।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                    




           आजकी शुभ तिथि–
पौष अमावस्या वि.सं.२०७७, बुधवा
मानव-जीवनका लक्ष्य


भोग कहाँ नहीं मिलेंगे ? सूअरके एक साथ दस-बारह बच्‍चे होते हैं । अब एक-दो बच्‍चे पैदा कर लिये तो क्या कर लिया ? कौन-सा बड़ा काम कर लिया ? साँपके पास बहुत धन होता है । धनके ऊपर साँप रहते हैं । धन तो उसके पास भी है । धन कमाया तो कौन-सी बड़ी बात हो गयी ? ऐश-आराममें सुख देखते हैं और कहते हैं कि इसमें सुख भोग लें । बम्बईमें मैंने कुत्ते देखे हैं, जिन्हें बड़े आरामसे रखा जाता है । बाहर जाते हैं तो मोटर और हवाई जहाजमें ले जाते हैं । मनुष्योंमें भी बहुत कमको ऐसा आराम मिलता है, जो कुत्तेको मिलता है । भाग्यमें है तो कुत्तोंको भी मिल जायगा । कौन-सा काम बाकी रह जायगा, जिसके लिये मनुष्य-शरीर नष्ट किया जाय । भोगोंके भोगनेमें, संसारका सुख लेनेमें, धन कमानेमें, मनुष्य-शरीर बर्बाद कर देना कितनी बड़ी भूलकी बात है ! झूठ-कपट, बेईमानी करके मनुष्य नरकोंकी तैयारी कर लेता है, यह महान्‌ पतनकी बात है । कितना ऊँचा शरीर मिला है मनुष्यको ! उस शरीरमें आकर ऐसा काम कर लें ! अतः सावधान रहना चाहिये कि बड़े-से-बड़ा काम हमें करना है, बढ़िया-से-बढ़िया काम हमें करना है । यह काम दूसरी योनिमें नहीं हो सकता ।

एक मनुष्य-शरीरमें किये हुए पापोंका चौरासी लाख योनियोंमें भोग होता है । सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि‒ये चारों युग बीत जाते हैं और चौरासी लाख योनी और नरकोंके कुण्ड भोगते-भोगते, फिर भी मनुष्य-शरीरमें किया हुआ पाप बाकी पड़ा रहता है । बीचमें भगवान्‌ कृपा करके मनुष्य-शरीर देते हैं । संचित पाप और पड़े हुए हैं, भोगनेपर भी सारे पाप समाप्त नहीं होते, इतने महान्‌ पाप हैं, जो इस मनुष्य-शरीरमें बनते हैं । यह मनुष्य-शरीर है जिससे परमात्माकी प्राप्ति कर सकते हैं । अनन्त-ब्रह्माण्ड जिसके फुरणामात्रसे रचित होते हैं, खण्डित होते हैं, वे परमात्मा तुम्हरी आज्ञा माननेके लिये तैयार हो जाते हैं । ‘ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावें ।’ उन गोपियोंके हृदयमें भगवान्‌के प्रति प्रेम होनेके कारण वे कहती हैं‒‘लाला छाछ दूँगी, थोड़ा नाचो ।’ तो भगवान्‌ नाचने लगते हैं । ‘लाला बंसी बजाओ, छाछ पिलाऊँगी ।’ अब बोलो छाछके बदले वे परमात्मा नाचने और बंसी बजानेको तैयार ! इतना ऊँचा पद इस मनुष्य-शरीरसे मिल सकता है । इस शरीरकी प्राप्ति करके हम कर लें फिर नरकोंकी तैयारी‒महान्‌ दुःखोंकी तैयारी, कितनी बड़ी भारी गलती है ! ऐसा मनुष्य-शरीर मिल जाय तो बड़े-से-बड़ा लाभ ले लेना चाहिये ।

जैसे वृन्दावनमें आ गये तो भगवान्‌के दर्शन करो, जमुनाजीमें स्नान करो । वहाँके रहनेवालोंसे पूछो कि ज्यादा लाभकी बात कौन-सी है । वृन्दावनमें आये हो तो वृन्दावनका आनन्द लो । अब वृन्दावनमें आकर नाटक, सिनेमा देखते हो । अरे भाई ! यहाँ क्यों आये ? बम्बई, कलकत्तामें बहुत बढ़िया सिनेमा है । यह तो तीर्थ-स्थल है । भगवान्‌का दर्शन करो । जहाँ कीर्तन होता हो, कथा होती हो‒ऐसी जगह जाओ और विशेष लाभ लो । वृन्दावनमें आये हो ना ! इसी तरह मानव-शरीरमें आये हो तो विशेष लाभ ले लो । पर यहाँ भी वही काम करते हो जो पशु-पक्षी करते हैं, वही खाना-पीना, वही बाल-बच्‍चे पैदा करना । यह तो भैया कुत्ते बन जाओ तो तैयार, सूअर बन जाओ, गधे बन जाओ तो तैयार, कौआ बन जाओ तो तैयार ! ये चीजें कौन-सी बाकी रहेंगी । इन चीजोंके लिये आये हो क्या मनुष्य-शरीरमें ? मनुष्य-शरीर क्यों खराब करते हो ? यह शरीर क्यों प्राप्त किया ? भगवान्‌ने कृपाकर शरीर दिया है तो इस शरीरसे होनेवाले वे लाभ ले लो, जो दूसरे शरीरमें हो नहीं सकते ।