गाढ़ नींदमें अहंकार भी लुप्त हो जाता है, पर आप रहते हो ।
हमें यह बात बढ़िया मालूम दी है कि नींदसे पहले भी ‘मैं’ था तथा नींदके बादमें भी ‘मैं’
हूँ और नींदमें मेरेको कुछ पता नहीं था—इसका अनुभव तो होता है, पर नींदमें ‘मैं’ नहीं था—इसका अनुभव नहीं होता । नींदमें ‘मैं’ नहीं था और जागनेपर ‘मैं’
उत्पन्न हो गया—ऐसा आप
नहीं मानते । हमने शास्त्रोंकी कई बातें सुनी हैं, पर यह दृष्टान्त किसी पुस्तकमें
आया हो—ऐसा हमें याद नहीं है । गाढ़ नींदमें शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, अहंकार आदिका भान
नहीं था—यह तो आप कह सकते हैं, पर गाढ़ नींदमें ‘मैं’ नहीं था—यह आप नहीं कह सकते । अपनी सत्ताका अनुभव करनेके
लिये यह युक्ति बहुत बढ़िया हैं । गाढ़ नींदमें मेरेको कुछ पता नहीं था तो ‘कुछ पता
नहीं था’—इसका तो पता था न ? तात्पर्य है कि उस समयमें भी आप थे । ऐसे नित्य-निरन्तर रहनेवाले आपको आने-जानेवाली
वस्तु क्या निहाल करेगी ?
जो आया है, वह जायगा ही । जिसका संयोग हुआ है,
उसका वियोग होगा ही । उसमें राजी-नाराज होओगे तो अपने कल्याणसे वंचित रह जाओगे—इसके सिवाय और कुछ नहीं
होनेका है ! हमने एक कहानी सुनी है । एक मकानमें गुरु और चेला रहते थे ।
एक दिन मकानके भीतर एक कुत्ता आ गया । चेला बोला कि महाराज ! मकानमें कुत्ता आ
गया, क्या करूँ ? गुरुने कहा कि किवाड़ बन्द कर दो; क्योंकि उसको यहाँ तो कुछ
मिलेगा नहीं और दूसरी जगह जा सकेगा नहीं । अपने पास कुछ है नहीं तो खायेगा क्या ?
और मकानके भीतर बन्द होनेसे दूसरोंको तंग करेगा नहीं; अतः किवाड़ बन्द कर दो । इसी
तरह संसारमें जाते ही किवाड़ बन्द हो जाता है ! तात्पर्य है कि जैसे कुत्ता कुछ
खानेके लिये घरमें गया तो वहाँ भी कुछ नहीं मिला और घरके भीतर बन्द हो जानेसे बाहर
भी नहीं जा सका तो वह दोनों तरफसे रीता रह गया ! ऐसे ही आप संसारमें कुछ लेने
जाओगे तो संसारमें कुछ मिलेगा नहीं और परमात्माकी तरफसे विमुख हो जाओगे; अतः दोनों
तरफसे रीते रह रह जाओगे । हमें संसारसे कुछ लेना ही नहीं
है—इस बातसे आप निहाल हो जाओगे । इस बातको काममें लानेका तरीका
है—‘सर्वभूतहिते रताः’ अर्थात् प्राणिमात्रके हितमें रति हो जाय । तो क्या होगा इससे ? हमारेमें जो लेनेकी इच्छा है, वह मिट
जायगी । दूसरोंका हित करनेकी, उनको सुख पहुँचानेकी लगन लग जायगी । तो अपनी सुख
लेनेकी इच्छा मिट जायगी; क्योंकि आप जहाँ हैं, परमात्मा वहीं पूर्णरूपसे विद्यमान
हैं, अंशरूपसे (अधूरे) नहीं । आपको (जीवात्माको) भी अंश तब कहते हैं, जब आप
प्रकृतिके अंश शरीरके साथ सम्बन्ध जोड़ते हो । प्रकृतिके अंशके साथ सम्बन्ध न जोड़ो
तो आप स्वयं अंशी हो । |