।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण षष्ठी, वि.सं. २०७६ बुधवार
                शरणागति
        


भगवान्‌ माँसे भी अधिक दयालु हैं । आपकी सरलतासे कही हुई बातकी भगवान्‌के यहाँ बहुत सरलतासे सुनाई होती है । भोले बालककी बातको माँ बड़े आदरसे सुनती है । पढ़ा-लिखा नहीं, समझदार नहीं, धन-सम्पत्ति नहीं है तो क्या हुआ ? वह केवल माँको ही अपनी मानता है । इस अपनापनके समान कोई साधन नहीं है । इसके समान कोई योग्यता नहीं है । इसके समान कोई बल नहीं है; कोई अधिकार नहीं है । सब अधिकार इसके पीछे हैं । हम प्रभुके है और प्रभु हमारे हैं ।

प्रश्न उठता है कि हम किस आधारपर ऐसे मानें ? भगवान्‌ कहते हैंसब मम प्रिय सब मम उपजाए ।, ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । (गीता १५/७) । सबकी गणनामें आये कि नहीं ? समोऽहं सर्वभूतेषु (गीता ९/२९) भूत शब्दमें वृक्ष-लतातक आ जाते हैं । पशु-पक्षी, मनुष्य सब आ जाते हैं । भगवान्‌ कहते हैंसब मेरे प्यारे हैं । विश्वम्भरो देवः भगवान्‌ सारे संसारका पालन करते हैं । सबको अपना मानते हैं । वे प्रभु हमारे हैं, पूरे-के-पूरे हमारे हैं । संसारका प्राणी पूरा-का-पूरा किसी एकका नहीं हो सकता । जैसेमाँपर आपका पूरा अधिकार नहीं हो सकता; क्योंकि उसपर आपके सिवाय भी पिताका, मामाका, बहिन आदि अनेकोंका अधिकार है । परन्तु भगवान्‌ सबके पूरे-के-पूरे हो सकते हैं । इसलिये भगवान्‌पर पूरा-का-पूरा अधिकार जमा लो, वे अपने हैं । भगवान्‌ हमारे हैं और हम भगवान्‌के हैं । आप कृपा करके इस बातको मान लो । यह सच्‍ची बात है । मैंने यह बात अच्छे सन्तोंसे सुनी है, मैंने पुस्तकोंमें पढ़ी है । सन्तोंने ऐसी मानी है । जिन्होंने यह बात मानी है, उनका बेड़ा पार हुआ है । इस विषयमें गोस्वामीजी महाराज अपनी जमानत देते हुए कहते हैं

सत्य बचन आधीनता पर तिय मातु समान ।
एते में हरि ना मिले तो तुलसीदास जमान ॥

यहाँ आधीनताका भाव हैभगवान्‌के चरणोंका ही आश्रय । किसी दूसरेकी आशा, भरोसा, विश्वास बिलकुल नहीं । केवल एक प्रभुकी आधीनता । आँख मिचते ही जो सब-का-सब खत्म हो जाता है, उसका क्या भरोसा रखना ! और आस बिस्वास भरोसो हरो जीव जड़ताई । जीवकी यही खास जड़ता है कि भगवान्‌का भरोसा छोड़कर संसारका भरोसा रखता है । इसलिये प्रभुके चरणोंकी शरण हो जाओ

काल भजन्त आज भज, आज भजन्ता अब ।
पलमें  परलय  होयगीफेर  भजेगो  कब ॥

एक सज्जनने सुनाया‒‘वर्षाके कारण जयपुरमें बहुत-से घर-के-घर बह गये । घरोंका नाम-निशानतक नहीं रहा ।पहाड़ टूट जानेसे गलताजीका (जयपुरके पासका तीर्थ-स्थान) नाम-निशान नहीं रहा ।अब सोचोआप-हम तो क्या चीज हैं ? पता नहीं, किस क्षण चले जायँ ! इसलिये अब देरी नहीं करना है एक क्षणकी  भी । अभीसे ही हे नाथ ! मैं आपका हूँ ’‒इस बातको आप दृढ़तासे मान लें । भगवान्‌ने तो सब जीवोंको अपना मान रखा ही है । आप इस प्रकार स्वीकार करके निश्चिन्त हो जायँ ।

चिन्ता दीनदयाल को, मो मन सदा आनन्द ।
जायो  सो  प्रतिपालिहैरामदास  गोबिन्द ॥

जिसने जन्म दिया है उसके ऊपर ही पालन करनेकी जिम्मेवारी है । वह जाने, उसका काम जाने । वे हमारा जितना हित करते हैं, हमारेमें जाननेकी उतनी शक्ति नहीं है । हमारी बुद्धि इतनी सूक्ष्म और तेज नहीं, जिससे हम भगवान्‌के प्रबन्धको भी समझ लें ।

जिसने भगवान्‌का ही आश्रय लिया है और जो भगवान्‌के शरण चला गया है, उसका उद्धार हुआ है । ऐसे शरणागत भक्तोंकी कथाओंसे ग्रन्थ भरे पड़े हैं । आप भी क्यों नहीं भगवान्‌की शरण ले लेते । शरण लेकर निश्चिन्त हो जाओ । भगवान्‌की शरणके समान उनकी प्राप्तिका और कोई दूसरा सरल-सीधा उपाय है ही नहीं । अतः केवल भगवान्‌की शरण हो जाओ, यही सार है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘कल्याणकारी प्रवचन भाग-२पुस्तकसे