जय गौमाता जय गोपाल
सभीको गोपाष्टमीकी हार्दिक शुभकामना
वास्तविक
आरोग्य परमात्मप्राप्तिमें ही है । इसलिये गीतामें परमात्माको ‘अनामय’ कहा गया
है‒‘जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्’ (२/५१) ।
‘आमय’ नाम रोगका है । जिसमें किंचिन्मात्र भी किसी प्रकारका रोग अथवा विकार
न हो, उसको ‘अनामय’ अर्थात् निर्विकार कहते हैं । जन्ममरण
ही सबसे बड़ा रोग है‒‘को दीर्घरोगो भव एव साधो’ (प्रश्नोत्तरी ७) । अनामय-पदकी प्राप्ति होनेपर इन जन्म-मरणरूप रोगका सदाके
लिये नाश हो जाता है । इसलिये
जो महापुरुष परमात्मतत्त्वको प्राप्त हो चुके हैं, वही असली निरोग हैं । उपनिषद्में
आया है‒
आत्मानं चेद् विजानीयादयमस्मीति
पूरुषः ।
किमिच्छन् कस्य कामाय शरीरमनुसंज्वरेत् ॥
(बृहदारण्यक॰ ४/४/१२)
‘यदि पुरुष आत्माको इस प्रकार विशेषरूपसे जान जाय तो फिर
क्या इच्छा करता हुआ और किस कामनासे शरीरके तापसे अनुतप्त हो ?’
तात्पर्य है कि आत्मा और परमात्मा‒दोनों निरोग (अनामय) हैं । रोग केवल शरीरमें ही आता है ।
इसलिये कहा गया है‒‘शरीरं व्याधिमन्दिरम्’ । शरीरमें
रोग दो प्रकारसे आते हैं‒प्रारब्धसे और कुपथ्यसे । पुराने
पापोंका फल भुगतानेके लिये शरीरमें जो रोग पैदा होते हैं, वे ‘प्रारब्धजन्य’ कहलाते हैं ।
जो रोग निषिद्ध खान-पान, आहार-विहार आदिसे पैदा होते हैं, वे ‘कुपथ्यजन्य’ कहलाते हैं ।
अतः पथ्यका सेवन करनेसे, संयमपूर्वक रहनेसे और दवाई लेनेसे भी जो रोग नहीं मिटता,
उसको ‘प्रारब्धजन्य’ जानना चाहिये । दवाई और पथ्यका सेवन करनेसे जो रोग मिट जाता
है, उसको ‘कुपथ्यजन्य’ जानना चाहिये ।
कुपथ्यजन्य रोग चार प्रकारके होते हैं‒१. साध्य‒जो
रोग दवाई लेनेसे मिट जाते हैं । २. कृच्छ्रसाध्य‒जो रोग कई दिनतक दवाई और
पथ्यका विशेषतासे सेवन करनेपर मिटते हैं । ३. याप्य‒जो पथ्य आदिका सेवन
करनेसे दबे रहते हैं, जड़से नहीं मिटते । ४. असाध्य‒जो रोग दवाई आदिका सेवन
करनेपर भी नहीं मिटते । प्रारब्धसे होनेवाला रोग तो असाध्य होता ही है, कुपथ्यसे
होनेवाला रोग भी ज्यादा दिन रहनेसे कभी-कभी असाध्य हो जाता है । ऐसे असाध्य रोग प्रायः दवाइयोंसे दूर नहीं होते । किसी सन्तके
आशीर्वादसे, मन्त्रोंके प्रबल अनुष्ठानसे अथवा विशेष पुण्यकर्म करनेसे ऐसे रोग दूर
हो सकते हैं ।
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