।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    फाल्गुन अमावस्या, वि.सं.२०७६ रविवार
अपना किसे मानें ?


स्थूलशरीरसे होनेवाली क्रिया, सूक्ष्मशरीरसे होनेवाला चिन्तन और कारणशरीरसे होनेवाली समाधि दूसरोंके लिये ही है, अपने लिये है ही नहीं । इनके द्वारा कभी अपनी तृप्ति नहीं होती, चाहे लाखों-करोड़ों, अरबों-खरबों वर्ष क्यों न बीत जायँ ! ये सब नाशवान्‌ हैं और आप सब साक्षात् परमात्माके अंश हैं । चौरासी लाख योनियाँ भुगतते हुए सब शरीर छूट गये तो क्या यह शरीर नहीं छूटेगा ? जिस माटीके वे शरीर थे, उसी माटीका यह शरीर है । यह भी मिला है और बिछुड़ेगा ।

इस एक ही बातको ठीक तरहसे मान लो, पक्का कर लो कि जो वस्तु मिलती है और बिछुड़ जाती है, वह अपनी नहीं होती । जैसे बालकपना आपके साथ था, पर वह बिछुड़ गया, ऐसे ही जवानी भी बिछुड़ जायगी, वृद्धावस्था भी बिछुड़ जायगी, रोगावस्था भी बिछुड़ जायगी, निर्धनता भी बिछुड़ जायगी, धनवत्ता भी बिछुड़ जायगी । ये सब बिछुड़नेवाली चीजें हैं ।

विचार करें, क्या यह शरीर बिछुड़नेवाला नहीं है ? क्या धन-सम्पत्ति बिछुड़नेवाली नहीं है ? क्या घर, जमीन, रुपये, कुटुम्ब आदि बिछुड़नेवाले नहीं हैं ? क्या ये आपसे अलग नहीं होंगे ? क्या आप इनसे अलग नहीं होंगे ? अभी आपके जितने साथी हैं, क्या ये सदा आपके साथ रहेंगे ? जो आपसे अलग होनेवाले हैं, उनकी सेवा करो, उनको सुख-आराम पहुँचाओ, उनसे अच्छा बर्ताव करो । सदा साथ रहनेवाले एक भगवान्‌ ही हैं । उनको आप चाहे सगुण मानो, चाहे निर्गुण मानो, चाहे द्विभुज मानो, चाहे चतुर्भुज मानो, आपकी जैसी मरजी हो, वैसा मानो । वे ही सदा साथ रहनेवाले हैं । उनके सिवाय और कोई साथ रहनेवाला नहीं है । उनके सिवाय सब बिछुड़नेवाले हैं । अच्छे-अच्छे सन्त-महात्माओंका भी शरीर नहीं रहा, फिर आपका शरीर कैसे रह जायगा ? आज दिनतक ऐसी रीत चली आ रही है, अब क्या कोई नयी रीत हो जायगी ? जानेवालेमें मोह मत करो । मोह करोगे तो रोना पड़ेगा ।

हम भगवान्‌के हैं, भगवान्‌ हमारे हैं । हम और किसीके नहीं हैं, और कोई हमारा नहीं है । इस बातको आज मान लो तो आज ही सुखी हो जाओगे । सेवा करनेके लिये सब अपने हैं । सब भगवान्‌के प्यारे हैं, इसलिये सबकी सेवा करो । भगवान्‌ने कहा है‒‘सब मम प्रिय सब मम उपजाए’ (मानस, उत्तर ८६/२) । सबकी सेवा करो, पर किसीको अपना मत मानो । आपका रोना, दुःख छूट जायगा । अगर आपसे मोह न छूटे तो सच्चे हृदयसे भगावनको पुकारो कि हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आफतमें फँस गया ! मेरी आफत छुड़ाओ ! भगवान्‌ अवश्य छुड़ा देंगे ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘सब साधनोंका सार’ पुस्तकसे