहीं पड़ती, अपने-आप होनेवाला साधन असली होता है और जो साधन किया जाता है, वह नकली होता है तथा उसके साथ अभिमान रहता है । अगर हम बुराईका त्याग कर दें तो भलाई न करनेपर भी हम अपने-आप भले आदमी हो जायँगे ।


अगर हम बुराईका त्याग कर दें अर्थात् किसीका बुरा न करें, किसीका बुरा न सोचें, किसीकी बुराई न देखें, किसीकी बुराई न सुनें, किसीकी बुराईकी चर्चा न करें तथा किसीको स्वरूपसे कभी किंचिन्मात्र भी बुरा न समझें तो ऐसा करनेपर दो बातें होंगी‒हम कुछ नहीं करेंगे अथवा कुछ करेंगे तो भलाई ही करेंगे ।