भगवान् माँसे भी अधिक दयालु हैं । आपकी सरलतासे
कही हुई बातकी भगवान्के यहाँ बहुत सरलतासे सुनाई होती है । भोले बालककी बातको माँ बड़े आदरसे सुनती है । पढ़ा-लिखा नहीं,
समझदार नहीं, धन-सम्पत्ति नहीं है तो क्या हुआ ?
वह केवल माँको ही अपनी मानता है । इस
अपनापनके समान कोई साधन नहीं है । इसके समान कोई योग्यता नहीं है । इसके समान कोई बल
नहीं है; कोई अधिकार नहीं है । सब अधिकार इसके पीछे हैं ।
हम प्रभुके है और प्रभु हमारे हैं ।
प्रश्न उठता है कि हम किस आधारपर ऐसे मानें ?
भगवान् कहते हैं‒‘सब मम प्रिय सब मम उपजाए ।’, ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।’ (गीता १५/७) । सबकी गणनामें आये
कि नहीं ? ‘समोऽहं सर्वभूतेषु (गीता ९/२९) ‘भूत’
शब्दमें वृक्ष-लतातक आ जाते हैं । पशु-पक्षी,
मनुष्य सब आ जाते हैं । भगवान् कहते हैं‒सब मेरे प्यारे हैं । ‘विश्वम्भरो
देवः’ भगवान् सारे संसारका पालन करते हैं । सबको अपना मानते हैं । वे प्रभु हमारे हैं,
पूरे-के-पूरे हमारे हैं । संसारका प्राणी पूरा-का-पूरा किसी
एकका नहीं हो सकता । जैसे‒माँपर आपका पूरा अधिकार नहीं हो सकता;
क्योंकि उसपर आपके सिवाय भी पिताका,
मामाका, बहिन आदि अनेकोंका अधिकार है । परन्तु भगवान् सबके पूरे-के-पूरे
हो सकते हैं । इसलिये भगवान्पर पूरा-का-पूरा अधिकार जमा लो,
वे अपने हैं । भगवान् हमारे हैं और
हम भगवान्के हैं । आप कृपा करके इस बातको मान लो । यह सच्ची बात है । मैंने
यह बात अच्छे सन्तोंसे सुनी है, मैंने पुस्तकोंमें पढ़ी है । सन्तोंने ऐसी मानी है । जिन्होंने
यह बात मानी है, उनका बेड़ा पार हुआ है । इस विषयमें गोस्वामीजी महाराज अपनी जमानत
देते हुए कहते हैं‒
सत्य बचन आधीनता पर तिय मातु समान ।
एते में हरि ना मिले तो तुलसीदास जमान ॥
यहाँ आधीनताका भाव है‒भगवान्के
चरणोंका ही आश्रय । किसी दूसरेकी आशा,
भरोसा,
विश्वास बिलकुल नहीं । केवल एक प्रभुकी आधीनता । आँख मिचते ही जो सब-का-सब खत्म हो जाता है,
उसका क्या भरोसा रखना ! और ‘आस बिस्वास
भरोसो हरो जीव जड़ताई ।’
जीवकी यही खास जड़ता है कि भगवान्का भरोसा छोड़कर
संसारका भरोसा रखता है । इसलिये प्रभुके चरणोंकी शरण हो जाओ‒
काल भजन्त आज भज,
आज भजन्ता अब ।
पलमें परलय होयगी, फेर भजेगो कब ॥
एक सज्जनने सुनाया‒‘वर्षाके कारण जयपुरमें बहुत-से घर-के-घर बह गये । घरोंका नाम-निशानतक
नहीं रहा ।’ पहाड़ टूट जानेसे गलताजीका (जयपुरके पासका तीर्थ-स्थान) नाम-निशान नहीं रहा ।’
अब सोचो‒आप-हम
तो क्या चीज हैं ? पता नहीं, किस
क्षण चले जायँ ! इसलिये अब देरी नहीं करना है एक क्षणकी भी । अभीसे ही ‘हे
नाथ ! मैं आपका हूँ ’‒इस बातको आप दृढ़तासे मान लें । भगवान्ने तो सब जीवोंको अपना मान रखा ही है । आप इस प्रकार
स्वीकार करके निश्चिन्त हो जायँ ।
चिन्ता दीनदयाल को, मो मन
सदा आनन्द ।
जायो सो प्रतिपालिहै, रामदास गोबिन्द
॥
जिसने जन्म दिया है उसके ऊपर ही पालन करनेकी जिम्मेवारी है ।
वह जाने, उसका काम जाने । वे हमारा जितना हित करते हैं,
हमारेमें जाननेकी उतनी शक्ति नहीं है । हमारी बुद्धि इतनी सूक्ष्म
और तेज नहीं, जिससे हम भगवान्के प्रबन्धको भी समझ लें ।
जिसने भगवान्का ही आश्रय लिया है और जो भगवान्के शरण चला गया
है, उसका उद्धार हुआ है । ऐसे शरणागत भक्तोंकी कथाओंसे ग्रन्थ भरे पड़े हैं । आप भी
क्यों नहीं भगवान्की शरण ले लेते । शरण लेकर निश्चिन्त हो जाओ । भगवान्की शरणके समान उनकी प्राप्तिका और कोई दूसरा सरल-सीधा उपाय
है ही नहीं । अतः केवल भगवान्की शरण हो जाओ, यही
सार है ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒
‘कल्याणकारी प्रवचन भाग-२’
पुस्तकसे
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