(गत ब्लॉगसे आगेका)
आर्त भक्तोंमें गजेन्द्रका नाम लिया जाता है । ग्राहने जब गजेन्द्रको
पकड़ लिया तो पहले उसने अपने साथवाले हाथी-हथिनियोंपर भरोसा रखा और बहुत वर्षोंतक लड़ता
रहा, पर जब किसीका सहारा नहीं रहा और बेचारा डूबने लगा तो उसने अनन्यतासे प्रभुको याद
किया और आर्त होकर पुकारने लगा । ‘प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम्’
पहले जन्ममें शिक्षा पाया हुआ स्तोत्र था । उसको इतना ही याद
आया कि कोई एक परमात्मा है जो सबका मालिक है । आपत्तिमें भी पुकारा जाता है तो वह रक्षा
करता है, ऐसा ज्ञान हुआ ।
यः कश्चनेशो बलिनोऽन्तकोरगात्
प्रचण्डवेगादभिधावतो
भृशम् ।
भीतं प्रपन्नं परिपाति यद्भया-
न्मृत्युः
प्रधावत्यरणं तमीमहि ॥
भागवतमें गजेन्द्र मोक्ष आता है । उसमें वर्णन आता है कि गजेन्द्रने
भगवान्के स्वरूपका ध्यान नहीं किया । सगुण है कि निर्गुण है,
साकार है कि निराकार है,
धनुषधारी है कि वंशीधारी है, वह चक्रधारी है कि चतुर्भुजधारी
है, कैसा है, ऐसे किसी रूप विशेषका ध्यान नहीं किया । वह कहता है‒‘यःकश्चनेशः’‒‘कोई एक ईश्वर, जो सबका मालिक है ।’ ‘बलिनोऽन्तकोरगात्’ महान् बलवान् अन्तक है मानो साँप खानेको दौड़ रहा है । मौत जिसके
पीछे पड़ी हुई है । ऐसे ‘प्रचण्डवेगात्’
मौतका बड़ा भारी प्रचण्ड वेग है । ‘प्रपन्नं
यद्भयात् परिपाति’ मृत्यु सम्पूर्ण संसारका नाश करती है,
वह मृत्यु भी जिससे भयभीत होकर दौड़ती है;
उस मृत्युके भयसे शरणागतवत्सल उसकी रक्षा करता है,
जो भयभीत होकर उसके शरण होता है । ऐसे वह सब तरहके भयसे रक्षा
करनेवाला है । ‘अरणं तमीमहि’
उस शरणागतवत्सल परमात्माके हम शरण हैं । भगवान् प्रकट हो करके
उनका दुःख दूर कर देते हैं ।
आदमीके जब आफत आती है,
तब उसकी वृत्ति संसारसे हटती है और संसारसे हटते ही भीतर प्रकाश
होता है । संसारमें मन लगानेसे अँधेरा होता है । आफत आनेसे जग जाता है,
जैसे, आदमी नींदमें सोया हुआ हो और उसके सुई चुभोई जाय तो वह जग जाता
है । ऐसे आपत्तिमें आदमी जग जाता है । जो भजन नहीं करते हैं, उनपर
जब आफत आती है, तब उनको होश हो जाता है और वे भगवान्की तरफ लग जाते
हैं; परंतु जो आफत आनेपर नहीं चेतते और भजन नहीं करते, उनके
लिये क्या कहा जाय ?
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
|