गया हुआ धन पुनः प्राप्त हो सकता है, पर गया हुआ समय पुनः
प्राप्त नहीं होता । धनकी तरह समयको तिजोरीमें बन्द करके भी नहीं रख सकते । अतः हर
समय सावधान रहकर समयका सदुपयोग करना चाहिये ।
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पैसोंको तो तिजोरीमें बन्द करके रखा जा सकता है, पर समयको
बन्द करके नहीं रखा जा सकता । अतः अपने अमूल्य समयको व्यर्थके कामोंमें खर्च नहीं
करना चाहिये ।
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समयका सदुपयोग न करनेवाला व्यक्ति किसी भी क्षेत्रमें सफल
नहीं हो सकता ।
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देखनेमें तो ऐसा दीखता है कि समय जा रहा है, पर वास्तवमें शरीर जा रहा है !
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विचार करें कि जो समय चला गया, उस
समयके सदुपयोगसे हम परमात्मप्राप्तिके मार्गपर कितना आगे बढ़े हैं ?
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भगवान्से विमुख होनेपर ही मनुष्य करने, जानने और पानेकी
कमीका अनुभव करता है ।
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परमात्मतत्त्वसे विमुख हुए बिना कोई सांसारिक भोग भोगा ही
नहीं जा सकता और रागपूर्वक सांसारिक भोग भोगनेसे मनुष्य परमात्मासे विमुख हो ही
जाता है ।
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भगवान्से विमुख होते ही जीव अनाथ हो
जाता है ।
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जो जगत्को नहीं जानते, वही जगत्में
फँसते हैं और जो परमात्माको नहीं जानते, वही परमात्मासे विमुख होते हैं ।
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संसारसे कुछ लेनेकी इच्छा करते ही हम भगवान्से
विमुख हो जाते हैं ।
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‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे
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