।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७९, सोमवार

गीतामें आहारीका वर्णन


युगके प्रभावसे जड़ी-बूटियोंकी शक्ति क्षीण हो गयी है । कई दिव्य जड़ी-बूटियाँ लुप्त हो गयी हैं । दवाइयाँ बनानेवाले ठीक ढंगसे दवाइयाँ नहीं बनाते और पैसोंके लोभमें आकर जिस दवाईमें जो चीज मिलानी चाहिये, उसे न मिलाकर दूसरी ही चीज मिला देते हैं । अतः उस दवाईका वैसा गुण नहीं होता ।

देहातमें रहनेवाले मनुष्य खेतीका, परिश्रमका काम करते हैं तथा माताएँ-बहनें घरमें चक्की चलाती हैं, परिश्रमका काम करती हैं, और उनको अन्न, जल, हवा आदि भी शुद्ध मिलते हैं; अतः उनको कुपथ्यजन्य रोग नहीं होते । परन्तु जो शहरमें रहनेवाले हैं, वे शारीरिक परिश्रम भी नहीं करते और उनको शुद्ध अन्न, जल, हवा आदि भी नहीं मिलते; अतः उनको कुपथ्यजन्य रोग होते हैं । हाँ, प्रारब्धजन्य रोग तो सबको ही होते हैं, चाहे वे देहाती हों, चाहे शहरी ।

मनुष्यको शास्त्रकी आज्ञाके अनुसार शुद्ध दवाइयोंका सेवन करना चाहिये । अगर कोई साधु संन्यासी, गृहस्थ रोगी होनेपर भी दवाई न ले तो इससे भी रोग दूर हो जाता है; क्योंकि दवाई न लेना भी एक तप है, जिससे रोग दूर होते हैं । जो रोगोंके कारण दुःखी, अप्रसन्न रहता है, उसपर रोग ज्यादा असर करते हैं । परन्तु जो भजन-स्मरण करता है, संयमसे रहता है, प्रसन्न रहता है, उसपर रोग ज्यादा असर नहीं करते । चित्तकी प्रसन्नतासे उसके रोग नष्ट हो जाते हैं ।

प्रारब्धजन्य रोगके मिटनेमें दवाई तो केवल निमित्तमात्र बनती है । मूलमें तो प्रारब्धकर्म समाप्त होनेसे ही रोग मिटता है । जिन कर्मोंके कारण रोग हुआ है, उन कर्मोंसे बढ़कर कोई पुण्यकर्म, प्रायश्चित्त, मन्त्र आदिका अनुष्ठान किया जाय तो प्रारब्धजन्य रोग मिट जाता है । परन्तु इसमें प्रारब्धके बलाबलका प्रभाव पड़ता है अर्थात् प्रारब्धकी अपेक्षा अनुष्ठान प्रबल हो तो रोग मिट जाता है और अनुष्ठानकी अपेक्षा प्रारब्ध प्रबल हो तो रोग नहीं मिटता अथवा थोड़ा ही लाभ होता है ।

प्रश्न‒गलितकुष्ठ, प्लेग आदिसे ग्रस्त रोगियोंके सम्पर्कमें आनेसे किसीको ये रोग हो जायँ तो इसमें उसका प्रारब्ध कारण है या कुछ और ?

उत्तर‒जिनका प्रारब्ध कच्चा है अर्थात् प्रारब्धकर्मके अनुसार जिनको रोग होनेवाला है, उन्हींको ये रोग होते हैं, सबको नहीं । प्रारब्धसे होनेवाले रोगोंमें गलितकुष्ठ आदिके रोगियोंका सम्पर्क केवल निमित्त बन जाता है ।

प्रश्न‒रोगोंको मिटानेके लिये कौन-सी चिकित्सा करनी चाहिये ?

उत्तर‒चिकित्सा पाँच प्रकारकी होती है‒मानवीय, प्राकृतिक, यौगिक, दैवी और राक्षसी । जड़ी-बूटी आदिसे बनी औषधसे जो इलाज किया जाता है, वह ‘मानवीय चिकित्सा’ है । अन्न, जल, हवा, धूप, मिट्टी आदिके द्वारा जो इलाज किया जाता है, वह ‘प्राकृतिक चिकित्सा’ है । व्यायाम, आसन, प्राणायाम, संयम, ब्रह्मचर्य आदिके द्वारा रोगोंको दूर करना ‘यौगिक चिकित्सा’ है । मन्त्र, तन्त्र आदिसे तथा आशीर्वादके द्वारा रोगोंको दूर करना ‘दैवी चिकित्सा’ है । चीर-फाड़ (आपरेशन) आदिसे जो इलाज किया जाता है, वह ‘राक्षसी चिकित्सा’ है । इन सबमें शरीरके लिये, रोगोंको हटानेके लिये ‘यौगिक चिकित्सा’ ही श्रेष्ठ है; क्योंकि इसमें खर्चा नहीं है, पराधीनता भी नहीं है, और आसन, प्राणायाम, संयम आदि करनेसे शरीरमें रोग भी नहीं होते ।