बड़ें भाग मानुष
तनु पावा । सुर दुर्लभ ग्रंथन्हि गावा ॥ (मानस ७/४२/४) मनुष्य-शरीर
देवताओंको दुर्लभ है, ऐसा ग्रन्थोंमें कहा है
। ऐसा दुर्लभ शरीर, जिसको प्राप्त करके केवल
परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति करनी चाहिये
। मौका है भाई ! जैसे मनुष्य-शरीर दुर्लभ है, वैसे कलियुग भी
दुर्लभ है । जैसा मौका कलियुगमें मिलता है, वैसा अन्य युगमें नहीं मिलता । ऐसे
कलियुगमें मौका मिला । उस कलियुगको प्राप्त करके भोगोंमें लग गये अथवा पापोंमें लग
गये, अन्यायमें लग गये । शास्त्रकी दृष्टिसे अन्याय, हम भी विचारसे देखें तो
अन्याय, लौकिक दृष्टिसे अन्याय, लोग देख लें
तो शर्म आये‒ऐसे-ऐसे काममें लग जाय मनुष्य-शरीर प्राप्त करके । कितनी हानिकी बात
है ! तो हम क्या
करें ? आज
दिनतक हुआ सो हुआ । गलती हुई तो हुई । आजसे दृढ़ निश्चय कर लो कि समय बरबाद नहीं
करेंगे, पाप व अन्याय नहीं करेंगे । जल्दी-से-जल्दी तत्त्वकी प्राप्ति कैसे हो ?
कैसे उस तत्त्वका बोध हो ? कैसे भगवान्के चरणोमें प्रेम हो जाय ? ऐसी लालसा लगाओ
। प्रश्न‒क्या हमारा भी प्रेम हो सकता है ? क्या इस
शरीरसे कल्याण हो सकता है ? उत्तर‒ध्यान देकर सुनें
। इस शरीरसे कल्याण हो सकता है । कल्याण भी आप कर सकते हो । लखपति बन जाओ आपके
हाथकी बात नहीं, मकान-इमारत हो जाय, आपके हाथकी बात नहीं । संसारमें यश,
प्रतिष्ठा, मान, आदर, सत्कार हो जाय, आपके हाथकी बात नहीं है । परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति करना हाथकी बात है । इसमें सब
स्वतन्त्र हैं । मनुष्यमात्र इसमें स्वतन्त्र है, कोई परतन्त्र नहीं, क्योंकि बड़े भारी लाभके लिये मनुष्य-शरीर मिला
है । परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिके लिये ही मानव-शरीर मिला है । उसको
प्राप्त करना खास काम है । मनुष्य ध्यान नहीं देता है । रामायणमें आया है‒ कबहुँक करि करुना
नर देही । देत ईस
बिनु हेतु सनेही ॥ (७/४३/३) इस चौपाईपर आप
थोड़ा ध्यान दें । भगवान् विशेष कृपा करके मानव-शरीर देते हैं । इसका अर्थ क्या
हुआ ? भगवान्ने इस जीवपर विश्वास किया कि इसको मनुष्य-शरीर
दिया जाय, जिससे इसका दुःख मिट जाय, मेरी प्राप्ति हो जाय, इसका कल्याण हो जाय ।
इस भावनासे मानव-शरीर दिया विशेष कृपा करके । जब भगवान्की यह भावना है कि मेरी
प्राप्ति कर ले तो थोड़ा-सा हम
भी इधर ध्यान दें तो भगवान्का संकल्प सच्चा होनेवाला है, पर ध्यान नहीं देता मनुष्य । भगवान्
कृपा करके मानव-शरीर देते हैं‒इसका अर्थ यही है कि परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है । भगवान्ने विश्वास किया । यदि यहाँ आकर जीव भगवान्की
प्राप्ति नहीं करता है तो भगवान्के साथ विश्वासघात करता है । यहाँ आकर
पाप, झूठ, कपट करता है तो बड़ा भारी नुकसान है । निश्चय
कर लो कि आजसे पाप नहीं करेंगे । अन्याय नहीं करेंगे और भगवत्तत्त्वकी प्राप्ति
करेंगे । जैसे व्यापारी व्यापर खोजता है, इस तरह परमात्मतत्त्वकी
प्राप्तिके लिये खोजमें लगना चाहिये । आपको कोई सन्त, महात्मा मिल जाय, कोई
भगवत्प्राप्त पुरुष मिल जाय तो उनसे पूछो कि भगवान्
कैसे मिलें ? भगवान्के चरणोंमें प्रेम कैसे हो ? जीवन्मुक्ति कैसे हो ? इस बातकी
लालसा जगाओ तो‒ जेहि कें जेहि पर
सत्य सनेहू । सो तेहि मिलइ न
कछु संदेहू ॥ (मानस १/२५८/३) नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे |