(गत ब्लॉगसे आगेका)
यदि आपका अभाव होता तो ‘मेरेको कुछ पता नहीं था’‒ऐसा कौन कहता ? ऐसी गाढ़ नींद आयी कि मेरेको कुछ पता नहीं रहा तो ‘कुछ पता नहीं’‒इस बातका तो पता है न ? जैसे, बाहरसे कोई आवाज दे कि अमुक आदमी घरमें है कि नहीं ? तो भीतरसे एक आदमी कहता है कि वह आदमी घरमें नहीं है । परन्तु ऐसा कहनेवाला भी नहीं है क्या? अगर कहनेवाला नहीं है तो ‘वह आदमी घरमें नहीं है’‒यह कौन कहता ? ऐसे ही सुषुप्तिमें अगर आप नहीं होते तो‘मेरेको कुछ भी पता नहीं था’‒यह कौन कहता ? जाग्रत् और स्वप्नमें ज्ञान रहता है और सुषुप्तिमें ज्ञान नहीं रहता तो ज्ञानके भाव और अभाव‒दोनोंका ज्ञान आपमें है ।
प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आप अवस्थाओंकी गिनती कर लेते हो । जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति‒इन तीनों अवस्थाओंका आपको ज्ञान है, तभी आप इन तीनोंकी गिनती करते हो । अगर इन तीनोंमें आप नहीं रहते, तीनोंका आपको ज्ञान नहीं रहता तो इनकी गिनती कौन करता ? अत: बाल्यावस्थासे अभीतक सब अवस्थाओंमें और जाग्रत्, स्वप्न तथा सुषुप्ति-अवस्थामें आप रहते हो, पर ये अवस्थाएँ नहीं रहतीं । जो नहीं रहता, वह संसार और शरीर है तथा जो रहता है वह परमात्माका साक्षात् अंश है । ‘मैं अविनाशी हूँ’‒इसका ज्ञान करानेके लिये ही यह बात कह रहा हूँ । आपके सामने आनेवाली अवस्थाएँ विनाशी हैं, परिस्थितियों विनाशी हैं,घटनाएँ विनाशी हैं, देश-काल और क्रिया विनाशी हैं; परन्तु आप अविनाशी हो और देश, काल, क्रिया, वस्तु, व्यक्ति आदि सबके भाव-अभावको जानते हो । आप अविनाशी हो और चेतन, अमल तथा सहजसुखराशि हो‒
ईस्वर अंस जीव अबिनासी ।
चेतन अमल सहज सुखरासी ॥
(मानस ७ । ११७ । १)
आप चेतन हो । चेतन किसको कहते हैं ? स्थूलरीतिसे अपनेमें जो प्राण हैं, उनके होनेसे चेतन कहते हैं । परन्तु प्राण चेतनका लक्षण नहीं है; क्योंकि प्राण वायु है, जड़ है ।चेतनका लक्षण है‒ज्ञान । आपको जाग्रत् स्वप्न और सुषुप्तिका ज्ञान होता है तो आप चेतन हो । जाग्रत्- अवस्थाको स्वप्न और सुषुप्ति-अवस्थाका ज्ञान नहीं है । स्वप्न-अवस्थाको जाग्रत् और सुषुप्ति-अवस्थाका ज्ञान नहीं है । सुषुप्ति-अवस्थाको जाग्रत् और स्वप्न-अवस्थाका ज्ञान नहीं है । अवस्थाओंको ज्ञान नहीं है । शरीरोंको ज्ञान नहीं है, प्रत्युत आपको ज्ञान है ।अत: आप ज्ञानस्वरूप हुए, चेतन हुए ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे
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