।। श्रीहरिः ।।
 
 
आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल पंचमी, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
ऋषिपंचमीव्रत
भगवद्भजनका स्वरूप
 
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
             श्रीतुलसीदासजी कहते हैं‒
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा ।
पाइ न जेहिं परलोक सँवारा ॥
सो परत्र दुख पावइ सिर धुनी धुनी पछिताइ ।
कालहि कर्महि ईस्वरहि    मिथ्या दोस लगाइ ॥
 
            इस कथनपर हमें ध्यान देकर विचार करना चाहिये । जो मनुष्य-शरीर पाकर साधन नहीं करते, वे कहते हैं‒‘यह कलियुग है । समय बड़ा बुरा है । इस समय चारों ओर पाप-ही-पापका प्रचार हो रहा है; सत्य, अहिंसा आदि धर्मोंका पालन तथा भगवद्भजन हो ही नहीं सकता । यह कलिकाल बड़ा विकरालयुग है, सबकी बुद्धि अधर्ममें लग रही है, क्या करें, समयकी बलिहारी है । जब सब-का-सब वायुमण्डल ही बिगड़ा हुआ है, तब एक मनुष्य क्या कर सकता है । यदि हम समयके अनुसार चलें तो पारमार्थिक साधन नहीं बन पाता ।’ किन्तु इसपर हमें विचार करना चाहिये, क्या हम सचमुच समयके अनुसार चलते हैं ? कभी नहीं । जब शीतकाल आता है, तब गरम कपड़े बनवाते हैं, आग आदिका यथोचित प्रबन्ध करते हैं, घरमें कमरा बन्द करके रहते हैं‒क्या यह समयके प्रतिकूल चलना नहीं है ? ऐसे ही गर्मीके दिनोंमें ठंडे जल आदिका प्रयोग करते हैं, गर्मीसे बचनेके लिये सतत सावधान रहते हैं और वर्षामें भी यथायोग्य उपायोंसे भी त्राण पानेकी चेष्टा करते ही रहते हैं । अर्थात्‌ सभी समय शरीरकी प्रतिकूलताके निवारण, उससे रक्षा एवं शरीरके अनुकूल सामग्री जुटानेके लिये चेष्टा करते रहते हैं । इसी प्रकार हमें कलिकालसे आध्यात्मिकताको बचानेकी चेष्टा करनी चाहिये । जैसे शरीरकी रक्षा न करनेपर शरीरका नाश हो जाता है, ऐसे ही आध्यात्मिक जीवनकी रक्षा न करनेसे उस लाभसे सर्वथा वंचित रहनेके लिये बाध्य होना पड़ेगा ।
 
           अतः समयको दोष देना मिथ्या है; क्योंकि आध्यात्मिक उन्नतिके लिये कलियुग बहुत उत्तम माना जाता है । कारण, इसमें भगवद्भजनका मूल्य बहुत मिलता है, बड़े सस्तेमें मुक्ति मिल जाती है, जैसी कि दूसरे युगोंमें सम्भव नहीं थी । श्रीतुलसीदासजी कहते हैं‒
कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास ।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास ॥
 
        इसलिये बिना प्रयास ही जिसमें संसारसमुद्रसे पार पहुँचा जा सके, ऐसे कलियुगको दोष देना सरासर भूल है ।
 
         इसी प्रकार जिन कर्मोंके फलस्वरूप मुक्तिका साधनरूप मानव-शरीर प्राप्त हुआ है, उन कर्मोंको दोष देना भी मिथ्या है । क्योंकि‒
                       बड़े भाग मानुष तनु पावा । सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा ॥
                       बड़े भाग पाइब सतसंगा । बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा ॥
 
         ईश्वरने भी बड़ी भारी कृपा कर दी कि जिससे कर्मोंका सब सम्बन्ध जुटाकर यानी इस समय मानव-शरीरके योग्य कर्म न रहनेपर भी मानव-शरीर देकर आत्मोद्धारके लिये सुअवसर दे दिया । एक राजस्थानी कविने कहा है‒
करुणाकर कीन्हीं कृपा,    दीन्हीं नटवर देह ।
ना चिन्हीं कृतहीन नर खल कर दीन्हीं खेह ॥
 
           ‘करुणानिधि भगवान्‌ने कृपा करके श्रेष्ठ मनुष्य-शरीर दे दिया, परन्तु मूर्ख और कृतघ्न मनुष्यने उस शरीरको पहचाना नहीं; प्रत्युत उसे यों ही मिट्टीमें मिला दिया ।’
 
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे