।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७६ शनिवार
अपना किसे मानें ?


ईश्वरका अंश होनेसे जीव अविनाशी है, चेतन है, मलरहित है और सहज सुखराशी है । परन्तु मिलने और बिछुड़नेवाले पदार्थोंको अपना मानकर दुःख पा रहा है । यह कभी माताका वियोग होनेसे रोता है, कभी पिताका वियोग होनेसे रोता है, कभी स्त्रीका वियोग होनेसे रोता है, कभी पुत्रका वियोग होनेसे रोता है, कभी मित्रका वियोग होनेसे रोता है ! यह सोचता ही नहीं कि जिनसे रोना पड़े, ऐसोंको अपना साथी क्यों बनाऊँ ? संसारके सभी सम्बन्ध सेवा करनेके लिये हैं, अपना माननेके लिये नहीं । उनको अपना मानोगे तो एक दिन रोना ही पड़ेगा । जिनको हम अपना प्रिय मानते हैं, वे एक दिन हमें रुलायेंगे‒‘प्रियं रोत्स्यति’ (बृहदारण्यक १/४/८) । इसलिये हमें ऐसा साथी बनाना चाहिये, जिसके लिये कभी रोना पड़े ही नहीं । पीछे रोना पड़े, ऐसी भूल करें ही क्यों ? कोई बालक या जवान मर जाता है तो बूढ़ी माताएँ कहती हैं कि हमने ऐसा नहीं जाना था कि यह हमारेको छोड़ जायगा ! नहीं जाना था तो अब जान जाओ कि ये सभी जानेवाले हैं । अब ऐसा साथी बनाओ कि कभी छोड़कर जाय ही नहीं । ऐसा साथी केवल भगवान्‌ ही हैं । भगवान्‌ कभी बदलते ही नहीं, कभी बूढ़े होते ही नहीं, कभी उनके सफ़ेद बाल होते ही नहीं, कभी मरते ही नहीं । उनका बनाया हुआ संसार तो सेवा करनेके लिये है । सेवा करनेकी सामग्रीको भोग-सामग्री समझ लेना गलती है । जिस वस्तुका संयोग और वियोग होता है, वह वस्तु अपनी और अपने लिये होती ही नहीं । उसको केवल सेवाके लिये ही मानो । आज मानो तो आज निहाल हो जाओगे । जैसे मनुष्य दान-पुण्यके लिये पैसे निकालता है तो उसके भीतर यह भाव रहता है कि यह पैसा अपने लिये नहीं है, देनेके लिये है । ऐसे ही संसारकी सब वस्तुओंके लिये मान लो कि ये अपने लिये नहीं हैं, सेवाके लिये हैं । उनसे अपना शरीर-निर्वाह करनेमें कोई हर्ज नहीं है । उनसे अपना निर्वाह तो करो, पर उनको अपना साथी मत मानो ।


आप प्रत्यक्ष देखते हैं कि किसीका भी शरीर सदा नहीं रहता । आपके सामने वस्तु नष्ट हो जाती है और आप रोते हैं । इसलिये इतना विचार तो होना चाहिये कि जिसके बिछुड़नेपर रोना पड़े, उसको अपना न मानें । आपके पास शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि आदि जो कुछ है, वह सब-का-सब दूसरोंकी सेवाके लिये ही है, अपने लिये है ही नहीं । ऐसी सपष्ट बात सुगमतासे पढ़ने-सुननेको नहीं मिलती । मेरेको व्याख्यान देते हुए भी वर्षोंतक नहीं मिली ।