।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
फाल्गुन शुक्ल नवमी, वि.सं.–२०७०, सोमवार
मुक्ति सहज है


एक बात बताता हूँ । बहुत ध्यान देनेकी और बड़ी सरल बात है । जिसको जीवन्मुक्ति कहते हैंतत्वज्ञान कहते हैंउसका तत्काल अनुभव हो जाय‒ऐसी बात है ! अनुभव भी इतना सहज-स्वाभाविक है कि जैसे‒संकर सहज सरूपु सम्हारा  लागि समाधि अखंड अपारा ॥’ (मानस १ । ५८ । ४) । केवल आपको उधर दृष्टि डालनी हैऔर कुछ नहीं करना है ! वह आप सबका अनुभव हैपरन्तु आप उधर ध्यान नहीं देते हैंउसको महत्त्व नहीं देते हैंइतनी ही बात है !

बहन-भाई सब ध्यान देकर सुनें । बाल्यावस्थासे अभीतक आपका शरीर बदला है, भाव बदले हैंविचार बदले हैंदेशकालवस्तुव्यक्तिपरिस्थितिघटनासब बदले हैं । परन्तु आप बदले हो क्या ? कोई स्वीकार नहीं करेगा कि मैं बदल गया । शरीरके बदलनेसे अपना बदलना मान लेते हैंपर शरीर बदलता हैआप नहीं बदलते हो । आपको शरीरके बदलनेका ज्ञान है । बाल्यावस्थायुवावस्था,वृद्धावस्था शरीरकी हुईआपकी अवस्था कहाँ हुई आप तो अवस्थाको जाननेवाले हो । जाननेमें आनेवाला बदला है, जाननेवाला नहीं बदला । केवल इसकी तरफ ख्याल करना है कि मैं बदलनेवाला नहीं हूँ । इसमें क्या परिश्रम है ?

 ‘ईस्वर अंत जीव अबिनासी’‒इस अविनाशीपनका आप अनुभव करो कि शरीर विनाशी है और मैं अविनाशी हूँ । इतनी ही बात है । लम्बी-चौड़ी बात नहीं है । मेरी स्थितिनहीं बदलना’ है । बदलना मेरी स्थिति नहीं हैप्रत्युत शरीरकी स्थिति है । बाल्यावस्थायुवावस्थावृद्धावस्था‒इन तीन अवस्थाओंका आपको अनुभव हैशरीरको अनुभव नहीं है । अनुभव आप करते होशरीर क्या अनुभव करेग? ऐसे ही जाग्रत्स्वप्न और सुषुप्तिका आप अनुभव करते हो । आप जाग्रत्‌में भी रहते होस्वप्नमें भी रहते हो और सुषुप्तिमें भी रहते हो ।
          
           आप जाग्रत्‌में और स्वप्नमें रहते हो‒इसका तो आपको अनुभव होता हैपर आप सुषुप्तिमें भी रहते हो‒इसका अनुभव करनेमें थोड़ा जोर पड़ता है । पर मैं सीधी बात बताता हूँ । मैं किस जगह सोयाकब सोया‒यह ज्ञान सुषुप्ति (गाढ़ नींद) में नहीं है । परन्तु जाग्रत् और स्वप्नमें देश,काल आदिका ज्ञान है । अत: देशकाल आदिके अभावका ज्ञान भी आपमें है और इनके भावका ज्ञान भी आपमें है । सुषुप्तिके समय इनके अभावका अनुभव नहीं होताक्योंकि उस समय अनुभव करनेके औजार (अन्तःकरण-बहिःकरण) नहीं थेवे अविद्यामें लीन हो गये थे । परन्तु सुषुप्तिसे जगनेपर आपको अनुभव होता है कि मैं वही हूँजो सुषुप्तिसे पहले थापरन्तु बीचमें मेरेको कुछ पता नहीं था । अत: सुषुप्तिके समय जाग्रत् और स्वप्नके ज्ञानका अभाव थापर आपका अभाव नहीं था ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे