महाप्रलयपर्यन्तं कालचक्रं
प्रकीर्तितम् । कालचक्रविमोक्षार्थं श्रीकृष्णां शरणं व्रज ॥ ज्योतिषमें काल मुख्य है अर्थात् कालको लेकर ही ज्योतिष चलता
है । उसी कालको भगवान्ने अपना स्वरूप बताया है कि ‘गणना
करनेवालोंमें मैं काल हूँ’‒‘कालः कलयतामहम्’
(१० । ३०) । उस कालकी गणना सूर्यसे होती है । इसी सूर्यको
भगवान्ने ‘ज्योतिषां रविरंशुमान्’ (१० । २१) कहकर अपना स्वरूप बताया है । सत्ताईस नक्षत्र होते हैं । नक्षत्रोंका वर्णन भगवान्ने ‘नक्षत्राणामहं शशी’
(१० ।
२१) पदोंसे किया है । इनमेंसे
सवा दो नक्षत्रोंकी एक राशि होती है । इस तरह सत्ताईस नक्षत्रोंकी बारह राशियाँ होती
हैं । उन बारह राशियोंपर सूर्य भ्रमण करता है अर्थात् एक राशिपर सूर्य एक महीना रहता
है । महीनोंका वर्णन भगवान्ने ‘मासानां मार्गशीर्षोऽहम्’
(१० । ३५) पदोंसे किया है । दो महीनोंकी एक ऋतु होती
है,
जिसका वर्णन ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’
पदोंसे किया गया है । तीन ऋतुओंका एक अयन होता है । अयन दो होते
हैं‒उत्तरायण और दक्षिणायन; जिनका वर्णन आठवें अध्यायके चौबीसवें-पचीसवें श्लोकोंमें हुआ
है । इन दोनों अयनोंको मिलाकर एक वर्ष होता है । लाखों वर्षोंका एक युग होता है,[*] जिसका वर्णन भगवान्ने ‘सम्भवामि युगे
युगे’ (४ ।८)
पदोंसे किया है । ऐसे चार (सत्य,
त्रेता, द्वापर और कलि) युगोंकी एक चतुर्युगी होती है । ऐसी एक हजार
चतुर्युगीका ब्रह्माका एक दिन (सर्ग) और एक हजार चतुर्युगीकी ही ब्रह्माकी एक रात
(प्रलय) होती है, जिसका वर्णन आठवें अध्यायके सत्रहवें श्लोकसे उन्नीसवें श्लोकतक
किया गया है । इस तरह ब्रह्माकी सौ वर्षकी आयु होती है । ब्रह्माकी आयु पूरी होनेपर
महाप्रलय होता है, जिसमें सब कुछ परमात्मामें लीन हो जाता है । इसका वर्णन भगवान्ने
‘कल्पक्षये’
(९ ।
७) पदसे किया है । इस महाप्रलयमें
केवल ‘अक्षयकाल’-रूप एक परमात्मा ही रह जाते है,
जिसका वर्णन भगवान्ने ‘अहमेवाक्षयः
कालः’ (१० । ३३) पदोंसे किया है । तात्पर्य यह हुआ कि महाप्रलयतक ही ज्योतिष चलता है
अर्थात् प्रकृतिके राज्यमें ही ज्योतिष चलता है,
प्रकृतिसे अतीत परमात्मामें ज्योतिष नहीं चलता ।
अतः मनुष्यको चाहिये कि वह इस प्राकृत कालचक्रसे छूटनेके लिये, इससे
अतीत होनेके लिये अक्षयकाल-रूप परमात्माकी शरण ले ।
[*] सत्रह लाख अट्ठाईस हजार वर्षोंका ‘सत्ययुग’,
बारह लाख छियानबे हजार वर्षोंका ‘त्रेतायुग’,
आठ लाख चौसठ हजार वर्षोंका ‘द्वापरयुग’
और चार लाख बत्तीस हजार वर्षोंका ‘कलियुग’
होता है । |