Listen हृदयादिन्यास‒ दाहिने हाथकी पाँचों अंगुलियोंसे क्रमशः मन्त्रोचारणपूर्वक हृदय
आदिका स्पर्श करनेका नाम ‘हृदयादिन्यास’ है; जैसे‒ (१) ‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक इति हृदयाय
नमः’‒ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अंगुलियोंसे हृदयका स्पर्श करे
। (२) ‘न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत इति शिरसे स्वाहा’‒ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अंगुलियोंसे मस्तकका स्पर्श करे
। (३) ‘अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च इति शिखायै
वषट्’‒ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों
अंगुलियोंसे शिखा(चोटी)-का स्पर्श करे । (४) ‘नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातन इति कवचाय हुम्’‒ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अंगुलियोंसे बायें कंधेका और
बायें हाथकी पाँचों अंगुलियोंसे दाहिने कंधेका स्पर्श करे । (५) ‘पश्य
मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश इति नेत्रत्रयाय वौषट्’‒ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अंगुलियोंके अग्रभागसे दोनों
नेत्रोंका तथा ललाटके मध्यभागका अर्थात् वहाँ गुप्तरूपसे स्थित रहनेवाले तृतीय नेत्र
(ज्ञाननेत्र)-का स्पर्श करे । (६) ‘नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च इति अस्त्राय
फट्’‒ऐसा कहकर दाहिने हाथको सिरके
ऊपरसे उलटा अर्थात् बायीं तरफसे पीछेकी ओर ले जाकर दाहिनी तरफसे आगेकी ओर ले आये तथा
तर्जनी और मध्यमा अंगुलियोंसे बायें हाथकी हथेलीपर ताली बजाये । करन्यास और हृदयादिन्यास करनेके बाद बोले‒‘श्रीकृष्णप्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः’
अर्थात् मैं यह जो गीताका पाठ करना चाहता हूँ, इसका उद्देश्य
केवल भगवान्की प्रसन्नता ही है । गीताका पाठ करनेके तीन प्रकार हैं‒सृष्टिक्रम, संहारक्रम और
स्थितिक्रम । गीताके पहले अध्यायके पहले श्लोकसे लेकर अठारहवें अध्यायके अन्तिम श्लोकतक
सीधा पाठ करना अथवा प्रत्येक अध्यायके पहले श्लोकसे लेकर, उसी अध्यायके अन्तिम श्लोकतक
सीधा पाठ करना ‘सृष्टिक्रम’
कहलाता है । अठारहवें अध्यायके अन्तिम श्लोकसे लेकर पहले अध्यायके
पहले श्लोकतक उलटा पाठ करना अथवा प्रत्येक अध्यायके अन्तिम श्लोकसे लेकर उसी अध्यायके
पहले श्लोकतक उलटा पाठ करना ‘संहारक्रम’
कहलाता है । छठे अध्यायके पहले श्लोकसे लेकर अठारहवें अध्यायके
अन्तिम श्लोकतक सीधा पाठ करना और पाँचवें अध्यायके अन्तिम श्लोकसे लेकर पहले अध्यायके
पहले श्लोकतक उलटा पाठ करना ‘स्थितिक्रम’ कहलाता है । ब्रह्मचारी सृष्टिक्रमसे, संन्यासी संहारक्रमसे
और गृहस्थ स्थितिक्रमसे पाठ कर सकते हैं । परन्तु यह कोई नियम नहीं है । वास्तवमें
किसी भी प्रकारसे गीताका पाठ किया जाय, उससे लाभ-ही-लाभ है ।
गीताका पाठ सम्पुटसे, सम्पुटवल्लीसे अथवा बिना सम्पुटके भी किया जाता है । गीताके
जिस श्लोकका सम्पुट देना हो पहले उस श्लोकका पाठ करके फिर अध्यायके एक श्लोकका पाठ
करे । फिर सम्पुटके श्लोकका पाठ करके अध्यायके दूसरे श्लोकका पाठ करे । इस तरह सम्पुट
लगाकर पूरी गीताका सीधा या उलटा पाठ करना ‘सम्पुट-पाठ’
कहलाता है । सम्पुटके श्लोकका दो बार पाठ करके फिर अध्यायके एक श्लोकका पाठ करे । फिर सम्पुटके श्लोकका दो बार पाठ करके अध्यायके दूसरे श्लोकका
पाठ करे । इस तरह सम्पुट लगाकर पूरी गीताका सीधा या उलटा पाठ करना ‘सम्पुटवल्ली-पाठ’
कहलाता है । गीताके पूरे श्लोकोंका
सम्पुट अथवा सम्पुटवल्लीसे पाठ करनेसे एक विलक्षण शक्ति आती है, गीताका
विशेष मनन होता है, अन्तःकरण शुद्ध होता है, शान्ति
मिलती है और परमात्मप्राप्तिकी योग्यता आ जाती है ।
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