Sep
30
।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आश्विन शुक्ल द्वितीया, वि.सं. २०७६ सोमवार
भगवान्‌से अपनापन



हम अपनी तरफसे भगवान्‌को अपना मानते नहीं, पर भगवान्‌ अपनी तरफसे हमें अपना मानते हैं । मानते ही नहीं, जानते भी हैं । बच्‍चा माँको अपनी माँ मानता है, पर कभी-कभी अड़ जाता है कि तू मेरा कहना नहीं मानती तो मैं तेरा बेटा नहीं बनूँगा । माँ हँसती है; क्योंकि वह जानती है कि बेटा तो मेरा ही है । बच्‍चा समझता है कि माँको मेरी गरज है, बेटा बनना माँको निहाल करना है, इसलिये कहता है कि तेरा बेटा नहीं बनूँगा, तेरी गोदमें नहीं आऊँगा । परन्तु बेटा नहीं बननेसे हानि किसकी होगी ? माँका क्या बिगड़ जायगा ? माँ तो बच्‍चेके बिना वर्षोसे जीती रही है, पर बच्‍चेका निर्वाह माँके बिना कठीन हो जायगा । बच्‍चा उलटे माँपर अहसान करता है । ऐसे ही हम भी भगवान्‌पर अहसान कर सकते है !

भगवान्‌के एक बड़े प्यारे भक्त थे, नाम याद नहीं है । वे रात-दिन भगवद्भजनमें तल्लीन रहते थे । किसीने उनके लिये एक लंबी टोपी बनायी । उस टोपीको पहनकर वे मस्त होकर कीर्तन कर रहे थे । कीर्तन करते-करते वे प्रेममें इतने मग्न हो गये कि भगवान्‌ स्वयं आकर उनके पास बैठ गये और बोले कि भगतजी ! आज तो आपने बड़ी ऊँची टोपी लगायी ! वे बोले कि किसीके बापकी थोड़े ही है, मेरी है । भगवान्‌ने कहा कि मिजाज करते हो ? तो बोले कि माँगकर थोड़े ही लाये हैं मिजाज ? भगवान्‌ पूछा कि मेरेको जानते हो ? वे बोले कि अच्छी तरहसे जानता हूँ । भगवान्‌ बोले कि यह टोपी बिक्री करते हो क्या ? वे बोले कि तुम्हारे पास देनेको है ही क्या जो आये हो खरीदनेके लिये ? त्रिलोकी ही तो है तुम्हारे पास, और देनेको क्या है ? भगवान्‌ बोले कि इतना मिजाज ! तो वे बोले कि किसीका उधार लाये हैं क्या ? भगवान्‌ने कहा कि देखो, मैं दुनियासे कह दूँगा कि ये भगत-वगत कुछ नहीं हैं तो दुनिया तुम्हारेको मानेगी नहीं । वे बोले कि अच्छा, आप भी कहा दो, हम भी कह देंगे कि भगवान्‌ कुछ नहीं हैं । आपकी प्रसिद्धि तो हमलोगोंने की है, नहीं तो आपको कौन जानता है ? भगवान्‌ने हार मान ली !


माँके हृदयमें जितना प्रेम होता है उतना प्रेम बच्‍चोंके हृदयमें नहीं होता । ऐसे ही भगवान्‌के हृदयमें अपार स्नेह है । अपने स्नेहको, प्रेमको वे रोक नहीं सकते और हार जाते हैं ! और सबसों गये जीत, भगतसे हार्यो कितनी विलक्षण बात है ! ऐसे भगवान्‌के हो जाओ । दूसरोंके साथ हमारा सम्बन्ध केवल उनकी सेवा करनेके लिये है । उनको अपना नहीं मानना है । अपना केवल भगवान्‌को मानना है । भगवान्‌की भी सेवा करनी है, पर उनसे लेना कुछ नहीं है ।