Nov
25
प्रश्न‒स्त्री पुनर्विवाह क्यों नहीं कर सकती ?
उत्तर‒माता-पिताने कन्यादान
कर दिया तो अब उसकी कन्या संज्ञा ही नहीं रही; अतः उसका पुनः दान कैसे हो सकता
है ? अब उसका पुनर्विवाह
करना तो पशुधर्म ही है ।
सकृदंशो निपतति सकृत्कन्या प्रदीयते ।
सकृदाह ददानीति
त्रीण्येतानि सतां सकृत् ॥
(मनुस्मृति ९ । ४७, महाभारत वन॰ २९४
। २६)
‘कुटुम्बमें धन आदिका बँटवारा एक ही बार होता है, कन्या एक ही बार दी जाती है और ‘मैं दूँगा’‒यह वचन भी एक ही बार दिया जाता है । सत्पुरुषोंके ये तीनों कार्य एक
ही बार होते हैं ।’
शास्त्रीय, धार्मिक, शारीरिक
और व्यवहारिक‒चारों ही दृष्टियोंसे स्त्रीके लिये पुनर्विवाह करना अनुचित है । शास्त्रीय दृष्टिसे
देखा जाय तो शास्त्रमें स्त्रीको पुनर्विवाहकी आज्ञा नहीं दी गयी है । धार्मिक दृष्टिसे
देखा जाय तो पितृऋण पुरुषपर ही रहता है । स्त्रीपर पितृऋण आदि कोई ऋण नहीं है । शारीरिक
दृष्टिसे देखा जाय तो स्त्रीमें कामशक्तिको रोकनेकी ताकत है, एक मनोबल है ।
व्यावहारिक दृष्टिसे देखा जाय तो पुनर्विवाह करनेपर उस स्त्रीकी पूर्वसन्तान कहाँ जायगी
? उसका पालन-पोषण
कौन करेगा ? क्योंकि वह स्त्री जिससे विवाह करेगी, वह उस सन्तानको स्वीकार नहीं
करेगा । अतः स्त्रीजातिको चाहिये कि वह पुनर्विवाह न करके ब्रह्मचर्यका पालन करे, संयमपूर्वक रहे
।
शास्त्रमें
तो यहाँतक कहा गया है कि जिस स्त्रीकी पाँच-सात सन्तानें हैं, वह
भी यदि पतिकी मृत्युके बाद ब्रह्मचर्यका पालन करती है तो वह नैष्ठिक ब्रह्मचारीकी गतिमें
जाती है । फिर जिसकी सन्तान नहीं है, वह
यदि पतिके मरनेपर ब्रह्मचर्यका पालन करती है तो उसकी नैष्ठिक ब्रह्मचारीकी गति होनेमें
कहना ही क्या है ?
प्रश्न‒यदि युवा स्त्री विधवा हो जाय तो उसको क्या करना चाहिये ?
|