Nov
30
(गत ब्लॉगसे आगेका)
हमें भगवान्की तरफ ही चलना है । मनुष्य-शरीर मिला है इसलिये
उद्धार करना है । हृदयमें सच्चा प्रेम भगवान्से हो, सांसारिक पदार्थोंसे, भोगोंसे न हो । संतोंने कहा
है‒
नर तन दीनो रामजी, सतगुरु दीनो ज्ञान,
ए घोड़ा हाँको अब, ओ आयो मैदान ।
ओ आयो मैदान बाग करड़ी कर
सावो,
हृदय राखो ध्यान नाम
रसनासे गावो ।
कुण देख सगराम कहे आगे
काढ़े कान,
नर तन दीनो रामजी, सतगुरु दीनो ज्ञान ॥
कह दास सगराम बरगड़े
घालो घोड़ा,
भजन करो भरपूर रह्या दिन बाकी थोड़ा ।
थोड़ा दिन बाकी रह्या कद पहुँचोला
ठेट,
अब बिचमें बासो बसो तो पड़सो किणरे पेट ।
पड़सो किणरे पेट पड़ेला भारी फोड़ा,
कहे दास सगराम बरगड़े बालो
घोड़ा ॥
ऐसा बढ़िया मौका आ गया है । कितना सीधा, सरल रास्ता संतोंने बता दिया ! ‘संतदास सीधो दड़ो सतगुरु
दियो बताय ।’ ‘धावन्निमिल्य वा नेत्रे न स्खलेन्नपतेदिह ।’ इस मार्गमें मनुष्य
न स्खलित होता है, न गिरता है, न पड़ता है‒ऐसा सीधा और सरल
रास्ता है । संतोंने कृपा करके बता दिया । हर कोई ऐसी गुप्त बात बताते नहीं हैं‒
राम नामकी संतदास दो अन्तर धक धूण ।
या तो गुपती बात
है कहो बतावे कूण ॥
तुलसीदासजी कहते हैं‒‘कमठ सेष सम धर बसुधा के’‒‘राम’ नामके दो अक्षर ‘र’ और ‘म’ शेषनाग
और कमठके समान हैं । जैसे पृथ्वीको धारण करनेवाले शेष और कमठ हैं, ऐसे यह जो ‘राम’ नाम है इसमें ‘र’ शेषनाग है (‘र’ का आकार भी ऐसा ही होता है) और ‘म’ कमठ (कछुआ)
है । संसारमात्रको धारण करनेमें रामजी महाराज कमठ और शेषके समान हैं । अपने भक्तको
धारण करनेमें उनके कौन बड़ी बात है !
सरवर पर गिरवर तरे, ज्यूँ तरवरके पात ।
जन रामा नर देहको तरिबो किती एक बात ॥
भगवान्के नामसे समुद्रके ऊपर पत्थर तैर गये तो मनुष्यका उद्धार
हो जाय‒इसमें क्या बड़ी बात है ! भगवान्ने उद्धार करनेके लिये ही इसको मनुष्य-शरीर
दिया । भगवान्ने भरोसा किया कि यह अपना उद्धार करेगा । सज्जनो ! मुफ्तमें बात मिली
हुई है । भगवान्ने जब विचार किया कि यह उद्धार करे तो भगवान्की
कृपा एवं उनका संकल्प हमारे साथ है । पतनमें हमारा अपना हाथ है, उसमें
भगवान्का हाथ नहीं है । उनका संकल्प
हमारे उद्धारका है, कितनी भारी मदद है ! सब संत,
ग्रन्थ, धर्म, सद्गुरु, सत्-शास्त्र हमारे साथ हैं । ऐसा भगवान्का नाम है । केवल हम
थोड़ी-सी हाँ-में-हाँ मिला दें । आगे गोस्वामीजी कहते हैं‒
जन मन मंजु कंज मधुकर से ।
जीह जसोमति हरि हलधर से ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २० । ८)
(अपूर्ण)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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