(गत ब्लॉगसे आगेका)
अहो ! बड़े आश्रर्यकी बात है । बकासुरकी बहन पूतनाने अपने स्तनोंमें
कालकूट जहर लगा लिया । जिस जहरका स्पर्श हो जाय तो बच्चा मर जाय,
ऐसा भयंकर जहर लगाकर मारनेकी इच्छासे वह पूतना आयी और बालरूप
भगवान् कृष्णके मुखमें जहर भरा हुआ स्तन दे दिया । महान् नीचा आचरण करनेवाली उस असाध्वीको
वह गति मिली, जो धाय माँको मिलती है । धाय माँ प्यारपूर्वक पालन करती है ।
बालकको स्नेहपूर्वक दूध पिलाती है ।
‘जसुमति की गति पाई
लालजी रो मुख देखनने आई’
यशोदाजीको जो गति मिलनेवाली थी,
वह उस पूतनाको भी दे दी । इसलिये ऐसा कौन दयालु होगा,
जिसके हम शरण जावें !
ऐसे श्लोक जब शुकदेवजीने सुने तो उन ब्रह्मचारियोंसे पूछा कि
ये कहाँके श्लोक हैं ? तो बताया कि भागवतके श्लोक हैं । ‘भागवत-जैसा ग्रन्थ कहाँ है,
जिसमें ऐसे दयालुका वर्णन है ?’ उन्होंने कहा कि हम व्यासजी महाराजके पास भागवतजी पढ़ते हैं ।
अब तो शुकदेवजी बोले‒‘हम भी पढ़ेंगे ।’ ‘कुर्वन्त्यहैतुकीं
भक्तिम्’ अब उनको क्या करना,
जानना और पाना बाकी था । उनके काम बाकी रहा ही नहीं । पर ऐसे शुद्ध ज्ञानी भक्त भी भगवान्के गुणोंको सुनकर आकृष्ट हो जाते
हैं । इसलिये भगवान्को सर्वथा निष्काम होनेके कारण ज्ञानी भक्त विशेष प्रिय हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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