(गत ब्लॉगसे आगेका)
चार प्रकारके भक्त
राम भगत जग चारि प्रकारा ।
सुकृती चारिउ अनघ उदारा ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २२ । ६)
अब कहते हैं, चार प्रकारके भगवान्के भक्त हैं । चारों ही बड़े सुकृती हैं,
अनघ (पापरहित) हैं और सब-के-सब उदार हैं ।
(१) ‘नाम जीहँ
जपि..........ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा’‒ये परमात्माको जाननेवाले ज्ञानी भक्त
हैं,
(२) ‘जाना चहहिं
गूढ़ गति’‒ये जिज्ञासु हैं,
(३) ‘साधक नाम जपहिं’‒ये अर्थार्थी हैं और
(४) ‘जपहिं नामु जन आरत भारी’‒ये आर्त भक्त हैं । इनमें ज्ञानी भक्त परमात्मतत्त्वका अनुभव
कर लेता है । उसके लिये कोई काम बाकी नहीं रहता,
वह ब्रह्मसुखका अनुभव कर लेता है । जो परमात्मतत्वको जानना चाहते
हैं, वे जिज्ञासु भक्त हैं । वे नाम-जपसे परमात्मतत्त्वको जान लेते हैं । जो धन-सम्पत्ति,
वैभव चाहते हैं, उसके लिये साधना करते हैं,
ऐसे अर्थार्थी भक्तको भी नाम-जपसे सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती
हैं । दुःखको दूर करना चाहता है, तो दुःखी होकर नाम-जप करनेसे आर्त भक्तका भी दुःख दूर हो जाता
है । गीतामें भी आया है‒
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥
(७ । १६)
भगवान् कहते हैं कि सब-के-सब अर्थात् चारों प्रकारके भक्त सुकृती
हैं । यहाँ तुलसीदासजीने भी इनको सुकृती बताया है और ये अनघ और उदार भी हैं । यही बात
गीतामें भी आयी है‒‘उदारा सर्व एवैते’ (७ ।
१८) । ऐसे ये चारों प्रकारके भक्त
उदार हैं, चारों ही अनघ‒पापरहित हैं और चारों-के-चारों सुकृती हैं ।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ।
(गीता ७ । २३)
यान्ति देवव्रता
देवान्पितॄन्यान्ति पितृवताः ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ॥
(गीता ९ । २५)
देवताओंका यजन (पूजन) करनेवाले देवताओंको प्राप्त होते हैं,
भूत-प्रेतोंका यजन करनेवाले भूतोंको प्राप्त होते हैं और मेरा
यजन करनेवाले मेरेको ही प्राप्त होते हैं । आर्त हो चाहे अर्थार्थी हो,
चाहे कोई क्यों न हो,
भगवान्के साथ सम्बन्ध हो जानेके बाद किसीका भी पतन नहीं होता
।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें
नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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