।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                   




           आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण चतुर्दशी वि.सं.२०७७, मंगलवा
मानव-जीवनका लक्ष्य


वास्तवमें महिमा है शरीरके सदुपयोगकी । इसका उपयोग ठीक तरहसे किया जाय तो भगवान्‌की श्रेष्ठ भक्ति मिल जाय, वैराग्य मिल जाय, सब कुछ मिल जाय । ऐसी कोई चीज नहीं जो मनुष्य-शरीरसे न मिल सके । गीतामें आया है‒

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः ।

(६/२२)

जिस लाभकी प्राप्ति होनेके बाद कोई लाभ शेष न रहे । माननेमें भी नहीं आ सकता कि इससे बढ़कर कोई लाभ होता है और जिसमें स्थित होनेपर वह बड़े भारी दुःखसे भी विचलित नहीं किया जा सकता । किसी कारण शरीरके टुकड़े-टुकड़े किये जायँ तो टुकड़े करनेपर भी आनन्द रहे, शान्ति रहे, मस्ती रहे । दुःखसे वह विचलित नहीं हो सकता । उसके आनन्दमें कमी नहीं आ सकती ।

तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम् ।

(गीता ६/२३)

इतना आनन्द होता है कि दुःख वहाँ रहता ही नहीं । ऐसी चीज प्राप्त हो सकती है मानव-शरीरसे । मनुष्य-शरीरको प्राप्त करके ऐसे ही तत्त्वकी प्राप्ति करनी चाहिये । उसे प्राप्त न करके झूठ, कपट, बेईमानी, विश्वासघात, पाप करके नरकोंकी तैयारी कर लें तो कितना महान्‌ दुःख है ।

यह खयाल करनेकी बात है कि मनुष्य-शरीर मिल गया । अब भाई अपनेको नरकोंमें नहीं जाना है । चौरासी लाख योनियोंमें नहीं जाना है । नीची योनियोंमें क्यों जायें ? चोरी करनेसे, हत्या करनेसे, व्यभिचार करनेसे, हिंसा करनेसे, अभक्ष्य-भक्षण करनेसे, निषिद्ध कार्य करनेसे मनुष्य नरकोंमें जा सकता है । कितना सुन्दर अवसर भगवान्‌ने दिया है कि जिसे देवता भी प्राप्त नहीं कर सकते, ऐसा ऊँचा स्थान प्राप्त किया जा सकता है‒इसी जीवनमें । प्राणोंके रहते-रहते बड़ा भारी लाभ लिया जा सकता है । बहुत शान्ति, बड़ी प्रसन्नता, बहुत आनन्द‒इसमें प्राप्त हो जाता है । ऐसी प्राप्तिका अवसर है मानव-शरीरमें । इसलिये इसकी महिमा है । इसको प्राप्त करके भी जो नीचा काम करते हैं, वे बहुत बड़ी भूल करते हैं ।

कोई बढ़िया चीज मिल जाय तो उसका लाभ लेना चाहिये । जैसे किसीको पारस मिल जाय तो उससे लोहेके छुआनेसे लोहा सोना बन जाय । अगर ऐसे पारससे कोई बैठा चटनी पिसता है तो वह पारस चटनी पीसनेके लिये थोड़े ही है । पारस पत्थरसे चटनी पीसना ही नहीं, कोई अपना सिर ही फोड ले तो पारस क्या करे ? इसी तरह मानव-शरीर मिला, इससे पाप, अन्याय, दुराचार करके नरकोंकी प्राप्ति कर लेना अपना सिर फोड़ना है । संसारके भोगोंमें लगना‒चटनी पीसना है ।