एक बात बताता हूँ । बहुत ध्यान देनेकी और बड़ी सरल बात है । जिसको जीवन्मुक्ति कहते हैं, तत्वज्ञान कहते हैं, उसका तत्काल अनुभव हो जाय‒ऐसी बात है ! अनुभव भी इतना सहज-स्वाभाविक है कि जैसे‒‘संकर सहज सरूपु सम्हारा लागि समाधि अखंड अपारा ॥’ (मानस १ । ५८ । ४) । केवल आपको उधर दृष्टि डालनी है, और कुछ नहीं करना है ! वह आप सबका अनुभव है; परन्तु आप उधर ध्यान नहीं देते हैं, उसको महत्त्व नहीं देते हैं, इतनी ही बात है !
बहन-भाई सब ध्यान देकर सुनें । बाल्यावस्थासे अभीतक आपका शरीर बदला है, भाव बदले हैं, विचार बदले हैं; देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति, घटना, सब बदले हैं । परन्तु आप बदले हो क्या ? कोई स्वीकार नहीं करेगा कि मैं बदल गया । शरीरके बदलनेसे अपना बदलना मान लेते हैं, पर शरीर बदलता है, आप नहीं बदलते हो । आपको शरीरके बदलनेका ज्ञान है । बाल्यावस्था, युवावस्था,वृद्धावस्था शरीरकी हुई, आपकी अवस्था कहाँ हुई ? आप तो अवस्थाको जाननेवाले हो । जाननेमें आनेवाला बदला है, जाननेवाला नहीं बदला । केवल इसकी तरफ ख्याल करना है कि मैं बदलनेवाला नहीं हूँ । इसमें क्या परिश्रम है ?
‘ईस्वर अंत जीव अबिनासी’‒इस अविनाशीपनका आप अनुभव करो कि शरीर विनाशी है और मैं अविनाशी हूँ । इतनी ही बात है । लम्बी-चौड़ी बात नहीं है । मेरी स्थिति‘नहीं बदलना’ है । बदलना मेरी स्थिति नहीं है, प्रत्युत शरीरकी स्थिति है । बाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था‒इन तीन अवस्थाओंका आपको अनुभव है, शरीरको अनुभव नहीं है । अनुभव आप करते हो; शरीर क्या अनुभव करेगा? ऐसे ही जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्तिका आप अनुभव करते हो । आप जाग्रत्में भी रहते हो, स्वप्नमें भी रहते हो और सुषुप्तिमें भी रहते हो ।
आप जाग्रत्में और स्वप्नमें रहते हो‒इसका तो आपको अनुभव होता है, पर आप सुषुप्तिमें भी रहते हो‒इसका अनुभव करनेमें थोड़ा जोर पड़ता है । पर मैं सीधी बात बताता हूँ । मैं किस जगह सोया, कब सोया‒यह ज्ञान सुषुप्ति (गाढ़ नींद) में नहीं है । परन्तु जाग्रत् और स्वप्नमें देश,काल आदिका ज्ञान है । अत: देश, काल आदिके अभावका ज्ञान भी आपमें है और इनके भावका ज्ञान भी आपमें है । सुषुप्तिके समय इनके अभावका अनुभव नहीं होता; क्योंकि उस समय अनुभव करनेके औजार (अन्तःकरण-बहिःकरण) नहीं थे, वे अविद्यामें लीन हो गये थे । परन्तु सुषुप्तिसे जगनेपर आपको अनुभव होता है कि मैं वही हूँ, जो सुषुप्तिसे पहले था, परन्तु बीचमें मेरेको कुछ पता नहीं था । अत: सुषुप्तिके समय जाग्रत् और स्वप्नके ज्ञानका अभाव था, पर आपका अभाव नहीं था ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे
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