(गत ब्लॉगसे आगेका)
भगवान् सबके हैं और सबमें हैं, पर मनुष्य उनसे विमुख हो गया है । संसार रात-दिन नष्ट होता जा रहा है,फिर भी वह उसको अपना मानता है और समझता है कि मेरेको संसार मिल गया । भगवान् कभी बिछुड़ते हैं ही नहीं,पर उनके लिये कहता है कि वे हैं ही नहीं, मिलते हैं ही नहीं;भगवान्से मिलना तो बहुत कठिन है, पर भगवान् तो सदा मिले हुए ही रहते हैं । भाई ! आप अपनी दृष्टि उधर डालते ही नहीं, उधर देखते ही नहीं । जहाँ-जहाँ आप देखते हो,वहाँ-वहाँ भगवान् मौजूद हैं । अगर यह बात स्वीकार कर लो, मान लो कि सब देशमें, सब कालमें, सब वस्तुओंमें,सम्पूर्ण घटनाओंमें, सम्पूर्ण परिस्थितियोंमें, सम्पूर्ण क्रियाओंमें भगवान् हैं, तो भगवान् दीखने लग जायेंगे ।दृढ़तासे मानोगे तो दीखेंगे, संदेह होगा तो नहीं दीखेंगे । जितना मानोगे, उतना लाभ जरूर होगा । दृढ़तासे मान लो तो छिप ही नहीं सकते भगवान् ! क्योंकि‒
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥
(गीता ६ । ३०)
‘जो सबमें मेरेको देखता है और सबको मेरे अन्तर्गत देखता है, मैं उसके लिये अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।’
जहाँ देखें, जब देखें, जिस देशमें देखें, वहीं भगवान् हैं । परन्तु जहाँ राग-द्वेष होंगे, वहाँ भगवान् नहीं दीखेंगे ।भगवान्के दीखनेमें राग-द्वेष ही बाधक हैं । जहाँ अनुकूलता मान लेंगे, वहाँ राग हो जायगा और जहाँ प्रतिकूलता मान लेंगे, वहाँ द्वेष हो जायगा । एक आदमीकी दो बेटियों थीं । दोनों बेटियाँ पास-पास गाँवमें ब्याही गयी थीं । एक बेटीवालोंका खेतीका काम था और एकका कुम्हारका काम था । वह आदमी उस बेटीके यहाँ गया, जो खेतीका काम करती थी और उससे पूछा कि क्या ढंग है बेटी ? उसने कहा‒पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनोंमें वर्षा नहीं हुई तो खेती सूख जायगी, कुछ नहीं होगा । अब वह दूसरी बेटीके यहाँ गया और उससे पूछा कि क्या ढंग है ? तो वह बोली‒पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनोंमें वर्षा आ गयी तो कुछ नहीं होगा; क्योंकि मिट्टीके घड़े धूपमें रखे हैं और कच्चे घड़ोंपर यदि वर्षा हो जायगी तो सब मिट्टी हो जायगी ! अब आपलोग बतायें कि भगवान् वर्षा करें या न करें ! दोनों एक आदमीकी बेटियों हैं । माता-पिता सदा बेटीका भला चाहते हैं । अब करें क्या ? एकने वर्षा होना अनुकूल मान लिया और एकने वर्षा होना प्रतिकूल मान लिया । एकने वर्षा न होना अनुकूल मान लिया और एकने वर्षा न होना प्रतिकूल मान लिया । उन्होंने वर्षा होनेको ठीक-बेठीक मान लिया । परन्तु वर्षा न ठीक है न बेठीक है । वर्षा होनेवाली होगी तो होगी ही । अगर कोई वर्षा होनेको ठीक मानता है तो उसका वर्षामें ‘राग’ हो गया और वर्षा होनेको ठीक नहीं मानता तो उसका वर्षामें ‘द्वेष’ हो गया । ऐसे ही यह संसार तो एक-सा है, पर इसमें ठीक और बेठीक‒ये दो मान्यताएँ कर लीं तो फँस गये !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
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