।। श्रीहरिः ।।

                              





आजकी शुभ तिथि–
  भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.-२०७८, शुक्रवार
              गणेश-चतुर्थी, चन्द्र-दर्शन निषिद्ध
          भगवान्‌से सम्बन्ध


चेत होना चाहिये । छोटे-छोटे बच्चे होते हैं, तब उनके विचार होता है कि हम यह करेंगे, वह करेंगे । बड़े होकर ऐसा धन कमायेंगे । तो आप लोग बड़े कब होंगे, जिस दिन भजन करेंगे ? कब भगवान्‌में लगेंगे ? कुछ बड़े हो जायँ तो फिर करेंगे । अब कब बड़े होंगे ? बताओ । मूर्खता रखते-रखते ही मर जायेंगे, वही बचपन, वही मूर्खता । तो ठाकुरजीमें आप अपना मन लगा दो । सम्बन्ध जोड़ दो, किसी रीतिसे जोड़ दो । ठाकुरजीके साथ जोड़ लो । अब आप भगवान्‌को कुछ मान लो । कैसे ही मान लो । वैरी मान लो, चाहे भयभीत हो जाओ । सम्बन्ध तो जोड़ो प्रभुके साथ !

भगवान् इतनी निगरानी रखते हैं जीवमात्रकी । यह किसीके साथ सम्बन्ध जोड़ लेता है तो रहने नहीं देते । भगवान् तोड़ ही देंगे उसको । बालकपनके साथ रहे तो बालकपन तोड़ दिया । जवानीके साथ रहे तो जवानी तोड़ देंगे । वृद्धावस्थाका साथ किया तो वृद्धावस्था तोड़ देंगे । रोगी-नीरोगी अवस्थाके सम्बन्धको तोड़ देंगे । भगवान् कहते हैं कि मेरेको नहीं प्राप्त किया तो टिकने नहीं दूँगा तेरेको । तू चाहे कितना ही कुछ पकड़ ले, कितनी ही उछल-कूद करे तो क्या होगा ? यह सब परिस्थिति बदलती है तो यह भगवान्‌का आवाहन होता है कि इधर आओ, किधर जाते हो ? ये सुनते ही नहीं । थोड़ा धन और कमा लें, थोड़ी विद्या और पढ़कर विद्वान् बन जायें । वक्ता बन जायँ बढ़िया, लोग हमको वाह-वाह कहें । तो फँस जाओगे बाबा ज्यादा । क्या निकालोगे इसमें ? पर वह भ्रम पड़ा हुआ है कि मौज हो जायेगी ।

घरमें चूहे बहुत हो जाते हैं तो तारोंका बना हुआ पिंजरा होता है उसमें रोटीके टुकड़े डालकर अँधेरेमें रख देते हैं । चूहोंको अन्नकी सुगन्धि आती है तो वे देखते हैं कि रोटी उसमें पड़ी है, पर किस तरहसे मिले ? इधर-उधर घूमते हैं । दरवाजा मिलते ही समझते हैं, आहा ! निहाल हो गया मैं तो ! वह भीतरमें भारसे नीचे उतरा और वह पत्ती स्प्रिंगसे वापस बन्द हो जाती है । तो अब मुश्किल हो गयी । अब निकलनेका दरवाजा ढूँढता है, पर मिलता नहीं । बाहरवाले चूहे देखते हैं कि यह मौज कर रहा है अकेला ही । हमारेको भी दरवाजा मिल जाय तो हम भी ऐसी मौज करें । अब दूसरा चला गया तो बाहरके बचे हुए देखते हैं कि इनको रस आ रहा है । आपसमें एक-से-एक लूट रहे हैं तभी तो लड़ते हैं । यों करके फँस जाते हैं । ऐसे ही संसारमें देखते हैं कि धन कैसे मिल जाय, हमारा विवाह कैसे हो जाय, हमारे बच्चे कैसे हो जायँ ? धन भी हो जाय, बच्चे भी हो जायँ । जब ब्याह होनेपर बच्चे होते हैं तो वह कहता हैअब तो हम फँस गये, भाई । पर जिसका नहीं हुआ वह कहता है, मेरे ब्याह ही नहीं हुआ । अब वह यों ही रोता है ।

जिसका ब्याह हो गया, वह मकान खोजता है कलकत्ते जैसे शहरमें । अकेला तो कहीं गद्दीमें सो जाय, पर स्त्री-बच्चोंको अब कहाँ रखे ? मकानके लिये पगड़ी लाओ, मार आफत ! दूसरा देखता है मैं तो अकेला रह गया और यह मौज करता है । बाल-बच्चे हैं इसके तो । कोई ताऊ-चाचा कहते हैं और चीं-पीं करते हैं इसके सामने, तो बड़ा आनन्द आता है कि हमारे इतने बच्चे हैं । बच्चोंके बीचमें बैठा राजी होता है जब कि वह दुःख पा रहा है । अब मुश्किल हो गयी, पालें कैसे इनको ? अब ज्यों छोरा बड़ा हो गया ब्याह करो । छोरी बड़ी हो गयी, उसका ब्याह करो । अब एक नयी आफत और हो गयी ।