शुकदेव मुनिकी व्यासजी महाराज गरज करते रह गये, पुकारते रहे ‘पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदुः’
वृक्ष, पहाड़ बोले, पर वे नहीं बोले । पुत्र ! पुत्र ! कहते हुए व्यासजी पीछे जाते हैं । शुकदेवजी तो बोले ही नहीं, आगे भागते हैं । वे ही शुकदेवजी अब आकर गरज करते हैं व्यासजीकी । व्यासजीने भागवत
बनाकर ब्रह्मचारियोंको सिखायी । ब्रह्मचारियोंको समिधाके लिये जंगलमें भेजा । वे समिधा
लाने गये । वहाँपर वे ‘अहो बकी यं स्तनकालकूटम्’ यह
श्लोक गा रहे थे । शुकदेवजीके कानोंमें पड़ गया तो सोचा, कहाँका श्लोक है ? कौन गा रहे हैं ? कैसी
बात है ? वे भगवान्के गुणोंसे आकृष्ट
हो गये । यह तो भागवतका है । तो किसने बनाया ? व्यासजीने बनाया तो हम तो भागवत पढेंगे । जो पिताजीकी आवाज नहीं सुनते थे, वे गरज करके पढ़ते हैं । गरज क्यों करते हैं ? भगवान्के गुणोंसे आकृष्ट हो गये । ऐसे वो दयालु ‘जिघांसयापाययत्’
मारनेकी इच्छासे स्तन पिलाया । और ‘लेभे गतिं धात्र्युचिताम्’
तो जहर पिलाया मारनेके लिये, मार तो उसको दिया, ‘यथा मां तथैव’ परन्तु अन्तमें भाव तो भगवान्का अपना रहेगा । वहाँ ‘तथैव’
प्रकारमें है । व्याकरणमें ‘प्रकार वचने थाल्’ होता
है । उसी प्रकारसे, उसने स्तन दिया मुँहमें
कि लाला दूध पी ले । अब दूध तो था नहीं, वैरसे दूध कहाँसे आवे उसमें
? लाला खेंचने लगा जोरसे तो प्राण खिंच गये । ‘मुञ्च-मुञ्च’, छोड़ छोड़ !’ छोड़े कौन ! छोड़ना भगवान्को आता ही
नहीं है । पकड़ना आता है । अभी क्या छोड़ दे, मरनेके बाद भी नहीं छोड़ेंगे । छोड़ेंगे ही नहीं कभी । इनको बस पकड़ा दो, फिर मौज करो, किसी प्रकारसे इसमें लगा
दो ।
सम्बन्ध तो जोड़ दो तुम । फिर यदि उलटे-पुलटे हो भी जाओगे तो जन्म हो जायगा । भरतमुनिके हुआ, जैसे हो जायगा, नहीं तो ठीक हो जायगा ।
भगवान्का यह सम्बन्धमात्र है, यह बहुत विलक्षण है । इस बातके लोभसे सन्त-महात्मालोग एकान्तमें बैठकर ध्यान-भजन न करके सत्संग आदि
करते हैं । वहाँ एकान्तमें बहुत ठीक मन लगता है । उनका कोई मन न लगता हो, ऐसी बात नहीं है । परवश होकर भजन करना पड़ता हो, ऐसी बात नहीं । इतना होते हुए भी सत्संग क्यों करते हैं ? कि इसमें लाभ बहुत है
। बहुत विलक्षण लाभ है । उनको लाभ क्या लेना है ? लेनेके लिये थोड़े ही होता है । लाभ तो लाभ ही है । यह किसी तरहसे ही हो । लाभकी
बात ऊँची बात है । यह एक रिवाज छोड़ देते हैं । जिससे दुनियाका कल्याण होता ही रहे,
होता ही रहे सदाके लिये । कितनी विलक्षण बात है ! भगवान्में किसी रीतिसे आप मन लगाओ, किसी रीतिसे, आपमें जो शक्ति हो उसी रीतिसे और जो आपका सम्बन्ध हो, उसी सम्बन्धसे । भगवान्को बाप मान लो, बेटा मान लो, गुरु मान लो, चेला मान लो, कुछ भी मान लो । नौकर मान
लो तो भगवान् नौकरी करेंगे । बेटा मान लो तो ठीक बेटेका भाव रखेंगे । |