।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                     




           आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल प्रतिपदा वि.सं.२०७७, गुरुवा
मानव-जीवनका लक्ष्य


बड़ें भाग मानुष तनु पावा ।

सुर  दुर्लभ  ग्रंथन्हि  गावा ॥

(मानस ७/४२/४)

मनुष्य-शरीर देवताओंको दुर्लभ है, ऐसा ग्रन्थोंमें कहा है । ऐसा दुर्लभ शरीर, जिसको प्राप्त करके केवल परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति करनी चाहिये । मौका है भाई ! जैसे मनुष्य-शरीर दुर्लभ है, वैसे कलियुग भी दुर्लभ है । जैसा मौका कलियुगमें मिलता है, वैसा अन्य युगमें नहीं मिलता । ऐसे कलियुगमें मौका मिला । उस कलियुगको प्राप्त करके भोगोंमें लग गये अथवा पापोंमें लग गये, अन्यायमें लग गये । शास्त्रकी दृष्टिसे अन्याय, हम भी विचारसे देखें तो अन्याय, लौकिक दृष्टिसे अन्याय, लोग देख लें तो शर्म आये‒ऐसे-ऐसे काममें लग जाय मनुष्य-शरीर प्राप्त करके । कितनी हानिकी बात है ! तो हम क्या करें ?

आज दिनतक हुआ सो हुआ । गलती हुई तो हुई । आजसे दृढ़ निश्चय कर लो कि समय बरबाद नहीं करेंगे, पाप व अन्याय नहीं करेंगे । जल्दी-से-जल्दी तत्त्वकी प्राप्ति कैसे हो ? कैसे उस तत्त्वका बोध हो ? कैसे भगवान्‌के चरणोमें प्रेम हो जाय ? ऐसी लालसा लगाओ ।

प्रश्न‒क्या हमारा भी प्रेम हो सकता है ? क्या इस शरीरसे कल्याण हो सकता है ?

उत्तर‒ध्यान देकर सुनें । इस शरीरसे कल्याण हो सकता है । कल्याण भी आप कर सकते हो । लखपति बन जाओ आपके हाथकी बात नहीं, मकान-इमारत हो जाय, आपके हाथकी बात नहीं । संसारमें यश, प्रतिष्ठा, मान, आदर, सत्कार हो जाय, आपके हाथकी बात नहीं है । परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति करना हाथकी बात है । इसमें सब स्वतन्त्र हैं । मनुष्यमात्र इसमें स्वतन्त्र है, कोई परतन्त्र नहीं, क्योंकि बड़े भारी लाभके लिये मनुष्य-शरीर मिला है । परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिके लिये ही मानव-शरीर मिला है । उसको प्राप्त करना खास काम है । मनुष्य ध्यान नहीं देता है । रामायणमें आया है‒

कबहुँक करि करुना नर देही ।

देत  ईस  बिनु   हेतु  सनेही ॥

(७/४३/३)

इस चौपाईपर आप थोड़ा ध्यान दें । भगवान्‌ विशेष कृपा करके मानव-शरीर देते हैं । इसका अर्थ क्या हुआ ? भगवान्‌ने इस जीवपर विश्वास किया कि इसको मनुष्य-शरीर दिया जाय, जिससे इसका दुःख मिट जाय, मेरी प्राप्ति हो जाय, इसका कल्याण हो जाय । इस भावनासे मानव-शरीर दिया विशेष कृपा करके । जब भगवान्‌की यह भावना है कि मेरी प्राप्ति कर ले तो थोड़ा-सा हम भी इधर ध्यान दें तो भगवान्‌का संकल्प सच्‍चा होनेवाला है, पर ध्यान नहीं देता मनुष्य । भगवान् कृपा करके मानव-शरीर देते हैं‒इसका अर्थ यही है कि परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है । भगवान्‌ने विश्वास किया । यदि यहाँ आकर जीव भगवान्‌की प्राप्ति नहीं करता है तो भगवान्‌के साथ विश्वासघात करता है । यहाँ आकर पाप, झूठ, कपट करता है तो बड़ा भारी नुकसान है ।

निश्चय कर लो कि आजसे पाप नहीं करेंगे । अन्याय नहीं करेंगे और भगवत्तत्त्वकी प्राप्ति करेंगे । जैसे व्यापारी व्यापर खोजता है, इस तरह परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिके लिये खोजमें लगना चाहिये । आपको कोई सन्त, महात्मा मिल जाय, कोई भगवत्प्राप्त पुरुष मिल जाय तो उनसे पूछो कि भगवान्‌ कैसे मिलें ? भगवान्‌के चरणोंमें प्रेम कैसे हो ? जीवन्मुक्ति कैसे हो ? इस बातकी लालसा जगाओ तो‒

जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू ।

सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ॥

(मानस १/२५८/३)

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे