।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
    माघ शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७६ गुरुवार
       शीघ्र भगवत्प्राप्ति कैसे हो ?


भगवान्‌ प्राणिमात्रका आकर्षण कर रहे हैं‒उन्हें खींच रहे हैं, इसीलिये उन्हें कृष्ण कहते हैं । प्राणी जिस अवस्था या परिस्थितिमें रहता है, उसमें भगवान्‌ उसे टिकने नहीं देते‒यही उनका खींचना है ! यह भगवान्‌का बुलावा है कि मेरे पास आओ ! गीतामें भगवान्‌ श्रीकृष्ण कहते हैं‒

आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥
                                         (८/१६)

‘हे अर्जुन ! ब्रह्मलोकपर्यन्त सब लोक पुनरावर्ती अर्थात्‌ जिनको प्राप्त होकर पीछे संसारमें आना पड़े, ऐसे हैं, परन्तु हे कौन्तेय ! मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता ।’

तात्पर्य है कि भगवत्प्राप्तिके बिना मनुष्य कहीं भी टिकता नहीं है और बारम्बार संसारमें ही घूमता रहता है । भगवान्‌को प्राप्त होनेपर ही मनुष्य टिकता है ।

यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥  (गीता १५/६)
‘जहाँ जानेपर मनुष्य लौटकर नहीं आता, वह मेरा परमधाम है ।’

आप चाहे कितनी भी शक्ति लगा लें, न तो शरीर सदा रहेगा और न कुटुम्बी ही सदा रहेंगे । संसारकी कोई भी वस्तु आपके पास सदा नहीं रहेगी । कारण यही है कि भगवान्‌ निरन्तर आपको खींच रहे हैं । यह उनकी हमपर महान्‌ कृपा है ! अतएव यदि आप संसारसे विमुख हो जाओगे तो भगवान्‌की प्राप्ति हो जायेगी और आप सदाके लिये सुखी हो जाओगे । यदि संसारमें ही रचे-पचे रहे तो दुःखका अन्त कभी आयेगा ही नहीं और नित्य नया-से-नया, तरह-तरहका दुःख मिलता ही रहेगा ।

यह बड़े दुःखकी बात है कि लोग भगवान्‌ और सन्त-महात्माओंसे भी सांसारिक सुख माँगते है ! दान-पुण्यादि करके भी बदलेमें महान्‌ दुःखोंके जालरूप संसारको खरीद लेते हैं । यह महान्‌ कलंककी बात है ! गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं‒

                एहि तन कर फल बिषय न भाई ।
      स्वर्गऊ स्वल्प अन्त दुखदाई ॥
                नर  तनु  पाइ  बिषयँ  मन देहीं ।
         पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं ॥
                          (मानस ७/४३/१)


मूर्ख लोग अमृतको देकर बदलेमें जहर ले लेते हैं । परमात्मप्राप्तिके लिये मिले हुए इस मनुष्य-शरीरमें नाशवान्‌ सांसारिक पदार्थोंकी माँगका रहना बड़ी लज्जाकी बात है । यदि आप कहें कि इस माँगके बिना हमसे रहा नहीं जाता तो आप आर्त होकर भगवान्‌से प्रार्थना करें कि हे प्रभो ! यह भोग-पदार्थोंकी माँग हमसे मिटती नहीं है, अतएव आप ही इसे मिटा दें । यदि आपकी यह प्रार्थना सच्ची होगी तो भगवान्‌ अवश्य मिटा देंगे । परन्तु आप तो भोग-पदार्थोंमें और उसकी माँगसे रस लेते हैं, उनमें प्रसन्न होते हैं आपकी मिटानेकी इच्छा ही नहीं है फिर माँग मिटे कैसे ?