।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७६ शुक्रवार
शिवरात्रि
             अपना किसे मानें ?


सच्चे हृदयसे स्वीकार कर लें कि हम भगवान्‌के हैं और भगवान्‌ हमारे हैं । भगवान्‌ने जीवको खास अपना अंश बताया हैं‒ ‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५/७) । अंश होनेके नाते हम खास भगवान्‌के हैं । भगवान्‌के सिवाय दूसरी चीजको अपनी मानना बहुत बड़ी गलती है । भगवान्‌के सिवाय दूसरा सब क्षणभंगुर है, नाशवान्‌ है । यद्यपि वह क्षणभंगुर, नाशवान्‌ भी भगवान्‌की अपरा प्रकृति है, पर हम उसको भगवान्‌की वस्तु न मानकर भोग और संग्रहकी दृष्टिसे देखते हैं ।

संसार भगवान्‌का है । उसको अपने भोग और संग्रहके लिये मानना बहुत बड़ी गलती है । संसार तो खिलौना है, खेलकी सामग्री है । खिलौना कोई तत्त्व नहीं होता । वह तो खेलके लिये होता है । उसमें कभी हार होती है, कभी जीत होती है । हार और जीत कोई तत्त्व नहीं रखते । तत्त्वकी चीज तो एक परमात्मा ही हैं । उस परमात्माकी विलक्षणताका पूरा वर्णन कोई कर सकता ही नहीं । वह अनन्त है, अपार है, असीम है । आज दिनतक वेद-पुराणादि शास्त्रोंमें परमात्माका जो वर्णन हुआ है, वह सब-का-सब इकठ्ठा कर लिया जाय तो उससे परमात्माके किसी छोटे अंशका भी वर्णन नहीं होगा ! ऐसे अनन्त, अपार परमात्माका वर्णन तो नहीं कर सकते, पर उनको अपना मान सकते हैं । इसलिये मीराबाईने कहा‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई’ । यह असली तत्त्वकी, समझकी बात है । भगवान्‌ हमारे हैं और सदा हमारे ही रहेंगे । हम कहीं भी चले जायँ, वे सदा हमारे साथमें ही रहते हैं । भगवान्‌के सिवाय दूसरा कोई हमारे साथ रहता ही नहीं, रह सकता ही नहीं, फिर भगवान्‌के सिवाय और किसको अपना मानें ? अन्तमें भगवान्‌को ही अपना मानना पड़ेगा । ऐसा साथी और कोई मिलेगा नहीं । विचार करें, क्या शरीर हरदम साथमें रहेगा ? क्या घर-कुटुम्ब सदा साथमें रहेगा ? क्या जमीन-जायदाद सदा साथमें रहेगी ? जब हमारे साथ रहनेवाली कोई चीज है ही नहीं, तो फिर किससे अपनापन करें ? किससे प्रेम करें ? किसको अपना समझें ? अब चाहे परवश, पराधीन, मजबूर, लाचार होकर ही क्यों न मानना पड़े, हमें परमात्माको ही अपना मानना पड़ेगा ! कोई साथमें रहनेवाला है ही नहीं तो क्या करें ? साथमें रहनेवाला एक ही है, और वह है‒परमात्मा । हम चौरासी लाख योनियोंमें जायँ, नरकोंमें जायँ, किसी भी लोकमें जायँ, तो भी वह हमारा साथ कभी छोड़ता नहीं । हमारा साथ छोड़ना उसको आता ही नहीं ! परमात्मामें अनन्त सामर्थ्य है, पर हमारा साथ छोड़नेकी उसमें सामर्थ्य ही नहीं है ! इस विषयमें वह लाचार है ! सन्त-महात्माओंने इस बातको ठीक तरहसे जानकर ही भगवान्‌को अपना माना है, उनसे प्रेम किया है !

भगवान्‌के समान साथी कोई नहीं मिलेगा, कभी नहीं मिलेगा, कहीं नहीं मिलेगा । आपको जँचे या न जँचे, यह बात अलग है, पर बात यही सच्ची है । भगवान्‌ने साफ कह दिया‒

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।
                                             (गीता १५/७)

‘इस संसारमें जीव बना हुआ आत्मा स्वयं मेरा ही सनातन अंश है ।’

गोस्वामी तुलसीदासजी महाराजने भी कहा है‒

ईस्वर अंस जीव अबिनाशी । चेतन अमल सहज सुख रासी ॥

                       (मानस, उत्तरकाण्ड ११७/२)