।। श्रीहरिः ।।

                         





आजकी शुभ तिथि–
  भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.-२०७८, रविवार
                   
         भगवान्‌से सम्बन्ध


गोस्वामीजी महाराज सुन्दरकाण्डमें लिखते हैं कि हनुमान्‌जी लंका गये तो वहाँ लोग कैसे हैं‘खर अज....भच्छहीं’ ऐसे राक्षस वहाँ रक्षा करते हैं । तो तुम इनका वर्णन क्यों करते हो ? वे सब भगवान्‌के हाथों मरेंगे, इस वास्ते हमने संक्षेपमें कथा कही है । और कही है इसलिये कि भगवान्‌के हाथों मरेंगे और भगवान्‌का सम्बन्ध हो जायगा । इनकी कथाके साथ भगवान्‌का सम्बन्ध है । नहीं तो राक्षसोंकी कथा क्यों कहते ? क्या मतलब है आपको ? हमें इनसे मतलब नहीं, भगवान्‌से मतलब है । अब भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़ लिया इसलिये उनकी भी कथा कहनी है । उनकी कथामें भी भगवान्‌की कृपा, भगवान्‌की दयालुता, भगवान्‌की विलक्षणता स्वतः ही प्रकट होती चली जायगी । तो अब वे उनके साथ क्रोध करें, काम करें, लोभ करें, ईर्ष्या करें, द्वेष करें, वैर करें, कुछ भी करेंसम्बन्ध भगवान्‌से जुड़ जाता है । वह सम्बन्ध ही वास्तवमें कल्याण करनेवाला है, क्योंकि गुणोंका संग जन्म-मरण देनेवाला है । तो ‘निर्गुणस्य गुणात्मनः’ सगुणको भी निर्गुण कहागुणात्मा है वो, वह कल्याण करनेवाला है । इस वास्ते भगवान्‌से किसी तरहसे आप सम्बन्ध जोड लो और भगवान्‌के साथ कुछ भी कर लो, वह कल्याण करेगा । ‘तस्मात् केनाप्युपायेन मनः कृष्णे निवेशयेत् ।’ भगवान्‌में मन लगा दो तो भगवान्‌में मन लगानेसे कल्याण होता है । नारदजी महाराज कहते हैं‘प्रेम उसमें ही करो, उसको ही अपनी वृत्तियोंका विषय बनाओ, जो कुछ है, लक्ष्य उसीको बनाओ । उनके साथ चाहे जैसे आप कर लो ।’

कितनी विचित्र बात है कि जो कुछ करो, भगवान्‌के लिये करो, सब ठीक हो जायगा । ‘कर्म चैव तदर्थीयं सदित्येवाभिधीयते ॥’ उस परमात्माके लिये कर्म किया जायगा वह सब सत्कर्म हो जायगा । कर्म भी कभी सत् होता है ? कर्मका तो आरम्भ होता है और समाप्ति होती है । फल भी आरम्भ होता है और समाप्त होता है । तो कर्म, वह सत् थोड़ा ही होता है, क्रिया निरन्तर होती नहीं । परिवर्तनशील है क्रिया तो वह सत् कैसे होगी ? पर वह ‘तदर्थीय’ हो जायगा, भगवान्‌के लिये हो जायगा, तो कर्म भी सत् हो जायगा । सत् क्यों हो जायगा ? आगमें लकड़ी डालो, पत्थर डालो, कोयला डाल दो, कंकड़ डाल दो, कुछ भी डाल दो, वह भी चमकने लगेगा; क्योंकि अग्निके साथमें हो गया न । ऐसे ही भगवान्‌के साथ जो कुछ आप कर लो, वह सब-का-सब चमक उठेगा । सत् हो जायगा ।

पूतनाने जहर दिया मारनेके लिये । उसने तो मारनेके लिये दिया, पर भगवान्‌ने उसका उद्धार कर दिया; क्योंकि ‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ जो मुझे जैसे भजता है, मैं भी उसको वैसे ही भजता हूँ । पूतना मारनेके लिये गयी तो मार ही दिया उसको; परन्तु मारकर कल्याण किया । यह तो नयी बात है । वह पूतना कोई कन्हैयाको मारकर कल्याण करती क्या ! ‘अहो बकी यं स्तनकालकूटं जिघांसयापाययदप्यसाध्वी । लेभे गतिं धात्र्युचिताम्’जो गति धाय माँको देनी चाहिये, वह गति ‘लेभे ।’ ‘कं वा दयालु शरणं ब्रजेम ।’