Oct
01
आपकी कन्या अपनी अहंता बदल देती है,
अपनेको दूसरे घरकी बहू मान लेती है । क्या आपमें उस कन्या-जितनी
सामर्थ्य भी नहीं है ? जिस कन्याका आपने पालन-पोषण किया,
बड़ी धूमधामसे विवाह किया,
उस कन्याके बदलनेपर (दूसरे घरको अपना माननेपर) भी आप नाराज नहीं
होते । ऐसे ही आप अपनेको भगवान्का और भगवान्को अपना
मान लें तो कोई नाराज नहीं होगा;
क्योंकि यह सच्ची बात है । मीराबाईने कहा—‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों
न कोई ।’ गिरधर गोपालके सिवाय मेरा कोई नहीं है और मैं किसीकी नहीं
हूँ ।
आप नौकरी करो तो आपकी योग्यताके अनुसार आपको तनख्वाह मिलेगी
। परन्तु आप घरमें माँके पास जाओ तो क्या माँ आपकी योग्यताके अनुसार रोटी देगी ।
आप काम करो तो भी रोटी देगी और काम न करो तो भी रोटी देगी । इस तरह भजन करनेसे ही भगवान्से सम्बन्ध होगा, भजन
न करनेसे सम्बन्ध नहीं होगा—यह बात नहीं है । यदि आप भगवान्से अपनापन कर लेंगे
कि हे नाथ ! मैं तो आपका ही बालक हूँ,
तो भगवान् सोचेंगे कि यह जैसा भी है, अपना
ही बालक है ! अतः भगवान् को आपका पालन करना ही पड़ेगा । इसलिये ‘मैं तो
आपका ही हूँ और आप ही मेरे हैं’—यह बड़ा
सीधा रास्ता है ।
भगवान् कहते हैं कि यह जीव है तो मेरा ही अंश,
पर प्रकृतिमें स्थित शरीर,
इन्द्रियों, मन, बुद्धिको खींचता है,
उनको अपना मानता है (गीता १५/७) ! अरे किस धंधेमें लग गया !
है कहाँका और कहाँ लग गया ! संसारकी सेवा करो । अपने तन, मन, धन, बुद्धि, योग्यता, अधिकार
आदिसे दूसरोंको सुख पहुँचाओ, पर उनको अपना मत मानो । यह अपनापन टिकेगा नहीं ।
केवल सेवा करनेके लिये ही वे अपने हैं । संसारकी जिन चीजोंमें अपनापन कर लेते
हैं, वे ही हमें पराधीन बनाती हैं । वहम होता है कि इतना परिवार मेरा,
इतना धन मेरा, पर वास्तवमें ये तेरे नहीं हैं,
तू इनका हो गया, इनके पराधीन हो गया ! न तो ये हमारे साथ रहेंगे और न हम इनके
साथ रहेंगे । इसलिये बड़े उत्साह और तत्परतासे इनकी सेवा करो तो दुनिया भी राजी हो जाय
और भगवान् भी राजी हो जायँ ! आप भी सदा आनन्दमें,
मौजमें रहें ! जब सेवा करनेवाला नहीं मिलता,
तब सेवा चाहनेवाला दुःखी रहता है । परन्तु सेवा करनेवाला सदा सुखी रहता है, आनन्दमें
रहता है ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒ ‘भगवान्से
अपनापन’ पुस्तकसे
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