Listen (६) दसवें अध्यायके बीसवें
श्लोकसे लेकर अड़तीसवें श्लोकतक भगवान्ने विस्तारसे अपनी विभूतियोंका वर्णन किया
और फिर उन्तालीसवें श्लोकमें उसको संक्षेपसे बता दिया । (७) बारहवें अध्यायके छठे
श्लोकमें भगवान्ने कहा कि ‘जो भक्त मेरे परायण होकर सम्पूर्ण कर्मोंको मेरेमें अर्पण करके
अनन्यभक्तिसे मेरा ध्यान करते हुए मेरी उपासना करते हैं’ । फिर इसी बातको सातवें श्लोकमें ‘मय्यावेशितचेतसाम्’ (मेरेमें आसक्त हुए चित्तवालोंका)
पदसे संक्षेपमें कहा । (ङ) भगवान् जिस विषयको पहले संक्षेपसे
कहते हैं, आगे उसी विषयको विस्तारसे कह देते है; जैसे‒ (१) तीसरे अध्यायके आठवें
श्लोकमें भगवान्ने संक्षेपसे नियत-कर्मकी बात कही और उसीको अठारहवें अध्यायके बयालीसवेंसे
अड़तालीसवें श्लोकतक विस्तारसे कहा । (२) चौथे अध्यायके तेरहवें
श्लोकमें भगवान्ने संक्षेपसे चारों वर्णोंकी बात कही और उसीको अठारहवें अध्यायके
इकतालीसवेंसे चौवालीसवें श्लोकतक विस्तारसे कहा । (३) सातवें अध्यायके बारहवें
श्लोकमें भगवान्ने ‘न त्वहं तेषु ते मयि’ पदोंसे जो बात संक्षेपसे कही उसीको नवें
अध्यायके चौथे-पाँचवें श्लोकोंमें विस्तारसे कहा । (च) भगवान् किसी विषयको पहले
जिस रूपसे कहते हैं,
आगे उसी विषयको प्रकारान्तरसे
अर्थात् दूसरे प्रकारसे कह देते हैं; जैसे‒ (१) दूसरे अध्यायसे पाँचवें
अध्यायकी समाप्तितक भगवान्ने जिस विषय‒कर्मयोगका वर्णन किया, उसीको अठारहवें अध्यायके चौथेसे बारहवें
श्लोकतक प्रकारान्तरसे कहा । (२) पाँचवें अध्यायके तेरहवेंसे
छब्बीसवें श्लोकतक और तेरहवें अध्यायके उन्नीसवेंसे चौंतीसवें श्लोकतक भगवान्ने
जिस विषय‒सांख्ययोगका वर्णन किया, उसीको अठारहवें अध्यायके तेरहवेंसे अठारहवें श्लोकतक प्रकारान्तरसे
कहा । (३) सातवें अध्यायसे बारहवें
अध्यायतक भगवान्ने जिस विषय‒भक्तियोगका वर्णन किया, उसीको अठारहवें अध्यायके छप्पनवेंसे छाछठवें
श्लोकतक प्रकारान्तरसे कहा । (४) भगवान्ने कहा कि प्रकृति
और उसके गुणोंके द्वारा ही सब कर्म किये जाते हैं (३ । २७; ५ । ९; १३ । २९ आदि) । इसी बातको भगवान्ने अठारहवें
अध्यायके तेरहवेंसे अठारहवें श्लोकतक प्रकारान्तरसे कहा ।
(५) चौदह अध्यायके पाँचवेंसे
अठारहवें श्लोकतक भगवान्ने गुणोंका जो विषय कहा है, उसीको अठारहवें अध्यायके बीसवेंसे चालीसवें
श्लोकतक प्रकारान्तरसे कहा । |
Nov
24