अपने-अपने इष्टदेवके स्वरूपको ध्यान करते हुए आप
इसी समय हे नाथ ! हे नाथ ! ऐसे पुकारते हुए शान्त....चुपचाप.....उनके चरणोंमें गिर
जायँ । ऐसा मान लें कि हम उनके चरणोंमें ही पड़े हैं और सदा उनके चरणोंमें ही पड़े
रहना है । इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं करना है, क्योंकि करनेके आधारपर भगवान्को ख़रीदा नहीं जा सकता ।
उनकी प्राप्तिमें अपनेको कभी अयोग्य न माने । जो सर्वथा अयोग्य या अनधिकारी होता है वही भगवच्चरणोंकी
शरण होनेका अधिकारी होता है । जिसको संसारमें कोई पद या अधिकार नहीं मिलता, वह
परमात्मप्राप्तिका अधिकारी होता है । भगवान्के चरणोमें गिर जाना बहुत बड़ा भजन है
। इसलिये ऐसा मानते हुए उनके चरणोंमें गिर जायँ कि यह हाड़-मांसका अपवित्र
शरीर तथा मन-बुद्धि-इन्द्रियाँ हमारे नहीं हैं और हम उनके नहीं हैं । हमारे केवल प्रभु हैं और हम केवल प्रभुके हैं ।
पूरी गीता कहनेके बाद भगवान्ने सम्पूर्ण गोपनीयोंसे भी
अतिगोपनीय बात यह कही‒
सर्वधर्मान्परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
(गीता १८/६६)
‘सम्पूर्ण धर्मों (कर्तव्यकर्मोंके आश्रय) को
त्यागकर केवल एक मेरी शरणमें आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा ।
तू शोक मत कर ।’
इसलिये दूसरे सब आश्रय त्यागकर एक प्रभुका ही
आश्रय ले लें, क्योंकि यही टिकेगा, दूसरे आश्रय तो कभी टिक ही नहीं सकते ।
अंतहि तोहि तजैंगे पामर ! तू न तजै अब ही ते ।
मन
पछितैहैं अवसर बीते ॥
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒ ‘साधकोंके प्रति’ पुस्तकसे
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