।। श्रीहरिः ।।

      



आजकी शुभ तिथि–
  भाद्रपद शुक्ल एकादशी, वि.सं.-२०७८, शुक्रवार
                             
          कर्म किसके लिये ?


संसारसे कुछ भी नहीं पाना है और केवल संसारके हितके लिये ही करना है । स्वयंके लिये कुछ करना है ही नहीं । मनमें जो करनेकी एक रुचि होती है, उस करनेकी रुचिको मिटानेके लिये ही करना है । अगर आप मान-सत्कार आदि लेते रहोगे तो यह करनेकी रुचि कभी मिटेगी नहीं । अपने परिवारके सुखके लिये करो, पर उनसे यह मत चाहो कि वे मुझे सुख देंगे । मैं परमात्माका अंश हूँ; अतः उनका दिया हुआ सुख शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धितक ही पहुँच सकता है, मेरेतक नहीं पहुँच सकता । मैंने एक गृहस्थाश्रमकी स्त्रीकी बात सुनी है । किसीने उससे कहा कि ये लोग तेरेको दुःख देते हैं, तो उसने कहा कि मेरेतक दुःख पहुँचता ही नहीं । कितना ही कष्ट दे दो, निन्दा कर दो, अपमान कर दो, वह मेरेतक पहुँचता ही नहीं । कष्ट, अपमान शरीरका होगा, निन्दा नामकी होगी, वे चेतन-तत्त्वतक कैसे पहुँच सकते हैं ? अतः कुछ भी पानेकी इच्छा न रखकर केवल संसारके लिये करना है । केवल संसारके लिये करनेसे आत्मज्ञान हो जायगा, बोध हो जायगा । परमात्माकी प्राप्ति चाहो तो वह हो जायगी । मुक्ति चाहो तो मुक्ति हो जायगी, कल्याण हो जायगा, सदा रहनेवाला लाभ हो जायगा ।

आपका शरीर, विद्या, बुद्धि, योग्यता आदिसे जो कुछ भी मिला है, वह सब-का-सब संसारसे मिला है । संसारसे मिले हुएको बिना शर्त संसारके भेंट कर दो । आप परमात्माके अंश हो; अतः आप परमात्माके शरण हो जाओ । उत्पन्न और नष्ट होनेवालेके शरण मत होओ, उसका आश्रय मत लो । गोस्वामी महाराज कहते हैं

एक  भरोसो  एक  बल  एक  आस  बिस्वास ।

एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास ॥

(दोहावली २७७)

संसार आपका है नहीं, आपको मिला ही नहीं, आपतक पहुँचा ही नहीं । ऐसे संसारकी आशा, विश्वास, भरोसा रखना ही जीवकी जडता है, मूर्खता है

यह बिनती रघुवीर गुसाई ।

और आस-बिस्वास-भरोसो, हरौ जीव-जड़ताई ॥

(विनयपत्रिका १०३)

भगवान्‌से प्रार्थना करो तो जडता मिट जाय अथवा केवल दूसरोंके हितके लिये कर्म करो तो जडता मिट जाय । शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, योग्यता आदि सब संसारके लिये हैं, अपने लिये हैं ही नहीं । उत्पन्न और नष्ट होनेवाली चीज अनुत्पन्न तत्त्वके लिये क्या काम आयेगी ? थोड़ा विचार करो आप । यह जीव परमात्माका अंश है, चेतन है, अमल है, सहज सुखराशि है, अविनाशी है तो इसके लिये जड़, विनाशी चीज कैसे काम आयेगी ? विनाशी चीज तो विनाशी संसारके हितके लिये, सुखके लिये, आरामके लिये खर्च करनेके लिये मिली है । उसको आप अपने लिये मानो तो आप जरूर फँस जाओगे, इसमें किंचिन्मात्र भी संदेह नहीं है । मान-बड़ाई मिलनेसे आप राजी हो गयेयह कितना बड़ा अँधेरा है ! कारण कि जो मिला है, वह बिछुड़ जायगा, रहेगा नहीं । शरीरको अपना मान लिया तो अब बीमारियाँ आयेंगी; क्योंकि मूलमें भूल हो गयी । जोड़ लगाते समय पहली पंक्तिके जोड़में ही भूल हो जाय और आगेकी पंक्तियोंमें बड़ी सावधानीसे जोड़ लगाया जाय तो क्या वह जोड़ सही हो जायगा ? आरम्भमें ही भूल हो जाय तो फिर आगे भूल-ही-भूल होगी । एक कहानी याद आ गयी । एक आदमीको ऊँटपर चढ़ाया और कहा कि कहीं जानेसे पहले हमारा ऊँट तीन बार कूदेगा; अतः सावधान रहना । उसने कहा कि मैं तो पहलेमें ही कूद जाऊँगा, दो बार कूदना बच जायगा ! अगर पहलेमें ही भूल हो गयी तो फिर भूल-ही-भूल होगी । इसलिये पहलेमें ही भूल मत करो, शरीरको अपना मत मानो और उसके द्वारा सबकी सेवा करो, हित करो ।

‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे