Jun
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‘जिसे पा जानेपर उससे बढ़कर दूसरा
कोई लाभ नहीं जान पड়ता तथा जिस स्थितिमें स्थित हो जानेपर मनुष्यको कोई भारी
दुःख कभी विचलित नहीं कर सकता ।’ तात्पर्य यह कि जिसमें
दुःख, अल्पज्ञता, अशान्ति, असहिष्णुता आदि कोई भी दोष नहीं है, ऐसी परम शान्तिमयी अवस्थाको वह प्राप्त हो जाता
है ।
अहा ! भगवान्की कितनी अलौकिक कृपा है–
‘बिनु सेवा जो द्रवहिं दीन पर राम सरिस कोउ नाहीं
।’
‘दुराचारी भी यदि भगवान्का भजन करने लगे तो वह शीघ्र ही
धर्मात्मा बन जाता है ।’ भगवान्ने दुराचारीकी बात तो कही; अब जो पूर्वजन्मके
अनुचित आचरणके कारण नीच योनिमें जन्म लेते हैं, वे भी भक्तिके अधिकारी हैं, यह बात
भी भगवान् कहते हैं–
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः
।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥
(गीता ९/३२)
‘पापयोनिवाले जीव भी मेरा आश्रय लेकर परमपदको
प्राप्त हो जाते हैं; स्त्री, वैश्य और शूद्र भी परमपदको जाते हैं ।’ जो जाति-बहिष्कृत है, जिसको स्पर्श करनेमें भी लोगोंको
हिचक होती है, ऐसे पुरुषको भी यदि वह भक्त है तो भगवान् परमप्रिय मानते हैं ।
रामावतारमें भगवान् श्रीरामचन्द्रजी गुहको हृदयसे लगाकर भेंटते हैं । भरतजी भी
लक्ष्मणकी तरह उसे भेंटते हैं । भक्त तो त्रिभुवनको पवित्र करनेवाला होता है ।
शास्त्रपरम्परासे अहिंसादि सामान्य
धर्मोंकी भाँती भक्तिमें भी चाण्डालादि सभी योनिके मनुष्योंका अधिकार है ।
‘आनिन्द्ययोन्यधिक्रियते पारम्पयात् सामान्यवत् ।
(शाण्डिल्यभक्ति-सूत्र
७८)
भगवद्भक्तिके अधिकारी नीच-से-नीच
व्यक्ति भी हैं । यहाँ ‘पापयोनि’ शब्द इतना व्यापक है कि आभीर, यवन, कंक, खशादि
जातिके मनुष्य भी इसीके अन्तर्गत लिये जा सकते हैं । चारों वर्णोंके सिवा जितनी
योनीयाँ हैं, सब पापयोनि ही हैं ।
‘बड़ सेयाँ बड़ होत है’ उक्तिके अनुसार बड़ोंका आश्रय पाकर प्रायः सभी बडे़ हो जाते
हैं । छोटा-सा जन्तु भी यदि सज्जन पुरुषोंका संग करे तो वह कष्टसाध्य कार्य भी
सुगमतासे ही सिद्ध कर लेता है । जब सज्जनोंके संगियोंका संग करनेसे ऐसा फल मिलता
है, तब साक्षात् भगवान्का साथ होनेपर मनुष्य श्रेष्ठ बन जाय–इसमें कौन-सी
आश्चर्यकी बात है । ‘मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य॰’ (९/३१)–इस श्लोकमें
जो ‘पापयोनयः’ पद है, वह स्वतन्त्र है; स्त्री,
वैश्य और शूद्रका विशेषण नहीं । क्योंकि वैश्यका वेदोंमें अधिकार है । ‘स्त्री’ शब्दसे ब्राह्मण-क्षत्रियोंकी स्त्रियोंका भी
ग्रहण हो जाता है । वे अपने-अपने पतिके साथ यज्ञमें बैठ सकती हैं । ब्राह्मणी
समस्त जातिकी पूजनीया है, इसलिये यह पापयोनि नहीं कही जा सकती ।
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