Sep
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जगज्जननी जानकीजी भी पार्वतीजीका पूजन करती हैं । उनकी माँ
सुनयनाजी कहती हैं—‘जाओ
बेटी ! सतीका पूजन करो ।’ सतीजीका पूजन करती हैं और अपना मनचाहा वर माँगती हैं । सतीका पूजन करनेसे श्रेष्ठ वर मिलता है । सती सब
स्त्रियोंका गहना है । सतीका नाम ले तो पतिव्रता बन जाय,
इतना उसका प्रभाव है । उस सतिको भगवान् शंकरने खुश होकर अपनी अर्धांगिनी
बना लिया । आपने ‘अर्धनारीश्वर’ भगवान् शंकरका चित्र देखा होगा । एक तरफ आधी मूँछ
है और दूसरी तरफ ‘नथ’ है । वाम भाग पार्वतीका शरीर और दाहिना भाग भगवान् शंकरका
शरीर है । एक कविने इस विचित्ररूपके विषयमें बड़ा सुन्दर लिखा है ।
निपीय
स्तनमेकं च मुहुरन्यं
पयोधरम् ।
मार्गन्तं बालमालोक्याश्वासयन्तौ हि दम्पती ॥
बालक माँका स्तन चूँगता (पीता) है तो मुँहमें एक स्तनको
लेता है और दूसरेको टटोलकर हाथमें पकड़ लेता है कि कहीं कोई दूसरा लेकर पी न जाय,
इसका दूध भी मैं ही पिऊँगा । इसी प्रकार गणेशजी भी ऐसे एक बार माँका एक स्तन पीने
लगे और दूसरा स्तन टटोलने लगे, पर वह मिले कहाँ ? उधर तो बाबाजी बैठे हैं, माँ तो
है ही नहीं । अब वे दूसरा स्तन खोजते हैं दूध पीनेके लिये, तो माँने कहा—‘बेटा ! एक ही पी ले । दूसरा कहाँसे लाऊँ ।’ ऐसे शंकरभगवान्
अर्धनारीश्वर बने हुए हैं ।
भगवान् शंकरने ‘राम’ नाम जप करनेवाली सती पार्वतीको
अपने-अंगका भूषण बना लिया । ‘राम’ नामपर उनका बहुत
ज्यादा स्नेह है—ऐसा
देखकर पार्वतीजीने पूछा—
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती ।
सदर जपहु अनँग आराती ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा
१०८ । ७)
‘आप तो महाराज ! रात-दिन आदरपूर्वक ‘राम-राम-राम’ जप कर रहे हैं । एक-एक नाम लेते-लेते उसमें आपकी
श्रद्धा, प्रेम, आदर उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है । ‘दिन
राती’—न रातका
खयाल है, न दिनका । वह नाम किसका है ? वह ‘राम’
नाम क्या है महाराज ? ऐसा पार्वतीजीके पूछनेपर शिवजीने श्रीरामजीकी कथा सुनायी ।
पहले भगवान् श्रीशंकरने राम-कथाको रचकर अपने मनमें ही रखा ।
वे दूसरोंको सुनाना नहीं चाहते थे, पर फिर अवसर पाकर उन्होंने यह राम-कथा
पार्वतीजीको सुनायी ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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