Listen (४) तीसरे अध्यायके तीसवें श्लोकमें तथा पाँचवें अध्यायके दसवें श्लोकमें तो भगवान्ने पहले कर्म अर्पण करके फिर कर्म करनेकी आज्ञा दी; और नवें अध्यायके सत्ताईसवें श्लोकमें पहले कर्म करके फिर कर्म अर्पण करनेकी आज्ञा दी । यह विपरीत क्रम क्यों ? भक्तियोगमें भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़नेके दो तरीके हैं‒(१)
भक्त कर्मोंको भगवान्के अर्पण करते-करते स्वयं भगवान्के अर्पित हो जाते हैं,
भगवान्के साथ अपनापन कर लेते हैं । भगवान्के अर्पित होनेपर
फिर उनके द्वारा स्वतः ही भगवान्की प्रसन्नताके लिये कर्म होते हैं । (२) भक्त पहले
स्वयं भगवान्के अर्पित हो जाते हैं । भगवान्के अर्पित होनेपर उनके द्वारा जो भी कर्म
होते हैं,
वे स्वतः ही भगवान्के अर्पित होते रहते हैं । तात्पर्य है कि जिनकी कर्म करनेमें ज्यादा प्रवृत्ति होती है,
वे कर्म करते-करते भगवान्के अर्पित होते हैं,
और जिनकी भगवान्के परायण रहनेकी ज्यादा रुचि होती है,
वे पहलेसे ही भगवान्के अर्पित हो जाते हैं । (५) दसवें अध्यायके सातवें श्लोकमें भगवान्ने ‘एतां विभूतिं योगं च’
पदोंमें विभूतिको पहले तथा योगको पीछे कहा । परन्तु दसवें अध्यायके
ही अठारहवें श्लोकमें अर्जुनने ‘विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं
च’ पदोंमें योगको पहले तथा विभूतिको पीछे कहा । यह विपरीत क्रम
क्यों ? मनुष्य पहले भगवान्की विभूतियोंको,
विशेषताओंको ही देखता है, फिर वह भगवान्में आकृष्ट होता है । भगवान्के योग (सामर्थ्य)-को
तो वह केवल मान ही सकता है । अतः भगवान्ने सबसे पहले विभूतिको कहा है । परन्तु अर्जुन
पहले भगवान्के योग (सामर्थ्य, प्रभाव)-को सुनकर ही प्रभावित हुए थे और उन्होंने ‘परं
ब्रह्म परं धाम....’ (१० ।
१२) आदि पदोंसे भगवान्की स्तुति
भी की थी । अतः वे सबसे पहले योगकी बात पूछते हैं । (६) तेरहवें अध्यायके उन्नीसवें श्लोकमें भगवान्ने पहले प्रकृतिका
और फिर पुरुषका नाम लिया‒‘प्रकृतिं पुरुषं चैव’; और तेईसवें श्लोकमें पहले पुरुषका और फिर प्रकृतिका नाम लिया‒‘य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च’ । यह विपरीत क्रम क्यों ?
तेरहवें अध्यायके उन्नीसवेंसे इक्कीसवें श्लोकतक बन्धनका
विषय है और तेईसवें श्लोकमें बोधका विषय है । बन्धनमें प्रकृतिके मुख्य होनेसे उन्नीसवें
श्लोकमें पहले प्रकृतिको और फिर पुरुषको बताया है । बोधमें पुरुषके मुख्य होनेसे तेईसवें
श्लोकमें पहले पुरुषको और फिर प्रकृतिको बताया है । तात्पर्य यह है कि प्रकृति-पुरुषका
विवेक होनेपर पहले प्रकृतिका, बन्धनका ही ज्ञान होता है, जिससे प्रकृति (बन्धन)-की निवृत्ति हो जाती है;
अतः प्रकृतिको पहले बताया । जन्म-मरणसे रहित होनेमें,
बोध होनेमें पुरुषका ही ज्ञान मुख्य है;
क्योंकि पुरुषका जन्म-मरण होता ही नहीं,
उसमें जन्म-मरणका अत्यन्त अभाव है;
अतः पुरुषको पहले बताया । |
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