।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
माघ कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.२०७१, शुक्रवार
मानसमें नाम-वन्दना
                     

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

आर्त भक्तोंमें गजेन्द्रका नाम लिया जाता है । ग्राहने जब गजेन्द्रको पकड़ लिया तो पहले उसने अपने साथवाले हाथी-हथिनियोंपर भरोसा रखा और बहुत वर्षोंतक लड़ता रहा, पर जब किसीका सहारा नहीं रहा और बेचारा डूबने लगा तो उसने अनन्यतासे प्रभुको याद किया और आर्त होकर पुकारने लगा । प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम्’ पहले जन्ममें शिक्षा पाया हुआ स्तोत्र था । उसको इतना ही याद आया कि कोई एक परमात्मा है जो सबका मालिक है । आपत्तिमें भी पुकारा जाता है तो वह रक्षा करता है, ऐसा ज्ञान हुआ ।

यः कश्चनेशो बलिनोऽन्तकोरगात्
प्रचण्डवेगादभिधावतो भृशम् ।
भीतं प्रपन्नं परिपाति यद्‌भया-
न्मृत्युः प्रधावत्यरणं तमीमहि ॥

भागवतमें गजेन्द्र मोक्ष आता है । उसमें वर्णन आता है कि गजेन्द्रने भगवान्‌के स्वरूपका ध्यान नहीं किया । सगुण है कि निर्गुण है, साकार है कि निराकार है, धनुषधारी है कि वंशीधारी है, वह चक्रधारी है कि चतुर्भुजधारी है, कैसा है, ऐसे किसी रूप विशेषका ध्यान नहीं किया । वह कहता है‒‘यःकश्चनेशः’‘कोई एक ईश्वर, जो सबका मालिक है ।’  बलिनोऽन्तकोरगात्’ महान् बलवान् अन्तक है मानो साँप खानेको दौड़ रहा है । मौत जिसके पीछे पड़ी हुई है । ऐसे प्रचण्डवेगात्’ मौतका बड़ा भारी प्रचण्ड वेग है । प्रपन्नं यद्भयात् परिपाति’ मृत्यु सम्पूर्ण संसारका नाश करती है, वह मृत्यु भी जिससे भयभीत होकर दौड़ती है; उस मृत्युके भयसे शरणागतवत्सल उसकी रक्षा करता है, जो भयभीत होकर उसके शरण होता है । ऐसे वह सब तरहके भयसे रक्षा करनेवाला है । अरणं तमीमहि’ उस शरणागतवत्सल परमात्माके हम शरण हैं । भगवान् प्रकट हो करके उनका दुःख दूर कर देते हैं ।

आदमीके जब आफत आती है, तब उसकी वृत्ति संसारसे हटती है और संसारसे हटते ही भीतर प्रकाश होता है । संसारमें मन लगानेसे अँधेरा होता है । आफत आनेसे जग जाता है, जैसे, आदमी नींदमें सोया हुआ हो और उसके सुई चुभोई जाय तो वह जग जाता है । ऐसे आपत्तिमें आदमी जग जाता है । जो भजन नहीं करते हैं, उनपर जब आफत आती है, तब उनको होश हो जाता है और वे भगवान्‌की तरफ लग जाते हैं; परंतु जो आफत आनेपर नहीं चेतते और भजन नहीं करते, उनके लिये क्या कहा जाय ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे