Listen सम्बन्ध‒भगवान्ने अर्जुनके प्रति कौन-से वचन कहे ‒इसे आगेके दो श्लोकोंमें कहते हैं । सूक्ष्म विषय‒२-३ श्लोकतक‒भगवान्द्वारा
विषादका अनौचित्य बताकर अर्जुनको युद्धके लिये आज्ञा देना । श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा
कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥ २ ॥ अर्थ‒श्रीभगवान्१ बोले‒हे अर्जुन ! इस विषम अवसरपर तुम्हें यह कायरता कहाँसे प्राप्त
हुई,
(जिसका कि) श्रेष्ठ पुरुष सेवन
नहीं करते, (जो) स्वर्गको देनेवाली नहीं है (और) कीर्ति करनेवाली भी नहीं है । १.यहाँ ‘भगवान्’ पदमें ‘भग’ शब्दमें जो ‘मतुप्’ प्रत्यय किया गया है, वह नित्ययोगमें किया गया है; क्योंकि समग्र ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य‒ये छहों ‘भग’ भगवान्में नित्य रहते हैं ।
व्याख्या‒‘अर्जुन’‒यह सम्बोधन देनेका तात्पर्य है कि तुम स्वच्छ,
निर्मल अन्तःकरणवाले हो । अतः तुम्हारे स्वभावमें कालुष्य‒कायरताका आना बिलकुल विरुद्ध बात है । फिर यह तुम्हारेमें कैसे
आ गयी
? ‘कुतस्त्वा
कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्’‒भगवान् आश्चर्य प्रकट करते हुए अर्जुनसे कहते हैं कि ऐसे युद्धके
मौकेपर तो तुम्हारेमें शूरवीरता, उत्साह आना चाहिये था, पर इस बेमौकेपर तुम्हारेमें यह कायरता कहाँसे आ गयी ! आश्चर्य दो तरहसे होता है‒अपने न जाननेके कारण और दूसरेको चेतानेके लिये । भगवान्का यहाँ
जो आश्चर्यपूर्वक बोलना है, वह केवल अर्जुनको चेतानेके लिये ही है,
जिससे अर्जुनका ध्यान अपने कर्तव्यपर चला जाय । ‘कुतः’ कहनेका तात्पर्य यह है कि मूलमें यह कायरतारूपी दोष तुम्हारेमें (स्वयंमें) नहीं
है । यह तो आगन्तुक दोष है, जो सदा रहनेवाला नहीं है । ‘समुपस्थितम्’ कहनेका तात्पर्य है कि यह कायरता केवल तुम्हारे भावोंमें और
वचनोंमें ही नहीं आयी है; किन्तु तुम्हारी क्रियाओंमें भी आ गयी है । यह तुम्हारेपर अच्छी
तरहसे छा गयी है, जिसके कारण तुम धनुष-बाण छोड़कर रथके मध्यभागमें बैठ गये हो
। ‘अनार्यजुष्टम्’२ २.‘अनार्यजुष्टम्’ पदमें जो ‘नञ्’ समास है, वह ‘आर्यैर्जुष्टमार्यजुष्टम्’‒इस तृतीया समासके बाद ही करना चाहिये; जैसे‒‘न आर्यजुष्टम् अनार्यजुष्टम्
।’ अगर ‘नञ्’ समास तृतीया समासके पहले किया जाय कि ‘न आर्या अनार्याः अनार्यैर्जुष्टमनार्यजुष्टम्’ तो यहाँ यह कहना बनता ही नहीं; क्योंकि अनार्य पुरूषोंके द्वारा जिसका सेवन किया जाता है, वह
दूसरोंके लिये आदर्श नहीं होता । ‒समझदार श्रेष्ठ मनुष्योंमें जो भाव पैदा होते हैं,
वे अपने कल्याणके उद्देश्यको लेकर ही होते हैं । इसलिये श्लोकके
उत्तरार्धमें भगवान् सबसे पहले उपर्युक्त पद देकर कहते हैं कि तुम्हारेमें जो कायरता
आयी है,
उस कायरताको श्रेष्ठ पुरुष स्वीकार नहीं करते । कारण कि तुम्हारी
इस कायरतामें अपने कल्याणकी बात बिलकुल नहीं है । कल्याण चाहनेवाले श्रेष्ठ मनुष्य
प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनोंमें अपने कल्याणका ही उद्देश्य रखते हैं । उनमें अपने
कर्तव्यके प्रति कायरता उत्पन्न नहीं होती । परिस्थितिके अनुसार उनको जो कर्तव्य प्राप्त
हो जाता है, उसको वे कल्याणप्राप्तिके उद्देश्यसे उत्साह और तत्परतापूर्वक सांगोपांग करते
हैं । वे तुम्हारे-जैसे कायर होकर युद्धसे या अन्य किसी कर्तव्य-कर्मसे उपरत नहीं होते
। अतः युद्ध-रूपसे प्राप्त कर्तव्य-कर्मसे उपरत होना तुम्हारे लिये कल्याणकारक नहीं
है । ‘अस्वर्ग्यम्’‒कल्याणकी बात सामने न रखकर अगर सांसारिक दृष्टिसे भी देखा जाय,
तो संसारमें स्वर्गलोक ऊँचा है । परन्तु तुम्हारी यह कायरता
स्वर्गको देनेवाली भी नहीं है अर्थात् कायरतापूर्वक युद्धसे निवृत्त होनेका फल स्वर्गकी
प्राप्ति भी नहीं हो सकता । ‘अकीर्तिकरम्’‒अगर स्वर्गप्राप्तिका भी लक्ष्य न हो,
तो अच्छा माना जानेवाला पुरुष वही काम करता है,
जिससे संसारमें कीर्ति हो । परन्तु तुम्हारी यह जो कायरता है,
यह इस लोकमें भी कीर्ति (यश) देनेवाली नहीं है,
प्रत्युत अपकीर्ति (अपयश) देनेवाली है । अतः तुम्हारेमें कायरताका
आना सर्वथा ही अनुचित है । भगवान्ने यहाँ ‘अनार्यजुष्टम्’ ‘अस्वर्ग्यम्’ और ‘अकीर्तिकरम्’‒ऐसा क्रम देकर तीन प्रकारके मनुष्य बताये हैं‒(१) जो विचारशील मनुष्य होते हैं,
वे केवल अपना कल्याण ही चाहते हैं । उनका ध्येय,
उद्देश्य केवल कल्याणका ही होता है । (२) जो पुण्यात्मा मनुष्य
होते हैं, वे शुभ-कर्मोंके द्वारा स्वर्गकी प्राप्ति चाहते
हैं । वे स्वर्गको ही श्रेष्ठ मानकर उसकी प्राप्तिका ही उद्देश्य रखते हैं । (३)
जो साधारण मनुष्य होते हैं, वे संसारको ही आदर देते हैं । इसलिये वे संसारमें अपनी कीर्ति
चाहते हैं और उस कीर्तिको ही अपना ध्येय मानते हैं ।
उपर्युक्त तीनों पद देकर भगवान् अर्जुनको सावधान करते हैं कि
तुम्हारा जो यह युद्ध न करनेका निश्चय है, यह विचारशील और पुण्यात्मा मनुष्योंके ध्येय‒कल्याण और स्वर्गको प्राप्त करानेवाला भी नहीं है,
तथा साधारण मनुष्योंके ध्येय‒कीर्तिको प्राप्त करानेवाला भी नहीं है । अतः मोहके कारण तुम्हारा
युद्ध न करनेका निश्चय बहुत ही तुच्छ है, जो कि तुम्हारा पतन करनेवाला, तुम्हें नरकोंमें ले जानेवाला और तुम्हारी अपकीर्ति करनेवाला
होगा । രരരരരരരരരര |