Listen (१०) अठारहवें अध्यायके पहले श्लोकमें अर्जुनने पहले संन्यासका
और पीछे त्यागका तत्त्व जाननेके लिये पूछा; परन्तु उत्तरमें भगवान्ने पहले त्यागके विषयमें कहना शुरू किया
। यह विपरीत क्रम क्यों ? अठारहवें अध्यायके पहले भगवान्ने ‘संन्यास’
शब्दका प्रयोग कर्मयोग (४ । ४१), ज्ञानयोग (५ । १३) और भक्तियोग
(९ । २८;
१२ । ६)‒तीनोंमें किया था; और ‘त्याग’
शब्दका प्रयोग कर्मयोगमें किया था (२ । ४८;
४ । २०; ५ । ११ आदि) । अर्जुन संन्यास और त्याग‒दोनोंका तत्त्व
जानना चाहते थे; परन्तु तीनों योगोंमें ‘संन्यास’ पद आनेसे संन्यासका तत्त्व जानना अर्जुनके लिये जटिल हो गया
। तात्पर्य है कि अर्जुनके मनमें संन्यासके विषयमें जितना अधिक संदेह था,
उतना त्यागके विषयमें नहीं था । अतः अर्जुन मुख्यरूपसे संन्यासका
ही तत्त्व जानना चाहते थे और त्यागका तत्त्व गौणतासे जानना चाहते थे । इसलिये भगवान्ने
‘सूची-कटाहन्याय’[*] से पहले त्यागका वर्णन किया; क्योंकि त्यागके विषयमें भगवान्को थोड़ी ही बातें कहनी थीं,
जबकि संन्यासके विषयमें बहुत बातें कहनी थीं,
जिससे अर्जुनका संन्यास-विषयक संदेह दूर हो जाय । (११) गीतामें (७ । १२; १४ । ५‒१८, २२ आदि) सब जगह तीनों गुणोंका ‘सात्त्विक, राजस और तामस’‒ऐसा क्रम दिया है; परन्तु अठारहवें अध्यायके सातवें श्लोकसे नवें श्लोकतक ‘तामस, राजस और सात्त्विक‒ऐसा क्रम दिया है । यह विपरीत क्रम क्यों
? इसका कारण है कि (१) अगर भगवान् छठे श्लोकके बाद ही सातवें श्लोकमें सात्त्विक
त्यागका वर्णन करते तो भगवान्के निश्चित मत और सात्त्विक त्यागमें पुनरुक्ति-दोष
आ जाता;
क्योंकि भगवान्का निश्चित मत और सात्त्विक त्याग एक ही है
। (२) किसी वस्तुकी उत्तमता, श्रेष्ठता तभी सिद्ध होती है,
जब उस वस्तुके पहले अनुत्तम, निकृष्ट वस्तुका वर्णन किया जाय । अतः सात्त्विक त्यागकी उत्तमता
सिद्ध करनेके लिये भगवान् पहले अनुत्तम तामस और राजस त्यागका वर्णन करते हैं । (३)
आगे दसवेंसे बारहवें श्लोकतक सात्त्विक त्यागीका वर्णन हुआ है । अगर सात्त्विक त्यागका
वर्णन सात्त्विक त्यागीके पास (नवें श्लोकमें) न देते तो तामस त्याग पासमें होनेसे
सात्त्विक त्यागीके श्लोकोंका नवें श्लोकसे सम्बन्ध नहीं जुड़ता । इन सभी दृष्टियोंसे
भगवान्ने यहाँ गुणोंका विपरीत क्रम रखा है । नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[*] किसीने लुहारके
पास जाकर एक कड़ाह बनानेके लिये लोहा दिया । लुहार कड़ाह बनाने लगा । इतनेमें ही कोई
सुई बनानेके लिये थोड़ा-सा लोहा लेकर लुहारके पास आ गया । लुहारने कड़ाह बनानेका बड़ा
काम स्थगित कर दिया और सुई बनानेका छोटा-सा काम पहले कर दिया‒यही ‘सूचीकटाहन्याय’
कहलाता है । |
Dec
30