(गत ब्लॉगसे आगेका)
एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि सूर्याचन्द्रमसौ विधृतौ तिष्ठत एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि धावापृथिव्यौ विधृते तिष्ठत....। (बृहदारण्यक॰ ३ । ८ । ९)
‘हे गार्गि ! इस अक्षरके ही प्रशासनमें सूर्य और चन्द्रमा विशेषरूपसे धारण किये हुए स्थित रहते हैं । हे गार्गि ! इस अक्षरके ही प्रशासनमें द्युलोक और पृथ्वी विशेषरूपसे धारण किये हुए स्थित रहते हैं.... ।’
भयादस्याग्निस्तपति भयात् तपति सूर्य: ।
भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चम: ॥
(कठ॰ २ । ३ । ३)
‘इसीके भयसे अग्नि तपता है इसीके भयसे सूर्य तपता है तथा इसीके भयसे भयभीत होकर इन्द्र, वायु और पाँचवें मृत्यु देवता अपने-अपने काममें प्रवृत्त हो रहे हैं ।’
गीतामें आया है‒
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥
उत्तम: पुरुषस्त्वन्य: परमात्मेत्युदाहृत: ।
वो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वर: ॥
(१५ । १६ - १७)
‘इस संसारमें क्षर (नाशवान्) और अक्षर (अविनाशी)‒ये दो प्रकारके पुरुष हैं । सम्पूर्ण प्राणियोंके शरीर नाशवान् और कूटस्थ (जीवात्मा) अविनाशी कहा जाता है । उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो परमात्मा नामसे कहा गया है । वही अविनाशी ईश्वर तीनों लोकोंमें प्रविष्ट होकर सबका भरण-पोषण करता है ।’
४. परमात्माके सगुण स्वरूपकी मुख्यता
गीतामें भगवान्ने प्रकृतिको अनादि कहा है‒
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।
(१३ । ११)
यदि निर्गुणको सर्वोपरि मानें तो उनकी शक्ति प्रकृति अनादि कैसे होगी ? अत: वास्तवमें सगुण ही सर्वोपरि है । इसलिये गीतामें सगुण-साकार भगवान् श्रीकृष्णको ‘ब्रह्म’नामसे कहा गया है, जैसे‒
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः ।
(५ । १०)
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
(१० । १२)
गीतामें ब्रह्मके तीन नाम बताये गये हैं‒ ‘ॐ’, ‘तत्’और ‘सत्’ (१७ । २३) । नाम-नामीका सम्बन्ध होनेसे यह भी सगुण ही हुआ । वैष्णवलोग भी सगुण- कार भगवान्के उत्सवको ‘ब्रह्मोत्सव’ नामसे कहते हैं । श्रीमद्भागवतमें भी ब्रह्म (निर्गुण-निराकार), परमात्मा (सगुण-निराकार) और भगवान् (सगुण-साकार)‒तीनोंको एक बताया है‒
वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम् ।
ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते ॥
(१ । २ । ११)
‘तत्वज्ञ महापुरुष उस ज्ञानस्वरूप एवं अद्वितीय तत्त्वको ही ब्रह्म, परमात्मा और भगवान्‒इन तीन नामोंसे कहते हैं ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवान् और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे
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