।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७९, मंगलवार

गीतामें आहारीका वर्णन



प्रश्न‒व्यायाम, आसन, प्राणायाम आदि करनेसे कौनसे रोग नहीं होते‒कुपथ्यजन्य या प्रारब्धजन्य ?

उत्तर‒आसन, प्राणायाम, संयम, ब्रह्मचर्यपालन आदिसे कुपथ्यजन्य रोग तो होते ही नहीं और प्रारब्धजन्य रोगोंमें भी उतनी तेजी नहीं रहती, उनका शरीरपर कम प्रभाव होता है । कारण कि आसन, प्राणायाम आदि भी कर्म हैं; अतः उनका भी फल होता है ।

प्रश्न‒व्यायाम और आसनमें क्या भेद है ?

उत्तर‒व्यायामके ही दो भेद हैं‒(१) कुश्तीका व्यायाम; जैसे‒दण्ड-बैठक आदि और (२) आसनोंका (यौगिक) व्यायाम; जैसे-शीर्षासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन आदि ।

जो लोग कुश्तीका व्यायाम करते हैं उनकी मांसपेशियों मजबूत, कठोर हो जाती हैं और जो लोग आसनोंका व्यायाम करते हैं, उनकी मांसपेशियाँ लचकदार, नरम हो जाती हैं । दूसरी बात, जो लोग कुश्तीका व्यायाम करते हैं, उनका शरीर जवानीमें तो अच्छा रहता है, पर वृद्धावस्थामें व्यायाम न करनेसे उनके शरीरमें, सन्धियोंमें पीड़ा होने लगती है । परन्तु जो लोग आसनोंका व्यायाम करते हैं, उनका शरीर जवानीमें तो ठीक रहता ही है, वृद्धावस्थामें अगर वे आसन न करें तो भी उनके शरीरमें पीड़ा नहीं होती* । इसके सिवाय आसनोंका व्यायाम करनेसे नाड़ियोंमें रक्तप्रवाह अच्छी तरहसे होता है, जिससे शरीर नीरोग रहता है । ध्यान आदि करनेमें भी आसनोंका व्यायाम बहुत सहायक होता है । अतः आसनोंका व्यायाम करना ही उचित मालूम देता है ।

प्रश्न‒लोगोंका कहना है कि आसन करनेसे शरीर कृश हो जाता है क्या यह ठीक है ?

उत्तर‒हाँ ठीक है; परन्तु आसनसे शरीर कृश होनेपर भी शरीरमें निर्बलता नहीं आती । आसन करनेसे शरीर नीरोग रहता है, शरीरमें स्फूर्ति आती है, शरीरमें हलकापन रहता है । आसन न करनेसे शरीर स्थूल हो सकता है पर स्थूल होनेसे शरीरमें भारीपन रहता है, शरीरमें शिथिलता आती है, काम करनेमें उत्साह कम होता है, चलने-फिरने आदिमें परिश्रम होता है, उठने-बैठनेमें कठिनता होती है, बिस्तरपर पड़े रहनेका मन करता है, शरीरमें रोग भी ज्यादा होते हैं । अतः शरीरकी स्थूलता इतनी श्रेष्ठ नहीं है, जितनी कृशता श्रेष्ठ है । किसीका शरीर कृश है, पर नीरोग है और किसीका शरीर स्थूल है पर रोगी है, तो दोनोंमें शरीरका कृश होना ही अच्छा है ।

प्रश्न‒आसनोंका व्यायाम करना किन लोगोंके लिये ज्यादा उपयोगी है ?

उत्तर‒जो लोग खेतीका, परिश्रमका काम करते हैं,उनका तो स्वाभाविक ही व्यायाम होता रहता है और उनको हवा भी शुद्ध मिल जाती है; अतः उनके लिये व्यायामकी जरूरत नहीं है । परन्तु जो लोग बौद्धिक काम करते हैं; दूकान, आफिस आदिमें बैठे रहनेका काम करते हैं, उनके लिये आसनोंका व्यायाम करना बहुत उपयोगी होता है ।

प्रश्न‒व्यायाम कितना करना चाहिये ?

उत्तर‒कुश्तीके व्यायाममें तो दण्ड-बैठक करते-करते शरीर गिर जाय, थक जाय तो वह व्यायाम अच्छा होता है । परन्तु आसनोंके व्यायाममें ज्यादा जोर नहीं लगाना चाहिये, प्रत्युत शरीरमें कुछ परिश्रम मालूम देनेपर आसन करना बन्द कर देना चाहिये । आसनोंका व्यायाम करते समय भी बीच-बीचमें शवासन करते रहना चाहिये ।



* वृद्धावस्थामें भी आसनोंका सूक्ष्म (हलका) व्यायाम करना चाहिये, इससे शरीरमें स्कूर्ति, हलकापन रहेगा ।