।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
माघ अमावस्या, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
मौनी अमावस्या
मुक्तिमें सबका समान अधिकार


(गत ब्लॉगसे आगेका)
वज्रसूचिकोपनिषद्

शान्तिपाठ

 ‘ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि । सर्वं ब्रह्मौपनिषदं माहं ब्रह्म निराकुर्यां मा मा ब्रह्म निराकरोत् । अनिराकरणमस्त्वनिराकरणं मेऽस्तु । तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते मयि सन्तु ते मयि सन्तु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
‘हे परब्रह्म परमात्मन् ! मेरे सम्पूर्ण अंगवाणी,प्राण, नेत्रकान और सब इन्द्रियाँ तथा शक्ति परिपुष्ट हों । यह जो सर्वरूप उपनिषत्-प्रतिपादित ब्रह्म हैउसको मैं अस्वीकार न करूँ और वह ब्रह्म मेरा परित्याग न करे । उसके साथ मेरा अटूट सम्बन्ध हो और मेरे साथ उसका अटूट सम्बन्ध हो । उपनिषदोंमें प्रतिपादित जो धर्मसमूह हैंवे सब उस परमात्मामें लगे हुए मुझमें होंवे सब मुझमें हों । हे परमात्मन् ! त्रिविध तापोंकी शान्ति हो ।’
चित्सदानन्दरूपाय सर्वधीवृत्तिसाक्षिणे ।
नमो वेदान्तवेद्याय ब्रह्मणेऽनन्तरूपिणे ॥
‘सच्चिदानन्दस्वरूपसबकी बुद्धिका साक्षीवेदान्तके द्वारा जाननेयोग्य और अनन्त रूपोंवाले ब्रह्मको मैं नमस्कार करता हूँ ।’
ॐ वज्रसूचीं प्रवक्ष्यामि शास्त्रमज्ञानभेदनम् ।
दूषणं ज्ञानहीनानां भूषणं ज्ञानचक्षषाम् ॥
‘अब मैं अज्ञानका नाश करनेवाला ‘वज्रसूची’ नामक शास्त्र कहता हूँजो अज्ञानियोंके लिये दूषणरूप और ज्ञानचक्षुवालोंके लिये भूषणरूप है ।’
ब्रह्मक्षत्रियवैश्यशूद्रा इति चत्वारो वर्णास्तेषां वर्णानां ब्राह्मण एव प्रधान इति वेदवचनानुरूपं स्मृतिभिरप्युक्तम् । तत्र चोद्यमस्ति को वा ब्राह्मणो नाम किं जीवः किं देहः किं जातिः किं ज्ञानं किं कर्म किं धार्मिक इति ॥
‘ब्राह्मणक्षत्रियवैश्य और शूद्र‒ये चार वर्ण हैं । उन वर्णोंमें ब्राह्मण मुख्य है, ऐसा वेदोंमें तथा स्मृतियोंमें भी कहा गया है । उस विषयमें यह शंका उत्पन्न होती है कि ब्राह्मण नाम किसका है क्या जीव ब्राह्मण है क्या देह ब्राह्मण है ? क्या जाति ब्राह्मण है ? क्या ज्ञान ब्राह्मण है क्या कर्म ब्राह्मण है ? अथवा क्या धार्मिक व्यक्ति ब्राह्मण है ?’
तत्र प्रथमो जीवो ब्राह्मण इति चेत्तन्न । अतीतानागतानेकदेहानां जीवस्यैकरूपत्वादेकस्यापि कर्मवशादनेकदेहसम्भवात् सर्वशरीराणां जीवस्यैकरूप-त्वाच्च । तस्मान्न जीवो ब्राह्मण इति ॥
‘जीव ब्राह्मण है‒ऐसा नहीं हो सकता । कारण कि पहले हुए और आगे होनेवाले अनेक शरीरोंमें जीव एकरूप ही रहता है । जीव एक होनेपर भी कर्मोंके कारण अनेक शरीरोंको धारण करता हैपरन्तु सब शरीरोंमें जीव एकरूप ही रहता है (इसलिये यदि जीवको ब्राह्मण मानें तो फिर सभी शरीरोंको ब्राह्मण मानना पड़ेगा) ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)     
 ‒‘तत्त्वज्ञान कैसे हो ?’ पुस्तकसे