Listen मनुष्यकी
जो कुछ इज्जत, प्रतिष्ठा है, वह सब स्वभावके कारण ही है । अगर कोई मनुष्य वर्ण, आश्रम
आदिमें ऊँचा हो, ऊँचे पदपर हो, पर उसका
स्वभाव खराब हो तो लोग अपना काम बनानेके लिये उसके सामने चुप रह सकते हैं । उससे डरते
हुए उसकी प्रशंसा कर सकते हैं, उसको आदर दे सकते हैं,
पर हृदयसे वे उसको आदर नहीं दे सकते । उनके भीतर यह बात रहती है कि ‘क्या करें, यह आदमी तो बड़ा दुष्ट है, पर अपने कामके लिये
इसकी गुलामी करनी पड़ती है !’ लोगोंके हृदयमें युधिष्टिर महाराजके प्रति बड़ा आदर है
और दुर्योधनके प्रति घृणा है तो यह स्वभावके कारण ही है । मनुष्य
स्वार्थ और अभिमानका त्याग करके दूसरोंकी सेवा करे, दूसरोंका हित चाहे तो उसका स्वभाव बहुत जल्दी सुधर सकता है । स्वभाव सुधरनेपर
वह अपना तथा दुनियाका उद्धार करनेवाला बन सकता है । जैसे आकाशमें पीपल आदि वृक्ष खूब
बढ़ जाते हैं और दूब छोटी ही रह जाती है, पर आकाशकी तरफसे किसीको
मना नहीं है, ऐसे ही मनुष्य अपना स्वभाव सुधारकर ऊँचा उठ सकता
है, इसके लिये भगवान्की तरफसे किसीको मना नहीं हैं । तात्पर्य
है कि जैसे वृक्ष आदिके लिये आकाशमें बढ़नेकी कोई सीमा नहीं है, ऐसे ही मनुष्यके लिये उन्नतिकी कोई सीमा नहीं है । मुख्यरूपसे
स्वभाव दो तरहका होता है‒समष्टि स्वभाव और व्यष्टि स्वभाव । जिसमें किसी तरहका उद्योग,
परिश्रम नहीं करना पड़ता और जिसमें स्वतः परिवर्तनरूप क्रिया होती है,
वह ‘समष्टि (प्राकृत) स्वभाव’ है । जैसे,
गरमीके दिनोंमें कभी ज्यादा गरमी पड़ती है, कभी
कम गरमी पड़ती है; कभी हवा चलती है, कभी
हवा नहीं चलती । सरदीके दिनोंमें कभी ज्यादा ठण्डी पड़ती है, कभी
कम ठण्डी पड़ती है; कभी वर्षा होती है, कभी
हवा चलती है । वर्षाके दिनोंमें कभी वर्षा ज्यादा होती है, कभी
वर्षा कम होती है:, कभी एकदम सूखा रहता है । बालक जन्मता है,
बड़ा होता है, जवान होता है, बूढ़ा होता है और मर जाता है । वृक्ष-लताएँ पैदा होती हैं, बढ़ती हैं, गिरती हैं, सूख जाती
हैं । नये मकान पुराने हो जाते हैं । यह सब समष्टि प्रकृतिका स्वभाव है । इस प्राकृत
स्वभावमें परिवर्तन किया जा सकता है; जैसे‒परमाणु बम आदिके विस्फोटसे
समष्टि प्रकृतिमें विकृति आ जाती है । व्यष्टि
स्वभाव किसी भी व्यक्तिका समान नहीं होता । किसीका शान्त स्वभाव होता है,
किसीका घोर (भयानक) स्वभाव होता है और किसीका मूढ़ (तमोगुणी) स्वभाव होता
है । जिसका शान्त स्वभाव है, वह सत्संग, सच्छास्त्र, सद्विचार आदिसे अपने शान्त स्वभावको विशेषतासे
बढ़ा सकता है । जिसका घोर स्वभाव है, वह अगर यह विचार कर ले कि
मेरेको अपना स्वभाव सुधारना है, शान्त बनाना है तो वह सत्संग,
सद्विचार आदिसे अपने स्वभावको शान्त, सौम्य बना सकता है । जिसका मूढ़
स्वभाव है, वह भी अगर अच्छा संग करे, सच्छास्त्र
पढ़े, अच्छा अभ्यास करे तो अपने स्वभावको अच्छा बना सकता है,
पर ऐसा करनेमें उसे कठिनता पड़ती है । कठिनता पड़नेपर भी वह अपना स्वभाव
बदलनेमें, स्वभावको अच्छा बनानेमें स्वतन्त्र है ।
नारायण
! नारायण ! नारायण ! |
Aug
29