।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
माघ कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७१, रविवार
मानसमें नाम-वन्दना

         
           
 (गत ब्लॉगसे आगेका)

अहो ! बड़े आश्रर्यकी बात है । बकासुरकी बहन पूतनाने अपने स्तनोंमें कालकूट जहर लगा लिया । जिस जहरका स्पर्श हो जाय तो बच्चा मर जाय, ऐसा भयंकर जहर लगाकर मारनेकी इच्छासे वह पूतना आयी और बालरूप भगवान् कृष्णके मुखमें जहर भरा हुआ स्तन दे दिया । महान् नीचा आचरण करनेवाली उस असाध्वीको वह गति मिली, जो धाय माँको मिलती है । धाय माँ प्यारपूर्वक पालन करती है । बालकको स्नेहपूर्वक दूध पिलाती है ।

जसुमति की गति पाई
लालजी रो मुख देखनने आई’

यशोदाजीको जो गति मिलनेवाली थी, वह उस पूतनाको भी दे दी । इसलिये ऐसा कौन दयालु होगा, जिसके हम शरण जावें !

ऐसे श्लोक जब शुकदेवजीने सुने तो उन ब्रह्मचारियोंसे पूछा कि ये कहाँके श्लोक हैं ? तो बताया कि भागवतके श्लोक हैं । भागवत-जैसा ग्रन्थ कहाँ है, जिसमें ऐसे दयालुका वर्णन है ? उन्होंने कहा कि हम व्यासजी महाराजके पास भागवतजी पढ़ते हैं । अब तो शुकदेवजी बोले‒‘हम भी पढ़ेंगे ।’ कुर्वन्त्यहैतुकीं भक्तिम्’ अब उनको क्या करना, जानना और पाना बाकी था । उनके काम बाकी रहा ही नहीं । पर ऐसे शुद्ध ज्ञानी भक्त भी भगवान्‌के गुणोंको सुनकर आकृष्ट हो जाते हैं । इसलिये भगवान्‌को सर्वथा निष्काम होनेके कारण ज्ञानी भक्त विशेष प्रिय हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे