।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७१, मंगलवार
वृद्धाङ्गारकपर्व (बुढ़वामंगल)
सत्-असत्‌का विवेक



श्रीमद्धगवद्रीतामें आया है‒

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
                                                           (२ । १६)

असत्‌का भाव विद्यमान नहीं है और सत्‌का अभाव विद्यमान नहीं है ।’

इस श्लोकार्धमें तीन धातुओंका प्रयोग हुआ है‒

१. भू सत्तायाम्’जैसे, अभावः’ और भावः’
२. अस् भुवि’जैसे, असतः’ और सतः’
३. विद सत्तायाम्’जैसे, विद्यते’ और न विद्यते’

यद्यपि इन तीनों धातुओंका मूल अर्थ एक (सत्ता) ही है, तथापि सूक्ष्मरूपसे ये तीनों अपना अलग अर्थ भी रखते हैं; जैसे‒‘भू’ धातुका अर्थ उत्पत्ति’ है, अस् धातुका अर्थ सत्ता’ (होनापन) है और विद्’ धातुका अर्थ विद्यमानता’ (वर्तमानमें सत्ता) है ।

नासतो विद्यते भावः’ पदोंका अर्थ है‒‘असतः भावः न विद्यते’ अर्थात् असत्‌की सत्ता विद्यमान नहीं है । असत् वर्तमान नहीं है । असत् उपस्थित नहीं है । असत् प्राप्त नहीं है । असत् मिला हुआ नहीं है । असत् मौजूद नहीं है । असत् कायम नहीं है । जो वस्तु उत्पन्न होती है, उसका नाश अवश्य होता है‒यह नियम है । उत्पन्न होते ही तत्काल उस वस्तुका नाश शुरू हो जाता है । उसका नाश इतनी तेजीसे होता है कि उसको दो बार कोई देख ही नहीं सकता अर्थात् उसको एक बार देखनेपर फिर दुबारा उसी स्थितिमें नहीं देखा जा सकता । यह सिद्धान्त है कि जिस वस्तुका किसी भी क्षणमें अभाव है, उसका सदा अभाव ही है । अतः संसारका सदा ही अभाव है । संसारको कितना ही महत्त्व दें, उसको कितना ही ऊँचा मानें, उसका कितना ही सहारा लें, उसकी कितनी ही गरज करें, पर वास्तवमें वह विद्यमान है ही नहीं । असत् प्राप्त है ही नहीं । असत् कभी प्राप्त हुआ ही नहीं । असत् कभी प्राप्त होगा ही नहीं । असत्‌का प्राप्त होना सम्भव ही नहीं है ।

नाभावो विद्यते सतः’ पदोंका अर्थ है‒‘सतः अभावः न विद्यते’ अर्थात् सत्‌का अभाव विद्यमान नहीं है । दूसरे शब्दोंमें, सत्‌की सत्ता सदा विद्यमान है । सत् सदा वर्तमान है । सत् सदा उपस्थित है । सत् सदा प्राप्त है । सत् सदा मिला हुआ है । सत् सदा मौजूद है । सत् सदा कायम है । किसी भी देश, काल, वस्तु व्यक्ति, घटना. परिस्थिति, अवस्था आदिमें सत्‌का अभाव नहीं होता । कारण कि देश, काल आदि तो असत् (अभावरूप) हैं, पर सत् सदा ज्यों-का-त्यों रहता है । उसमें कभी किंचिन्मात्र भी कोई परिवर्तन नहीं होता, कोई कमी नहीं आती । अतः सत्‌का सदा ही भाव है ।   

 (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे