श्रोता‒आजकल दुनियामें ढूँढ़नेपर भी
गुरु नहीं मिलता । मिलता है तो ठग मिलता है । हम गुरु ढूँढ़नेके लिये कई
तीर्थोंमें गये, पर कोई मिला ही नहीं । आप कहते हैं कि जगद्गुरु कृष्णको अपना गुरु
मान लो । अगर आप यह घोषणा कर दें कि भाई ! आपलोग कृष्णको ही गुरु मानो तो यह वहम
ही मिट जाय ........!
स्वामीजी‒वास्तवमें गुरुको ढूँढ़ना नहीं
पड़ता । फल पककर तैयार होता है तो तोता खुद उसको ढूँढ़ लेता है । ऐसे ही अच्छे गुरु
खुद चेलेको ढूँढ़ते हैं, चेलेको ढूँढ़ना नहीं पड़ता । जैसे ही आप कल्याणके लिये
तैयार हुए, गुरु फट आ टपकेगा ! फल पककर तैयार होता है तो तोता अपने-आप उसके
पास आता है, फल तोतेको नहीं बुलाता । ऐसे ही आप तैयार हो जाओ कि अब मुझे अपना
कल्याण करना है तो गुरु अपने-आप आयेगा । बालकका पालन माँ ही कर सकती है, पर माँको
बालककी ज्यादा गरज होती है, बालकको माँकी गरज नहीं होती । इतनी देर हो गयी, बालकने
दूध नहीं पिया, क्या बात है ?‒ यह चिन्ता माँको रहती है । ऐसे ही जब मनुष्य असली शिष्य बन जाता है, उसमें अपने उद्धारकी लालसा
लग जाती है, तब गुरु अपने-आप उसे ढूँढ़ लेता है । जो असली गुरु होते हैं, वे
दूसरेको चेला नहीं बनाते, प्रत्युत गुरु ही बनाते हैं ।
परसमें अरु संतमें बहुत अंतरौ
जान ।
वह लोहा कंचन करे वह करै आपु सामन ॥
जिसको वे
चेला बनाते हैं, वह दुनियाका गुरु बन जाता है । वहाँ ऐसी टकसाल है, जहाँसे गुरु-ही-गुरु
निकलते हैं । दूसरेको
अपना चेला बनाना तो पशुका काम है । कुत्ता दूसरे कुत्तेको काटता हैं और जब
वह कुत्ता नीचे गिर जाता है तो यह ऊपर हो जाता है और राजी हो जा जाता है । दूसरेको चेला बनाकर, अपना मातहत (अधीन) बनाकर राजी होना क्या
गुरुका लक्षण है ? भगवान्के दरबारमें अंधेर नहीं है । अगर आप तैयार हो जाओ
तो अच्छे-अच्छे गुरु आपकी गरज करेंगे । बच्चेके बिना माँ वर्षोंतक रह सकती है और रहती आयी है, पर बच्चा माँके बिना नहीं रह सकता । फिर भी बच्चेमें माँकी जितनी गरज होती है, उससे ज्यादा माँमें बच्चेकी गरज होती है । परन्तु बच्चा माँके हृदयको समझ ही नहीं सकता । ऐसे ही गुरु चेलेके बिना
रह सकता है, पर चेला गुरुके बिना नहीं रह सकता । चेलेके भीतर अपने उद्धारकी जितनी
लगन होती है, उससे ज्यादा गुरुमें चेलेके
उद्धारकी लगन होती है । परन्तु चेला गुरुके हृदयको समझ ही नहीं सकता ।
|