।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   श्रावण कृष्ण द्वितीया, वि.सं.-२०७९, शुक्रवार

गीतामें सनातनधर्म



सनातनधर्ममें जितने साधन कहे गये हैं, नियम कहे गये हैं, वे भी सभी सनातन हैं, अनादिकालसे चलते आ रहे हैं । जैसे भगवान्‌ने कर्मयोगको अव्यय कहा है‒‘इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्’ (४ । १) तथा शुक्ल और कृष्ण गतियों (मार्गों)-को भी सनातन कहा है‒‘शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते’ (८ । २६) । गीताने परमात्माको भी सनातन कहा है‒‘सनातनस्त्वम्’ (११ । १८), जीवात्माको भी सनातन कहा है‒‘जीवभूतः सनातनः’ (१५ । ७), धर्मको भी सनातन कहा है‒‘शाश्वतस्य च धर्मस्य’ (१४ । २७), परमात्माके पदको भी सनातन कहा है‒‘शाश्वतं पदमव्ययम्’ (१८ । ५६) । तात्पर्य है कि सनातनधर्ममें सभी चीजें सनातन हैं, अनादिकालसे हैं । सभी धर्मोंमें और उनके नियमोंमें एकता कभी नहीं हो सकती, उनमें ऊपरसे भिन्नता रहेगी ही । परन्तु उनके द्वारा प्राप्त किये जानेवाले तत्त्वमें कभी भिन्नता नहीं हो सकती ।

पहुँचे   पहुँचे  एक   मत,  अनपहुँचे   मत  और ।

संतदास   घड़ी  अरठकी,   ढुरे  एक   ही   ठौर ॥

जब लगि काची खीचड़ी, तब लगि खदबद होय ।

संतदास   सीज्यां  पछे,  खदबद  करै  न   कोय ॥

जबतक साधन करनेवालोंका संसारके साथ सम्बन्ध रहता है, तबतक मतभेद, वाद-विवाद रहता है । परन्तु तत्त्वकी प्राप्ति होनेपर तत्त्वभेद नहीं रहता ।

जो मतवादी केवल अपनी टोली बनानेमें ही लगे रहते है, उनमें तत्त्वकी सच्‍ची जिज्ञासा नहीं होती और टोली बनानेसे उनकी कोई महत्ता बढ़ती भी नहीं । टोली बनानेवाले व्यक्ति सभी धर्मोंमें हैं । वे धर्मके नामपर अपने व्यक्तित्वकी ही पूजा करते और करवाते हैं । परन्तु जिनमें तत्त्वकी सच्‍ची जिज्ञासा होती है, वे टोली नहीं बनाते । वे तो तत्त्वकी खोज करते है । गीताने भी टोलियोंको मुख्यता नहीं दी है, प्रत्युत जीवके कल्याणको मुख्यता दी है । गीताके अनुसार किसी भी धर्मपर विश्वास करनेवाला व्यक्ति निष्कामभावपूर्वक अपने कर्तव्यका पालन करके अपना कल्याण कर सकता है । गीता सनातनधर्मको आदर देते हुए भी किसी धर्मका आग्रह नहीं रखती और किसी धर्मका विरोध भी नही करती । अतः गीता सार्वभौम ग्रन्थ है ।