भगवान्से प्रेम हो, इसकी बड़ी महिमा है, इसकी
महिमा ज्ञान और मोक्षसे भी अधिक कहें तो अत्युक्ति नहीं । इस प्रेमकी बड़ी अलौकिक
महिमा है । इससे बढ़कर
कोई तत्त्व है ही नहीं । ज्ञानसे भी बढ़कर प्रेम है । उस प्रेमके समान दूसरा कुछ
नहीं है । भगवान्में प्रेम हो जाय तो सब ठीक हो जाय । वह प्रेम कैसे हो ? संसारसे राग हटनेसे भगवान्में प्रेम हो
जाय । राग कैसे हटे ? भगवान्में प्रेम होनेसे दोनों ही बातें हैं‒राग हटाते जाओ
और भगवान्में प्रेम बढ़ाते जाओ । पहले क्या करें ?
भगवान्में प्रेम बढ़ाओ । जैसे रामायणका पाठ होता है । अगर मन लगाकर और
अर्थको समझकर पाठ किया जाय तो मन बहुत शुद्ध होता है । राग मिटता है और प्रेम
जागृत होता है । उसमें एक बड़ा विलक्षण रस भरा हुआ है । पाठका साधारण अभ्यास होनेसे
तो आदमी उकता सकता है, परन्तु जहाँ रस मिलने लगता है, वहाँ आदमी उकताता नहीं ।
इसमें एक विलक्षण रस भरा है‒प्रेम । आप पाठ करके देखो ।
उसमें मन लगाओ । भक्तोंके चरित्र पढ़ो, उससे बड़ा लाभ होता है, क्योंकि वह हृदयमें
प्रवेश करता है । जब प्रेम प्रवेश करेगा तो राग मिटेगा, कामना मिटेगी । उनके
मिटनेसे निहाल हो जाओगे । यह विचारपूर्वक भी मिटता है, पर विचारसे भी विशेष
काम देता है प्रेम । प्रेम कैसे हो ? जो संत ईश्वरभक्त जीवनमुक्त पहले हो गये ।
उनकी कथाएँ गा सदा मन शुद्ध करने के
लिये ॥ मनकी शुद्धिकी आवश्यकता बहुत ज्यादा है । मनकी चंचलताकी
अपेक्षा अशुद्धि मिटानेकी बहुत ज्यादा जरूरत है । मन शुद्ध हो जायगा तो चंचलता
मिटना बहुत सुगम हो जायगा । निर्मल होनेपर मनको चाहे कहींपर लगा दो । कपट, छल, छिद्र भगवान्को सुहाते नहीं । परन्तु इनसे आप डरते ही नहीं । झूठ बोलनेसे, कपट करनेसे, धोखा देनेसे‒इनसे तो बाज आते ही नहीं । इनको तो जान-जानकर करते हो । तो मन कैसे लगे ? बीमारी तो आप अपनी तरफसे बढ़ा रहे हो । इसमें जितनी आसक्ति है, प्रियता है, वह बहुत खतरनाक है विचार करके देखो । आसक्ति बहुत गहरी बैठी हुई है । भीतर पदार्थोंका महत्त्व बहुत बैठा हुआ है । यह बड़ी भारी बाधक है । इसे दूर करनेके लिये सत्संग और सत्-शास्त्रोंका अध्ययन करना चाहिये, जिससे बहुत आश्चर्यजनक लाभ होता है । |