प्रश्न‒व्यायाम किस जगह करना चाहिये ? उत्तर‒जहाँ शुद्ध हवा हो, जंगल हो वहाँ व्यायाम करनेसे विशेष लाभ होता है । कुश्तीके व्यायाममें तो अगर शुद्ध हवा न मिले तो भी काम चल सकता है पर आसनोंके व्यायाममें शुद्ध हवाका होना जरूरी है । जो लोग शहरोंमें रहते हैं, वे लोग मकानकी छतपर अथवा कमरेमें हलका-सा पंखा चलाकर आसन कर सकते हैं । प्रश्न‒व्यायाम करनेवालोंको किस वस्तुका सेवन करना चाहिये ? उत्तर‒कुश्तीका व्यायाम करनेवालोंको दूध, घी आदिका खूब सेवन करना चाहिये । दूध, घी आदि लेते हुए अगर उल्टी हो जाय तो भी उसकी परवाह नहीं करनी चाहिये, पर जितना पचा सकें, उतना तो लेना ही चाहिये । परन्तु आसनोंके व्यायाममें शुद्ध, सात्त्विक तथा थोड़ा आहार करना चाहिये (६ । १७) । प्रश्न‒शरीरमें शक्ति कम होनेपर ज्यादा रोग होते हैं‒यह बात कहाँतक ठीक है ? उत्तर‒इस विषयमें दो मत हैं‒आयुर्वेदका मत और धर्मशास्त्रका मत । आयुर्वेदकी दृष्टि शरीरपर ही रहती है; अतः वह ‘शरीरमें शक्ति कम होनेपर रोग ज्यादा पैदा होते हैं’‒ऐसा मानता है । परन्तु धर्मशास्त्रकी दृष्टि शुभ-अशुभ कर्मोंपर रहती है; अतः वह रोगोंके होनेमें पाप-कर्मोंको ही कारण मानता है । जब मनुष्योंके क्रियमाण- (कुपथ्यजन्य-) कर्म अथवा प्रारब्ध- (पाप-) कर्म अपना फल देनेके लिये आ जाते हैं, तब कफ, वात और पित्त‒ये तीनों विकृत होकर रोगोंको पैदा करनेमें हेतु बन जाते हैं और तभी भूत-प्रेत भी शरीरमें प्रविष्ट होकर रोग पैदा कर सकते हैं; कहा भी है‒ वैद्या वदन्ति कफपित्तमरुद्विकारान् ज्योतिर्विदो ग्रहगतिं परिवर्तयन्ति । भूता विशन्तीति भूतविदो वदन्ति प्रारब्धकर्म बलवन्मुनयो वदन्ति ॥ ‘रोगोंके पैदा होनेमें वैद्यलोग कफ, पित्त और वातको कारण मानते हैं, ज्योतिषीलोग ग्रहोंकी गतिको कारण मानते हैं, प्रेतविद्यावाले भूत-प्रेतोंके प्रविष्ट होनेको कारण मानते हैं; परन्तु मुनिलोग प्रारब्धकर्मको ही बलवान् (कारण) मानते हैं ।’ |
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